दूसरी लिस्ट आने के कुछ दिनों में ही असंतोष की आवाज उठने लगी है।
गुटबाजी रोकने सांसदों को दिया विधायकी का टिकट !
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा का प्रयोग दुहराया है। भाजपा ने एमपी में तीन केंद्रीय मंत्रियों समेत कुल सात सांसदों को विधानसभा चुनाव मैदान में उतारा है। साथ ही, पार्टी ने राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को भी इंदौर 1 सीट से अपना उम्मीदवार बनाया है। माना जा रहा है कि हिमाचल प्रदेश समेत कुछ अन्य राज्यों में गुटबाजी के कारण सत्ता गंवाने के बाद पार्टी ने यह फैसला लिया। उसने बड़े कद वाले नेताओं को विधानसभा चुनाव लड़ाकर गुटबाजी रोकने की कोशिश की, लेकिन उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट आने के कुछ दिनों में ही असंतोष की आवाज उठने लगी है।
भाजपा ने 18 अगस्त को उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की थी, तब से ही कुछ सीटों पर असंतोष की आवाजें उठ रही हैं। इनमें से प्रमुख हैं चाचौड़ा की ममता मीणा, जिन्होंने प्रियंका मीणा के नामांकन से नाराज होकर पार्टी छोड़ दी और आम आदमी पार्टी (आप) में शामिल हो गईं। उम्मीदवारों को लेकर पार्टी के भीतर तनाव के बारे में पूछे जाने पर भाजपा के प्रदेश महामंत्री भगवानदास सबनी ने कहा, ‘चुनाव के दौरान हर कार्यकर्ता सोचता है कि उसे टिकट मिलना चाहिए। पार्टी ने जीतने की सबसे ज्यादा संभावना वाले उम्मीदवारों को टिकट देने का फैसला किया है। भाजपा में गुटबंदी ज्यादा नहीं है, लेकिन ऐसे मामलों में हम उनसे बात करने की कोशिश करेंगे, संगठन उनसे बात करेगा।’ भाजपा ने सीधी विधानसभा क्षेत्र से तीन बार के विधायक केदारनाथ शुक्ला की जगह सांसद रीति पाठक को उम्मीदवार बनाया है। शुक्ला के समर्थक ने एक आदिवासी युवक पर पेशाब कर दिया था। इस कारण उनका भाजपा से नाता टूट गया। रीति पाठक को उम्मीदवार बनाए जाने के बाद पार्टी के पूर्व सीधी जिला अध्यक्ष राजेश मिश्रा ने विभिन्न पदों से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने कहा, ‘मैंने पार्टी नहीं छोड़ी है, लेकिन सीधी में भाजपा के विभिन्न निकायों से इस्तीफा दे दिया है। मुझे इस फैसले से बहुत बुरा लगा। लेकिन मैं हमेशा की तरह भाजपा के लिए काम करता रहूंगा। यह मेरा विरोध का तरीका है।
उधर, सतना में चार बार के सांसद गणेश सिंह को पार्टी ने इस भरोसे से टिकट दिया कि वो यह सीट कांग्रेस से छीन लेंगे। मौजूदा विधायक डब्बू सिद्धार्थ सुखलाल कुशवाहा ने पिछले चुनाव में भाजपा की लगातार जीत का क्रम तोड़ दिया था। 2003 के बाद भाजपा को सतना में पहली बार 2018 को विधानसभा चुनावों में ही हार मिली थी। लेकिन भाजपा के पूर्व जिला उपाध्यक्ष रत्नाकर चतुर्वेदी ने इस फैसले के विरोध में पार्टी छोड़ दी है। उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने का ऐलान भी कर दिया। भाजपा को केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों और पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं के बीच गुटबाजी से भी जूझना पड़ रहा है। हाल के महीनों में सिंधिया के कई समर्थकों ने पार्टी छोड़ दी है और कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। मैहर में सिंधिया समर्थक श्रीकांत चतुर्वेदी को टिकट दिया गया है, जिससे मौजूदा विधायक नारायण त्रिपाठी नाराज हैं। उन्होंने 2018 में कांग्रेस के टिकट पर लड़े श्रीकांत चतुर्वेदी को हराया था। त्रिपाठी ने अलग विंध्य प्रदेश की लड़ाई लड़ने के लिए विंध्य जनता पार्टी (VJP) का गठन किया है। उन्होंने कहा, ‘मैंने भाजपा से इस्तीफा नहीं दिया है। मुझे पार्टी से टिकट नहीं चाहिए था। मैं तय कर रहा हूं कि वीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ना है या नहीं।’
इधर, श्योपुर में पूर्व विधायक दुर्गालाल विजय को फिर से टिकट दिए जाने पर पार्टी के कार्यकर्ताओं में असंतोष है। विजय ने 2003 और 2013 का चुनाव जीता था, लेकिन 2008 और 2018 में वो हार गए थे। इसके बावजूद पार्टी ने उन पर भरोसा जताया है। भाजपा के पूर्व जिला अध्यक्ष राधेश्याम रावत ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं पर मनमानी का आरोप लगाते हुए गुरुवार को इस्तीफा दे दिया। रावत ने कहा कि पिछले 30 वर्षों से एक ही व्यक्ति को प्राथमिकता दी जा रही है। उन्होंने कहा कि मीणा समाज के किसी भी व्यक्ति को पार्टी में कोई पद नहीं दिया गया है और एक ऐसे उम्मीदवार को टिकट दिया गया है जो बड़े अंतर से हार जाता है। उज्जैन जिले के नागदा-खचरोद निर्वाचन क्षेत्र में डॉ. तेज बहादुर सिंह की उम्मीदवारी का पार्टी के जिला समन्वयक (कानूनी शाखा) लोकेंद्र मेहता ने विरोध किया है। मेहता ने पार्टी छोड़ दी है और निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने का फैसला किया है। मेहता ने कहा कि मैं 25 वर्षों से भाजपा में हूं और हिंदुत्व की विचारधारा और केंद्र और राज्य सरकार की नीतियों को प्रचारित करने के लिए हर गांव गया हूं। उन्होंने जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर चैंबर में बैठने वाले नेताओं को टिकट दे दिए हैं। हम कांग्रेस के गढ़ों में नेताओं को ऊपर से उतारने करने की रणनीति को नहीं समझ पा रहे हैं।
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