10 महीनों में पाकिस्तान 60 से अधिक दफा आतंकी हमले....
पाकिस्तान मियांवाली एयर बेस पर आतंकी हमला !
जब आप किसी का घर जलाने की मुहिम में लग जाते हैं तो उसकी लपट में आप खुद झुलस जाते हैं. बात पाकिस्तान की हो रही है. चर्चा की वजह मियांवाली एयर बेस पर आतंकी हमले से जुड़ी हुई है. आतंकी एयरबेस में घुसे और तीन विमानों में आग लगा दी. इस आतंकी हमले में शामिल तीन फिदायीन हमलवारों को सुरक्षाबलों ने मार गिराया है. यह संभव है कि मियांवाली आतंकी हमले के सभी गुनहगारों को मार गिराया जाए. लेकिन सवाल इससे कहीं बड़ा है. पाकिस्तान इससे सीख क्यों नहीं ले रहा है. पिछले 10 महीने में करीब 67 आतंकी हमले हुए. अगर पिछले तीन महीने के आंकड़ों को देखें तो अब तक 25 दफा आतंकियों ने पाकिस्तान को लहूलुहान कर दिया.
दहशतगर्दों को पाकिस्तान इतना तवज्जों क्यों देता है. इसके लिए करीब 76 साल पीछे चलना होगा. 1947 में भारत का बंटवारा होने के बाद पाकिस्तान बना, दुनिया के राजनीतिक नक्शे पर पाकिस्तान का जन्म हो चुका था. लेकिन जिस रूप और रंग में पाकिस्तान बना उसे लेकर वहां के हुक्मरान खुश नहीं थे. वो कहा करते थे कि हमें तो सड़ा गला हिस्सा मिला. इस सड़े गले हिस्से का दुख नफरत में तब्दील होने लगी और वो भारत को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मान बैठे. पाकिस्तान के शासकों को लगता था कि उन्हें सबसे पहले बदला लेना चाहिए.
बदला लेने की मंशा में वो उन्होंने अपनी तरक्की को हासिए पर डाल दिया, भारत के खिलाफ दो सीधी लड़ाई में जब कामयाबी नहीं मिली तो वे परोक्ष युद्ध पर उतर आए, भारत के उन हिस्सों पर ध्यान केंद्रित किया जहां से उनकी नापाक सोच जमीन पर उतर सकती थी. जम्मू-कश्मीर उनमें से एक था. जम्मू-कश्मीर के युवाओं को भड़काने की दिशा में वो जुट गए. भारत को अशांत रखने की कवायद में अलग अलग आतंकी तंजीमों को मदद करने लगे. लेकिन समय परिवर्तनशील है, भौगोलिक बंधनों से आप खुद को आजाद नहीं कर सकते. लेकिन विचारों पर बंदिश कहां लग पाती है.
पाकिस्तान में अब तक हुए आतंकी हमले
पाकिस्तान में अगर आतंकी हमलों की बात करें तो जनवरी में 8, फरवरी में सात, मार्च में 6, अप्रैल में 13, मई में सात, जून में पांच, जुलाई में 15, अगस्त में सात, सितंबर में चार, अक्टूबर में तीन और नवंबर के महीने में अब तक 2 हमले हो चुके हैं, यानी कि औसतन 6 हमले हर महीने हुए हैं.
जैसी करनी, वैसी भरनी
भारत को अशांत रखने की कवायद में पाकिस्तान के हुक्मरानों ने खैबर पख्तुनवां के साथ साथ ब्लूचिस्तान के लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया. ब्लूचिस्तान, पीओके, और खैबर इलाके में रहने वालों को यह लगने लगा कि पाकिस्तान के शासकों के लिए मुख्य तौर पर पसंदीदा सूबा पंजाब है, कुछ हद तक सिंध है. बलूची और खैबर में सुलग रही आग कब शोलों में तब्दील हो गई उसे पाकिस्तान के हुक्मरान समझ तो रहे थे. लेकिन भारत के प्रति द्वेष की प्रबल भावना की वजह से वो भूल बैठे कि बलूची और खैबर इलाके में रहने वाले लोग उनके अपने हैं. इसके साथ ही अफगानिस्तान में अब बड़ा बदलाव हो चुका है, तालिबान वहां शासन में हैं, तालिबान का सबसे बड़ा विरोधी अमेरिका भी अब उनके खिलाफ उस हद तक सक्रिय नहीं है, उसका असर यह हो रहा है कि तालिबान के जिन लड़ाकों को पाकिस्तान की तरफ से मदद मिली वो खुद अब उनके विरोध में हैं. पाकिस्तान की सरकार जब तालिबान को चेताती है तो तालिबान यह कहने से बाज नहीं आते कि अंजाम बहुत बुरा होगा.
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