वह अटल नेतृत्व ही था जिसने कारगिल में पाकिस्तान को कर दिया था चित !
24 साल पहले 10 मई को हुई थी ऑपरेशन विजय की शुरुआत और 26 जुलाई 1999 को पाक पर विजय पाई
हर साल 26 जुलाई को भारत में कारगिल विजय दिवस बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. कारगिल में मई से जुलाई 1999 के बीच हुई जंग में भारतीय सेना के वीर जवानों ने पाकिस्तान को धूल चटा दी थी.आज पूरा देश कारगिल युद्ध में शहीद भारतीय सैनिकों के बलिदान और शौर्यगाथा को याद कर रहा है.
भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने फरवरी 1999 में लाहौर स्थित गवर्नर हाउस के पास एक हेलीपैड पर एक बहुत बड़ी कूटनीतिक घटना देखी थी, जिस पर उस वक्त लोगों का ध्यान नहीं गया होगा. तत्कालीन पाक सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ ने भारत के प्रधानमंत्री की अगवानी करते समय आधिकारिक सैन्य वर्दी पहनी थी, जबकि राजनीतिक प्रोटोकॉल के तहत उन्हें कोई अन्य पोशाक पहननी चाहिए थी. पूरे देश में, इस घटनाक्रम को वाजपेयी के अभूतपूर्व शांति प्रस्तावों के खिलाफ पाकिस्तान की गहरी असहमति के प्रदर्शन के रूप में देखा गया था. इसका सबूत भारत पर थोपा गया कारगिल युद्ध था, जिसमें भारतीय सेना ने अटल जी नेतृत्व में भारत की सैन्य चौकियों पर कब्जा करने वाले दुश्मनों को ढेर करने के बाद पाकिस्तान को ऐसी धूल चटाई थी, जिसे वो कभी भुला नहीं पाएगा.
इस घटनाक्रम के एक महीने बाद मार्च 1999 में, वाजपेयी ने नई दिल्ली के साथ शांति वार्ता के लिए इस्लामाबाद के दूत नियाज नाइक को फोन करके उनसे पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को एक संदेश भेजने के लिए कहा. ये संदेश था कि गर्मियां आते ही पाकिस्तानी फौज भारत के जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा पार कर आने वाले आतंकवादियों को कवर फायर देना बंद कर देंगे. लेकिन कुछ समय बाद भारत में हर किसी को हैरानी होने वाली थी कि उस साल की गर्मियां दशकों से चले आ रहे भारत-पाकिस्तान संघर्ष की पिछली गर्मियों से कहीं अलग होने वाली थीं. इन दोनों घटनाओं का जिक्र वाजपेयी की दो जीवनियों में किया गया है. पहली किताब का नाम है 'वाजपेयी: द इयर्स दैट चेंज्ड इंडिया', जिसके लेखक उनके पूर्व निजी सचिव शक्ति सिन्हा हैं, वही दूसरी किताब का नाम 'अटल बिहारी वाजपेयी: ए मैन ऑफ ऑल सीजन्स' हैं जिसके लेखक किंगशुक नाग हैं.
इसके बाद आता है 3 मई 1999 का वो दिन जब कारगिल में एक चरवाहे ने नियंत्रण रेखा (LoC) से कुछ किलोमीटर की दूरी पर कई पाकिस्तानी सैनिकों को देखा. उसने भारतीय सेना को ये जानकारी दी तो पाकिस्तानी फौजियों ने जांच करने गए भारत के वीर जवानों पर घात लगाकर हमला किया गया और गोला-बारूद के ढेर को उड़ा दिया. इसके बाद वाजपेयी को इस घटनाक्रम की अनौपचारिक जानकारी दी गई. उन्होंने फौरन आपात चर्चा के लिए कैबिनेट बैठक बुलाई.
भारतीय सेना को इस बात की खबर लग चुकी थी कि करीब 1500 से 2500 पाकिस्तानी सैनिक और आतंकी लड़ाके 16000 फीट की ऊंचाई पर एलओसी के भारतीय हिस्से पर कब्जा कर चुके थे. हालांकि पाकिस्तान दावा करता रहा कि हजारों फीट उंचाई पर उसके सैनिक नहीं बल्कि नॉन स्टेट एक्टर थे. जबकि वो थे पाकिस्तानी फौजी जो अपनी नापाक हरकतों के तहत नीचे उस श्रीनगर-लेह राजमार्ग पर फायरिंग कर रहे थे, जो उत्तरी कश्मीर में नागरिक और सैन्य आपूर्ति की लाइफ लाइन थी.
भारतीय सेना पाकिस्तानियों को खदेड़ने के लिए गोलाबारी कर रही थी, तब वाजपेयी ने ऐसा रणनीति बनाई, जिसने अमेरिका और पश्चिमी देशों की सहानुभूति को भारत के पक्ष में कर दिया. वाजपेयी ने भारतीय वायु सेना के विमानों को नियंत्रण रेखा पार नहीं करने का आदेश दिया, जो अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए एक संकेत था कि भारत, पाकिस्तान के विपरीत, अंतरराष्ट्रीय सीमा का सम्मान करता है. कुछ समय बाद अपने स्वतंत्रता दिवस संबोधन में अपने उस अपरंपरागत निर्णय के बारे में वाजपेयी ने कहा था- हम जानते थे कि हम दृढ़ता से बचाव करेंगे, लेकिन आक्रमण नहीं करेंगे.
इस बीच 12 जून 1999 को, कारगिल में लड़ाई के बीच, तत्कालीन पाकिस्तानी विदेश मंत्री सरताज अजीज ने नई दिल्ली का दौरा किया. अजीज ने कारगिल में LoC की यथास्थिति पर वापस जाने पर सहमति व्यक्त किए बिना, इस तरह से युद्धविराम का आह्वान किया कि उसके कब्जे वाली सब भारतीय चौकियां पाकिस्तान की सीमा में आ जाएं. अजीज ने बहाना बनाया कि नियंत्रण रेखा 'अस्पष्ट' थी, इसलिए अनजाने में शायद कुछ सीमा का उल्लंघन हो गया होगा. जानकारों का कहना है कि पाकिस्तान का ये बयान एक दुस्साहसी कदम था. सरताज अजीज की दिल्ली यात्रा के बाद, वाजपेयी ने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के साथ फोन पर हुई बातचीत में ये साफ कर दिया कि 'या तो पाकिस्तानी खुद भारतीय क्षेत्र को खाली कर दें, या भारत उन्हें जिस तरह से बेहतर समझेगा, उन्हें बाहर निकाल कर खदेड़ देगा'.
आज विजय दिवस है यानी पाकिस्तानी सेना को धूल चटाने को याद करने का दिन है. आज इस जीत को 24 साल पूरे हो गए. पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ने के लिए 10 मई को ऑपरेशन विजय की शुरुआत हुई. भारतीय सेना ने कारगिल की दुर्गम पहाड़ियों पर चढ़ाई शुरू की. दुश्मन हजारों फीट ऊंची चोटियों पर कब्जा जमाए था. वो आसानी से नीचे गोलियां चला रहा था. मुश्किल हालातों के बावजूद करीब 60 दिन तक चले इस युद्ध में भारत माता के अमर सपूतों की बहादुरी से भारत ने इस युद्ध में जीत दर्ज की. इस युद्ध में करीब 500 सैनिक शहीद हुए और करीब 1300 सैनिक जख्मी हुए थे. 26 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध समाप्त हुआ.
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