चार हज़ार (4000) साल से यहूदियों ने अपने धर्म को बाहरी लोगों के लिए बंद रखा है !
यहूदी धर्म कभी भीड़ का धर्म नहीं रहा और इन्होंने अपनी "सोच दूषित" नहीं की
यहूदियों ने अपने धर्म को बाहरी लोगों के लिए बंद रखा, क्योंकि उनका धर्म ही उनकी "नस्ल" है। आप सिर्फ़ जन्म से यहूदी हो सकते हैं, यहूदी धर्म कभी भीड़ का धर्म नहीं रहा और इन्होंने अपनी "सोच दूषित" नहीं की। यहूदियों के भीतर ये आत्मविश्वास कहां से आया, ये बताना तो संभव नहीं है मगर स्वयं को सौभाग्यपूर्ण और उन्नत नस्ल बताने का ये दावा उनका कभी "झूठा" साबित नहीं हुआ है। 200 से अधिक विज्ञान का नोबेल जीतने वाली ये मुट्ठी भर लोगों की कौम उन्नत सोच और बेहतर नस्ल का दावा ऐसे ही नहीं करती है। गूगल से लेकर फेसबुक तक बनाने वाले यहूदी अगर आज न होते तो शायद दुनिया वैसी न होती जैसी अभी है।
यहूदी वैज्ञानिक आइंस्टीन की वजह से ही आज के एटम बॉम से लेकर राकेट और सुदूर अंतरिक्ष का सफर हमारे लिए संभव हो पाया है.. इसलिए जो कौम आपको इतनी ऊंचाई तक पहुंचा सकती है वो हिंसक क्रूर और बेवकूफ़ नस्लों को काबू में करने का हुनर भी जानती है। आतंकवाद से दुनिया अभी तक जिस तरह से निपट रही थी वो नाकाफ़ी था.. इसलिए प्रकृति किसी न किसी को खड़ा ही करेगी जो अगुवाई करेगा और तमाम नस्लों को आजादी दिलाएगा..
हमास जो कर रहा है वो भी ज़रूरी है क्योंकि वो ये अगर नहीं करेगा तो सारी दुनिया ऐसे ही सोती रहेगी और ये "नासूर" समूची पृथ्वी को लील लेगा.. हमास यहूदियों और बाकी लोगों को भड़काए, ये ज़रूरी है.. क्योंकि अब "फाइनल काउंटडाउन" का समय है। प्रकृति ने एक मुट्ठी बराबर देश को ऐसे नहीं "बेलगाम" नस्लों के पास जगह दी है.. प्रकृति के नियम बड़े "क्रूर" हैं!
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