रसाल से डरी भाजपा ने लहार में उतारे संघ के योद्धा...
राजनीतिक सफलता की फसल काटने बागी मैदान में ...
भिण्ड। मध्य प्रदेश की सर्वाधिक चर्चित विधान सभा क्षेत्रों में से एक लहार में भारतीय जनता पार्टी को अलविदा कहकर बहुजन समाज पार्टी के हाथी पर सवार हुए पूर्व विधायक रसाल सिंह को मिल रहे समर्थन से डरी हुई भाजपा ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रशिक्षित योद्धाओं की लम्बी-चौड़ी फौज उतार दी है। यह फौज ऐसे पुराने भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं के घर-घर जाकर भाजपा का प्रचार करने के लिए मनाने का प्रयास कर रही है, जो लहार विधान सभा सीट पर पार्टी के प्रत्याशी चयन को लेकर नाराज हैं और कहीं न कहीं बसपा प्रत्याशी रसाल सिंह का साथ दे रहे हैं।
दरअसल कांग्रेस प्रत्याशी डाक्टर गोविन्द सिंह ने जब से लहार की सियासत में कदम रखा लहार विधान सभा क्षेत्र में भाजपा अस्तित्वहीन हो गई। इसके गवाह साल 2003 और साल 2008 के चुनाव नतीजे हैं। जब भाजपा के अधिकृत प्रत्याशियों की इस विधान सभा क्षेत्र में जमानत जब्त हो गई थीं। तब साल 2003 में भाजपा के अम्बरीश शर्मा को महज 8 हजार 621 मत और साल 2008 में भाजपा की मुन्नीदेवी त्रिपाठी को मात्र 2 हजार 917 मत मिले थे। लहार विधानसभा क्षेत्र में डॉक्टर गोविन्द सिंह की सियासी जड़ों को हिलाने का साहस साल 2003 और साल 2008 में भाजपा द्वारा चुनावी रण में उतारा कोई भी प्रत्याशी ने नहीं दिखा पाया।
लगातार मिल रही शर्मनाक पराजय से चिंतित भाजपा नेतृत्व ने लहार में भाजपा का मजबूत गढ़ बनाने का जिम्मा अपने पूर्व विधायक रसाल सिंह को सौंपा। रसाल सिंह के नेतृत्व में भाजपा ने साल 2013 के विधान सभा चुनाव में लम्बी छलांग लगाई। इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी रसाल सिंह को साल 2003 और साल 2008 की तुलना में 46 हजार 739 मत मिले। भाजपा के मतों में अचानक हुए इस इजाफे से गदगद पार्टी नेतृत्व ने साल 2018 के विधान सभा चुनाव में एक बार फिर रसाल सिंह को ही प्रत्याशी बनाया। हालांकि इस चुनाव के नतीजे भी पूर्व चुनाव परिणामों की तरह ही रहे और भाजपा एक बार फिर यह सीट हार गई। लेकिन इस बार भाजपा प्रत्याशी रसाल सिंह को साल 2013 की अपेक्षा 53 हजार 40 मत मिले। मतलब साफ था कि वक्त के साथ-साथ रसाल सिंह ने न केवल भाजपा को सुदृढ़ बनाया, बल्कि अपने और कांग्रेस प्रत्याशी डाक्टर गोविन्द सिंह के बीच हार-जीत के फासले को भी घटा दिया। लेकिन इस चुनाव में जब रसाल सिंह कांग्रेस को मात देने की पूरी व्यूहरचना रच चुके थे। भाजपा ने ऐन वक्त पर उनकी जगह भाजपा के बसपा छोड़कर भाजपा में नेता को प्रत्याशी बना दिया।
अब भाजपा इस बात को लेकर डरी हुई है कि कहीं एक बार फिर भाजपा की हालात साल 2003 और 2008 जैसी तो नहीं होने वाली है। इसी डर की वजह से भाजपा ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रशिक्षित योद्धाओं की पूरी फौज लहार के चुनावी महासंग्राम में उतार दी है। जो भाजपा के नाराज नेताओं और कार्यकर्ताओं के घर-घर जाकर पार्टी प्रत्याशी अम्बरीश शर्मा को जिताने के लिए प्रचार करने के लिए मनाने का काम कर रही है। इसकी पूरी निगरानी संघ के एक राष्ट्रीय पदाधिकारी जिनकी सिफारिश पर लहार में भाजपा ने प्रत्याशी उतारा है वह सीधेतौर पर कर रहे हैं।
साल 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार डाक्टर गोविन्द सिंह को मिले 53 हजार 012 मतों के मुकाबले में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार रसाल सिंह को 46 हजार 739 मत मिले, लेकिन एक बार फिर भाजपा के पूर्व विधायक मथुराप्रसाद महंत के पुत्र रोमेश महंत के बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार के रुप में चुनावी रण में उतरने से भाजपा के हाथ से जीत का सुनहरा मौका छिटक गया। क्योंकि भाजपा के पूर्व विधायक के पुत्र को बसपा उम्मीदवार के रुप में 34 हजार 585 मत प्राप्त हुए थे। जबकि कांग्रेस उम्मीदवार डाक्टर गोविन्द सिंह और भाजपा उम्मीदवार रसाल सिंह के बीच हार-जीत का अन्तर महज 6 हजार 273 मतों का रहा था।
लहार विधानसभा क्षेत्र में भाजपा साल 2018 के विधान सभा चुनाव में भी जीत के करीब पहुंचकर भी अपनी ही पार्टी के बागी अम्बरीश शर्मा गुड्डू की बगावत के चलते 9073 मतों के अंतर से दूर रही गई। इस चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार डाक्टर गोविन्द सिंह को 62 हजार 113 मत भाजपा उम्मीदवार रसाल सिंह को 53 हजार 40 मत तथा बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार के रुप में लड़े भाजपा के बागी अम्बरीश शर्मा गुड्डू को 31 हजार 363 मत मिले थे। मतलब साफ है कि भाजपा की ओर से रसाल सिंह ने पार्टी के लिए जो जमीन तैयार की उस पर राजनीतिक सफलता की फसल काटने के लिए बागी मैदान में आ गए।
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