26 अगस्त अंतर्राष्ट्रीय महिला समानता दिवस ...
1893 में अंतर्राष्ट्रीय महिला समानता की शुरुआत थी लेकिन क्या उसे आजतक मिल पाई है समानता !
महिला समानता दिवस का संक्षिप्त इतिहास
महिला समानता दिवस मनाने की औपचारिक शुरुआत 1871 से हुई लेकिन न्यूजीलैंड पहला देश बना जिसने 1893 में पहली बार महिला समानता को लागू किया। अमरीका में '26 अगस्त', 1920 को 19वें संविधान संशोधन के माध्यम से पहली बार महिलाओं को मतदान का अधिकार प्राप्त हुआ। इसके पहले वहाँ महिलाओं को द्वितीय श्रेणी नागरिक का दर्जा प्राप्त था। महिलाओं को समानता का दर्जा दिलाने के लिए लगातार संघर्ष करने वाली एक महिला वकील बेल्ला अब्ज़ुग के प्रयास से 1971 से 26 अगस्त को 'महिला समानता दिवस' के रूप में मनाया जाने लगा।
भारत में महिलाओं की स्थिति
अन्य देशों की भांति भारत में महिलाओं को समान अधिकारों के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ा, अर्थात् स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात महिलाओं को समान अधिकार प्राप्त हुए। भारतीय संविधान महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकारों की गारंटी प्रदान करता है। यद्यपि वर्तमान समय में महिलाएं पुरुषों से कंधे से कंधा मिला कर प्रत्येक क्षेत्र में भाग ले रही हैं।
कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जहाँ महिलाओं ने अपनी योग्यता का परचम ना लहराया हो।
शिक्षा, विज्ञान, खेल, प्रौद्योगिकी, व्यापार, मीडिया, मनोरंजन प्रत्येक क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी देखने को मिलती है। इसके बावज़ूद भारत में महिलाओं की दयनीय दशा देखने को मिलती है। आए दिन महिलाओं के विरुद्ध हिंसा की घटनायें सुनने में आती रहती है। महिलाओं के विरुद्ध कई प्रकार की हिंसाएँ देखने को मिलती है; जैसे कि हत्या, बलात्कार, छेड़छाड़, अपहरण, एसिड अटैक, दहेज़ हत्या, हॉनर किलिंग, जबरन गर्भपात, भ्रूण हत्या इत्यादि। हर साल 26 अगस्त को 'महिला समानता दिवस' तो मनाया जाता है, लेकिन दूसरी ओर महिलाओं के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार आज भी जारी है। हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी और प्रतिशत कम है। इसलिए आवश्यकता है कि लोगों की मानसिकता में बदलाव लाया जाए।
भारत में महिला साक्षरता
भारत में महिला साक्षरता दर में महिलाएं आज भी पुरुषों से पीछे हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार महिलाओं की साक्षरता दर में 12 प्रतिशत की वृद्धि जरूर हुई है, लेकिन केरल में जहाँ महिला साक्षरता दर 92 प्रतिशत है, वहीं बिहार में महिला साक्षरता दर अभी भी 53.3 प्रतिशत है। आज भी समाज की मानसिकता पूरी तरह नही बदली नहीं है। प्रगति और विकास के मामले में दक्षिण अफ्रीका, नेपाल, बांग्लादेश एवं श्रीलंका भले ही भारत से पीछे हों, परंतु स्त्रियों और पुरुषों के बीच सामनता की सूची में इनकी स्थिति भारत से बेहतर है। स्वतंत्रता के छह दशक बाद भी ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में महिलाओं को दोयम दर्जे की मार से जूझना पड़ रहा है। समाज ये भूल जाता है कि महिलाओं के प्रतिनिधित्व के बगैर किसी भी क्षेत्र में काम ठीक से और पूर्णता के साथ संपादित नहीं हो सकता।
भारत में महिला सशक्तिकरण
भारतीय संविधान के प्रावधान के अनुसार, पुरुषों की तरह सभी क्षेत्रों में महिलाओं को बराबर अधिकार देने के लिये कानूनी स्थिति है। भारत में बच्चों और महिलाओं के उचित विकास के लिये इस क्षेत्र में महिला और बाल विकास विभाग अच्छे से कार्य कर रहा है। विकास का मुख्य उद्देश्य महिलाओं को समर्थ बनाना है क्योंकि एक सशक्त महिला अपने बच्चों के भविष्य को बनाने के साथ ही देश का भविष्य का सुनिश्चित करती है। विकास की मुख्यधारा में महिलाओं को लाने के लिये भारतीय सरकार के द्वारा कई योजनाओं को निरुपित किया किया गया है। पूरे देश की जनसंख्या में महिलाओं की भागीदारी आधे की है और महिलाओं एवं बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिये हर क्षेत्र में इन्हें स्वतंत्रता की जरुरत है।
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