भारतीय कानून के डर से बेटों ने बड़े ही बेशर्मी से पिता अंतिम संस्कार में आने से मना कर दिया !
जिस बाप ने उसे बेटों की शादी में लगभग 500 करोड़ रुपय खर्च किए उन बेटों नहीं दी मुखाग्नि !
भारत के अरबपति सहारा ग्रुप के मालिक सुब्रत रॉय ने अपने जिन दोनों बेटों(सीमांतू और सुशांतू) की शादी में देश-विदेश के VVIP इक्ट्ठे किए थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी जी के साथ-साथ अनगिनत मंत्री-संत्री उस समारोह में उपस्थित थे। बड़े से बड़े सेलेब्रिटी,बिजनेसमैन, हीरो-हीरोइन, स्पोर्ट्स पर्सन और समाज के खास व बड़ी शख्सियतों ने उस आलिशान शादी में शिरकत की थी। 2004 में अपने दोनों बेटों की इस शादी एक ही दिन हुई तो 500 सौ करोड़ से ज्यादा खर्च किए गए। आपको ये जानकार हैरानी होगी कि ये वो शादी थी जहाँ अमिताभ बच्चन और सलमान खान से लेकर सुष्मिता, ऐश्वर्या ने गेट पर खड़े रह कर सबका स्वागत किया था। क्रिकेटर्स और कई सारी जानी-मानी हस्तियां अतिथियों को खाना खिलाते नजर आईं। बाकी सजावट तो छोड़िए। एक करोड़ रुपए की डिजायनर मोमबत्ती जलाई गई जो डिंपल कपाड़िया की कंपनी पर एहसान जताने के तहत खरीदी गई थी। शादी समारोह में सोने के नेपकिन उपयोग किए गए थे एवं अतिथियों को लाने-जाने के लिए अनगिनत चार्टर विमान उड़ाने भरते नज़र आ रहे थे।
वक्त बदला, हालात बदले... और सुब्रत रॉय जब कानूनी घेरे और जेल के चक्कर में फंसे तो दोनों बेटे हजारों करोड़ रुपए लेकर विदेश जा बसे। अभी दो हफ्ते पहले जब सुब्रत रॉय का निधन हुआ तो यही दोनों बेटे और सुब्रत रॉय की पत्नी उनके अंतिम संस्कार में शामिल तक नहीं हुए। सूत्रों की मानें तो क़रीब दो दिन इंतज़ार के बावजूद जब दोनों बेटे अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हुए तब उनके अन्य लोगों द्वारा उनका अंतिम संस्कार पूरा किया गया। बेटों ने बड़े ही बेशर्मी और ढिठाई से आने में असमर्थता जता दी। शायद डर हो कि केस मुकदमे की गाज बेटों पर न गिर जाए।
ये घटनायें हमें सिखाती हैं कि हम होश में आ जाएं और अपने बच्चों को पैसा कमाने की शिक्षा के साथ-साथ संस्कार और नैतिकता का पाठ भी पढ़ाएं। उन्हें परिवार और रिश्तों की अहमियत भी बताएं अन्यथा हम केवल मानव बम तैयार करने का कार्य करेंगे। माना पैसा जीवन को आसान बनाता है पर पैसा शांति नहीं दे सकता, हमारी मुसीबतों के समय स्नेह की वो गर्माहट नहीं दे सकता,लाड़ और प्यार की थपकी नहीं दे सकता।
हम पैसे से करोड़ों का बिस्तर खरीद सकते हैं पर नींद नहीं,हम पैसों से अरबों रुपये का घर बना सकते हैं पर परिवार नहीं, हम पैसे से किताबें खरीद सकते हैं पर ज्ञान नहीं, हम पैसे से दवाई खरीद सकते हैं पर स्वास्थ्य नहीं। इसलिए ये समय है जागने और जगाने का और अपने संस्कार व संस्कृति की तरफ लौटने का वरना हम अपने बच्चों को एक ऐसा जीवन देकर जायेंगे जहाँ वो नोटों की गड्डियों पर बैठकर भी जीवन भर कष्ट और अशांति का अनुभव करेंगे। शायद अपने अनुभव से ही क़भी किसी ने लिखा होगा कि- पूत कपूत तो का धन संचय, पूत सपूत तो का धन संचय।
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