फोन टैपिंग के इतिहास में कांग्रेस का चैप्टर !
'डीप थ्रोट' से डरने नहीं लड़ने की बात कर रहे राहुल गांधी
पहले टेलीफोन टेप होते थे। तब सेल्युलर टेक्नोलॉजी थी ही नहीं। टेपिंग भी दो तरह से। एक तो टेलीफोन एक्सचेंज के जरिए। दूसरा तरीका था जहां आपका डायलर टेलीफोन रखा है, वहीं उसके तार से छेड़छाड़ कर कोई डिवाइस लगा देना जिससे फोन पर हुई बातचीत रिकॉर्ड हो जाए। अब तो हैकिंग होने लगी है। मामला गरम है। कहानी आई फोन बनाने वाली कंपनी ऐपल से जुड़ी है। मसला राजनीतिक हो चुका है। वो भी चुनावी सीजन में। अपनी सेफ्टी और सेक्युरिटी फीचर का दंभ भरने वाली ऐपल ने अपने कुछ यूजर्स को अपनी कमजोरी का संदेश भेजा है। वैसे भारत में आई फोन रखने वाले सभी लोग आम हैं या खास इस पर डिबेट हो सकता है लेकिन ये संदेश मिलने के बाद त्राहिमाम किया विपक्ष ने।
अचानक महुआ मोइत्रा, राघव चड्ढा, असदुद्दीन ओवैसी जैसे आईफोन धारक नेताओं ने स्क्रीनशॉट शेयर किया। इसमें लिखा है कि सरकार प्रायोजित प्रयासों के जरिए आपके फोन को हैक किया जा सकता है। राहुल गांधी ने इसे और विकराल बना दिया और सारा दोष मोदी सरकार के माथे बांधा। तो लगे हाथ अश्विनी वैष्णव ने इंडियन कंप्यूटर इमरजेंसी रेस्पॉन्स टीम (CERT-In) को जांच सौंप दी। ऐपल को सहयोग करने का नोटिस मिल चुका है। लेकिन I.N.D.IA इलेक्शन से पहले कोई हथियार छोड़ना नहीं चाहता। छोड़े भी क्यों। इस फोन के चक्कर में सरकारें कुर्बान हो चुकी हैं। आज हम वॉशिंगटन से दिल्ली तक इसी फोन के कारनामे की चर्चा करेंगे।
1974 की बात है। अमेरिका के नकचढ़े राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को फोन टैपिंग मामले में पद से इस्तीफा देना पड़ा। उन्होंने इस मामले को इतना घसीटा कि छीछालेदर हो गई। बात 17 जून 1972 की है। वाटरगेट कॉम्पलेक्स में पांच लोग संदिग्ध हाल में पकड़े गए। इसकी रिपोर्ट अगले दिन वाशिंगटन पोस्ट में छपी। लिखने वाले कार्ल बर्नस्टीन और बॉव वुडवर्ड को अंदाजा भी नहीं था कि वो इतिहास रचने जा रहे हैं। जांच में पता चला कि ये पांचों कभी सीआईए के लिए काम करते थे। वाटरगेट में डेमोक्रैटिक नेशनल कमेटी का दफ्तर था। रिपबल्किन निक्सन दोबारा राष्ट्रपति बनना चाहते थे। इसके लिए वो विरोधी पार्टी की जासूसी करवा रहे थे। लेकिन पांचों के अरेस्ट होने के बाद असली कहानी शुरू हुई।
एक काल्पनिक सोर्स सामने आया जिसका नाम था डीप थ्रोट। उसने बर्नस्टीन और वुडवर्ड को लगातार खुफिया जानकारी देनी शुरू की। इससे पता चला कि निक्सन वाटरगेट स्कैंडल में खुद शामिल थे। आप सोच रहे होंगे डीम थ्रोट का असरी चेहरा कभी सामने आया या नहीं। तो 31 साल बाद 2005 में ये खुलासा हो गया। तब तक निक्सन सिधार चुके थे। डीप थ्रोट कोई और नहीं बल्कि फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (एफबीआई) के एसोसिएट डायरेक्टर मार्क फेल्ट थे। ओवल ऑफिस और निक्सन की सारी बातचीत उन्होंने रिकॉर्ड की। जब सीनेट कमेटी ने निक्सन को दोषी पाया तब उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया।
इससे अंदाजा लग सकता है कि फोन टैपिंग या हैकिंग क्या गुल खिला सकता है। भारत में भी इसका इतिहास काफी दिलचस्प रहा है। एक सीएम को इस्तीफा देना पड़ा। ये थे कर्नाटक के रामकृष्ण हेगड़े। 1988 में खुलासा हुआ कि हेगड़े ने कांग्रेस के कई नेताओं के फोन टेप करवाए। उनसे पहले गुंडू राव सीएम थे तब भी ए बंगारप्पा, केएच पाटिल समेत 50 नेताओं के फोट टेप हुए। ये सब 1981 से 1983 के बीच हुआ।
आज बीजेपी पर फोन हैकिंग का आरोप लगाने वाले राहुल गांधी को अच्छी तरह पता होगा कि इतिहास की इस काल कोठरी में कांग्रेस का चेहरा सबसे स्याह है। सीबीआई से लेकर कर्नाटक की कहानी उसकी तस्दीक करती है। जब 1990 में चंद्रशेखर ने वीपी सिंह सरकार पर उनके फोन टेप करने का आरोप लगाया तो बड़ा धमाका हुआ। सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में कांग्रेस की पोल खोल दी। 1981 में दूसरों की चिट्ठी पत्री की जासूसी कराने के लिए इंदिरा गांधी की जितनी किरकिरी हुई उससे ज्यादा सीबीआई की रिपोर्ट से राहुल गांधी के पापा की हुई। रिपोर्ट के मुताबिक 1984 से 1987 के बीच राजीव गांधी सरकार ने न सिर्फ विरोधियों बल्कि अपनी ही सरकार मंत्रियों के फोन टेप कराए। केसी पंत, आरिफ मोहम्मद खान, करुणानिधि, चिमनभाई पटेल, एआर अंतुले और जयललिता से बड़े नेताओं के नाम शामिल थे।
ऐपल ने बढ़ाया सस्पेंस
ऐपल ने अपने नोटिफिकेशन में बताया है कि सरकार प्रायोजित हमलावर आपके फोन से डेटा ले सकते हैं। यहां तक कि माइक्रोफोन और कैमरा भी हैक हो सकता है। पहले तो ये समझ नहीं आती कि ऐपल अपनी कमजोरी बता अपने ब्रांड इमेज पर पलीता क्यों लगाना चाह रही है? ये कहना तो मानना है कि भले ही आपके पास आई फोन हो, उसकी सेक्युरिटी 100 परसेंट नहीं है। जब मामला बढ़ा तो ऐपल ने कहा कि सिर्फ भारत नहीं बल्कि दूसरे देशों में भी यूजर्स को ऐसे ही नोटिफिकेशन भेजे गए हैं। सरकार प्रायोजित हमलावर से मतलब किसी खास सरकार से नहीं है। एक और विचित्र बचाव ऐपल ने किया है। कंपनी के मुताबिक वो ज्यादा डीटेल नहीं बताएगी क्योंकि सरकार प्रायोजित हमलवार हैक करने के नए तरीके खोज लेंगे। कुल मिलाकर धुंध साफ करने के चक्कर में और बढ़ती जा रही है। विधानसभा चुनाव पास है और लोकसभा चुनाव कुछ दूर। फिर जांच से पहले ही मोदी सरकार पर उंगली उठाना बेकार है. यही पेगासस के समय हुआ। सिर्फ 29 मोबाइल सेट सुप्रीम कोर्ट जांच कमेटी तक पहुंची और किसी में पेगासस सॉफ्टवेयर से जासूसी नहीं हुई। ऐपल वाले मामले में लेकिन एक बात है। अगर ये नोटिफिकेशन इतना जेनरिक है तो एनडीए की 38 पार्टियों में से किसी एक नेता के पास भी गई होती। कोई सामने आ जाता तो विपक्ष की धार ऐसे ही कुंद हो जाती। लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ है।
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