G News 24 :1 फूल के बिना अधूरा माना जाता है पितरों का तर्पण इसके बिना संतुष्ट नहीं हो पाते पूर्वज

पिंडदान के लिए होता है कांश  के फूलों का इस्तेंमाल...

1 फूल के बिना अधूरा माना जाता है पितरों का तर्पण इसके बिना संतुष्ट नहीं हो पाते पूर्वज

सनातन धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व बताया जाता है. भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से शुरू करके अश्विन माह की अमावस्या तक पितृ पक्ष रहता है. ये 16 दिन पितरों के निमित्त पूजा-पाठ, श्राद्ध कर्म, तर्पण और पिंडदान आदि किया जाता है. कहते हैं कि ये 16 दिन पितर वंशजों के बीच होते हैं. उनके द्वारा किए गए श्राद्ध कर्म से प्रसन्न होकर वे उन्हें वंश वृद्धि, सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं.  इस साल 29 सितंबर से पितृ पक्ष का आरंभ हो रहा है. वहीं इसका समापन 14 अक्टूबर के दिन होगा.  

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पितृ पक्ष में पितरों का श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान आदि करने के लिए एक विशेष फूल का इस्तेमाल किया जाता है. इसे काश के फूल के नाम से जानते हैं. कहते हैं कि अगर पूजा में काश के फूलों का इस्तेमाल न किया जाए, तो व्यक्ति का श्राद्ध कर्म पूरा नहीं माना जाता. आइए जानते हैं पितरों के श्राद्ध में काश के फूल का क्या महत्व है और इस दौरान किन फूलों का इस्तेमाल किया जाता है. 

पितृ पक्ष में करें इस फूल का प्रयोग 

शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध की पूजा अन्य पूजा से काफी अलग होती है. इतना ही नहीं, श्राद्ध कर्म के दौरान कुछ चीजों का खास ख्याल रखा जाता है. पितृ पक्ष में हर फूल को श्राद्ध और तर्पण में शामिल नहीं किया जा सकता. इसके लिए सिर्फ काश के फूलों का इस्तेमाल किया जाता है.  बता दें कि पितृ पक्ष में श्राद्ध-पूजन में मालती, जूही, चम्पा सहित सफेद फूलों का इस्तेमाल किया जाता है.  इसके साथ ही इस बात का भी खास ख्याल रखें कि इस दौरान तुलसी और भृंगराज का भी इस्तेमाल भूलकर न करें. 

बता दें कि पितृ पक्ष में श्राद्ध और तर्पण के दौरान बेलपत्र, कदम्ब, करवीर, केवड़ा, मौलसिरी और लाल -काले रंग के फूलों का प्रयोग वर्जित माना गया है. ऐसा माना जाता है कि पितर इन्हें देखकर निराश होकर लौट जाते हैं. ऐसे में पितृ पक्ष के दौरान इस तरह के फूलों के इस्तेमाल से बचें. पितरों के नाराज होने से व्यक्ति के पारिवारिक और आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है.   

पितृ तर्पण में क्यों महत्वपूर्ण हैं काश का फूल 

बता दें कि कई पुराणों में इस बात का जिक्र मिलता है कि पितृ तर्पण के दौरान काश के फूल का ही इस्तेमाल शुभ माना गया है. जिस तरह तर्पण के दौरान कुश और तिल का खास प्रयोग किया जाता है, उसी प्रकार पितृ तर्पण में काश के फूल का होना आवश्य है. कहते हैं कि पितरों को प्रसन्न करने के लिए काश के फूलों का प्रयोग शुभ माना गया है.

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