G.NEWS 24 : कांग्रेस की वर्तमान राजनीति में अशोक सिंह का वर्चस्व हुआ कमजोर !

जब से सतीश सिकरवार विधायक बने और शोभा  सिकरवार महापौर बनीं हैं तभी से...

कांग्रेस की वर्तमान राजनीति में अशोक सिंह का वर्चस्व  हुआ कमजोर !

ग्वालियर। ग्वालियर कांग्रेस की राजनीति में अशोक सिंह का वर्चस्व हुआ करता था । 1 साल पहले तक तो उनके बारे में धारणा थी कि वह किसी को टिकट दिलवा भी सकते हैं और अपने लिए भी आसानी से ले सकते हैं । लेकिन वर्तमान समय में कांग्रेस की विधानसभा प्रत्याशियों की सूची में उनका कहीं नाम नहीं है । सूत्रों की माने तो वे ग्वालियर ग्रामीण और पोहरी से  प्रयासरत थे । पार्टी ने दोनों ही स्थान पर प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं । यह भी सुनने में आ रहा है कि अशोक सिंह अब लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं । वहीं दूसरी और कांग्रेस से अपुष्ट खबरें कई बार आ चुकी हैं कि तीन बार चुनाव हार चुके पार्टी नेताओं को इस बार टिकट नहीं मिलेगा । 

हालांकि यह स्पष्ट  नहीं है कि यह फार्मूला लोकसभा चुनाव के लिए है या विधानसभा चुनाव के लिए ! एक समय था जब अशोक सिंह के गांधी रोड बंगले पर ग्वालियर कांग्रेस के छोटे-बड़े नेताओं की भीड़ हुआ करती थी ।  जब से सिंधिया जी भाजपा में आए ,जब से सतीश सिकरवार कांग्रेस  विधायक बने और जब से शोभा  सिकरवार कांग्रेस की पहली बार ग्वालियर महापौर बनीं , अशोक सिंह का ग्वालियर कांग्रेस की राजनीति से दबदबा कम होता गया । अब तो कहा जाता है कि सतीश सिकरवार ही  ग्वालियर कांग्रेस हो गए हैं। ग्वालियर शहर कांग्रेस अध्यक्ष देवेंद्र शर्मा भी  सतीश के साथ ही दिखते हैं। हालांकि अपने समर्थक प्रभुदयाल जोहरे को ग्वालियर ग्रामीण अध्यक्ष बनाने में अशोक सिंह सफल हो गए थे। 

अशोक सिंह वर्तमान में प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष और कोषाध्यक्ष हैं। प्रदेश कांग्रेस के कमलनाथ , दिग्विजय सिंह , अरुण यादव , कांतिलाल भूरिया, अजय सिंह राहुल और केन्द्र में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी तक अशोक सिंह का अच्छा खासा प्रभाव है लेकिन उनका यह प्रभाव ग्वालियर अंचल की वर्तमान राजनीति में दिखाई नहीं देता है। अशोक सिंह की कांग्रेस में कितनी चलती थी , इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कि जब कमलनाथ सरकार बनते ही ज्योतिरादित्य सिंधिया की असहमति के बावजूद उनको मध्यप्रदेश एपेक्स बैंक का प्रशासक बनाकर केबिनेट मंत्री का दर्जा दे दिया गया था। 

तभी से सिंधिया खेमे में अशोक सिंह खटकने लगे थे और बाद में सबने देखा कि सिंधिया के भाजपा में आते ही सिंधिया ने सबसे ज्यादा आर्थिक नुकसान अशोक सिंह को पहुंचाया था। अशोक सिंह भी सिंधिया के प्रति अपने भाषणों में आक्रामक कभी  नहीं रहे। इसलिए भी उनकी जनाधार वाली राजनीति धीरे-धीरे कम होती गई। अब देखना यह है कि ३ बार लोकसभा चुनाव हार चुके अशोक सिंह को अगले लोकसभा चुनाव में पार्टी मौका देती है या नहीं ये आनेवाला वक्त ही तय  करेगा। 

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