महंगाई डायन फेर देगी रिजर्व बैंक की कोशिशों पर पानी...
सब्जियां बनीं खलनायक !
कई राज्यों में इस साल के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनाव और अगले साल अप्रैल-मई में होने वाले लोकसभा चुनाव को देखते हुए मुद्रास्फीति को काबू में रखना सरकार के लिए एक राजनीतिक प्राथमिकता भी होगी। सब्जियों और मसालों की महंगाई से आम लोगों के ही पसीने नहीं छूट रहे हैं, बल्कि यह सरकार और रिजर्व बैंक जैसे नीति निर्माताओं के भी पसीने छुड़ा रही है। बीते दो महीने से काबू में दिख रही महंगाई की दर जुलाई और अगस्त में जोरदार उछाल मार सकती है। जापानी ब्रोकरेज फर्म नोमुरा ने शुक्रवार को कहा कि जुलाई और अगस्त के महीनों में सब्जियों की कीमतों के आसमान छूने से खुदरा मुद्रास्फीति के एक बार फिर छह प्रतिशत के ऊपर पहुंच जाने की आशंका है। अगर ऐसा होता है तो यह रिजर्व बैंक के मुद्रास्फीति के संतोषजनक स्तर से अधिक होगा।
सब्जियां बनीं खलनायक
नोमुरा ने अपनी टिप्पणी में कहा कि सब्जियों के दाम चढ़ने से सजग हुई सरकार खाद्य उत्पादों की आपूर्ति सुधारने के लिए कई कदम उठा सकती है। एक दिन पहले ही सरकार ने गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर रोक लगाई है। नोमुरा ने कहा, "जुलाई और अगस्त में खुदरा मुद्रास्फीति के छह प्रतिशत से अधिक रहने के आसार हैं। इसके पीछे सब्जियों के दाम में आई तेजी की अहम भूमिका होगी। हालांकि हमें उम्मीद है कि सरकार आपूर्ति को सुधारने के लिए कदम उठाएगी।"
चुनावी साल में सरकार की टेंशन बनेगी महंगाई
ब्रोकरेज फर्म ने कहा कि इस साल के आखिर में कई राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव और अगले साल अप्रैल-मई में होने वाले लोकसभा चुनाव को देखते हुए मुद्रास्फीति को काबू में रखना सरकार के लिए एक राजनीतिक प्राथमिकता भी होगी। जून में खुदरा मुद्रास्फीति बढ़कर 4.81 प्रतिशत हो गई जबकि मई में यह 4.31 प्रतिशत रही थी। इसके लिए खाद्य उत्पादों की कीमतों में आई तेजी को जिम्मेदार बताया गया था।
रिजर्व बैंक पर होगी सबकी निगाहें
रिजर्व बैंक ने पिछले साल खुदरा मुद्रास्फीति के उच्च स्तर पर पहुंच जाने के बाद नीतिगत रेपो दर में वृद्धि कर मांग पर काबू पाने की रणनीति अपनाई। लगातार कई बार रेपो दर में वृद्धि की गई और यह चार प्रतिशत से बढ़कर 6.50 प्रतिशत पर पहुंच गई। हालांकि पिछली दो द्विमासिक समीक्षा बैठकों में रेपो दर को स्थिर रखा गया है।
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