केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान का कारनामा मशीन में विकसित होंगे चूजे...
जो मुर्गियां अंडे नहीं देतीं (बूढ़ी मुर्गियां ) उनका बनेगा अचार !
बरेली में केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान (सीएआरआई) के वैज्ञानिकों ने अंडे सेने की तकनीक विकसित की है। अंडों को मशीन में रखने के कुछ दिन बाद चूजे विकसित हो जाएंगे। इससे पोल्ट्री किसानों को अंडों की निगरानी करने की जरूरत नहीं होगी। डेलापीर के एक कारोबारी को तकनीक हस्तांतरित कर दी गई है। यह मशीन जल्द ही बाजार में उपलब्ध होगी। वहीं जो मुर्गियां अंडे नहीं देतीं, उनके मांस का अचार बनाया जा सकेगा।
वैज्ञानिक डॉ. जयदीप जयवंत रोकाडे के मुताबिक पोल्ट्री फार्म हो या घर, अंडे से चूजे निकालने के लिए निगरानी की जरूरत होती है। अक्सर दूसरे जानवर अंडों को खा लेते हैं या जाने-अनजाने इसके फूटने की आशंका भी रहती है। इस समस्या के समाधान के लिए दो साल पहले शोध शुरू किया गया था।
उन्होंने बताया कि अंडों को सेने में सर्वाधिक भूमिका तापमान की होती है। 20 डिग्री से ज्यादा तापमान होने पर ही अंडों में चूजे के विकास की प्रक्रिया शुरू होती है। जब तक चूजे बाहर न आ जाएं, तब तक मुर्गियों का क्रय-विक्रय भी नहीं किया जा सकता। कई प्रयोगों के बाद कैरी पोर्टेबल पोल्ट्री इंक्यूबेटर तकनीक तैयार की गई जो चूजे के विकास के लिए अनुकूल माहौल देती है।
एक बार में 25 अंडे सेने की व्यवस्था
डॉ. जयदीप ने बताया कि संस्थान में तैयार इंक्यूबेटर में एक बार में अधिकतम 20-25 अंडे रख सकते हैं। एक बार में इतने अंडे न हों तो दस दिन तक प्राप्त अंडों को सुरक्षित स्थान पर रख लें, जहां तापमान 20 डिग्री से नीचे होना चाहिए। दसवें दिन इंक्यूबेटर में सभी अंडों को एक साथ रखकर बंद कर दें। एक बार इंक्यूबेटर बंद होने पर खोलना नहीं चाहिए। विकसित होने पर अंडे से चूजे निकलकर खुद ही बाहर आ जाएंगे।
अंडा न देने वाली मुर्गियों से हो सके आय
डॉ. रोकाडे ने बताया कि इंक्यूबेटर के अलावा वे मुर्गियां जो अंडे नहीं देतीं या बुजुर्ग हो चुकी हैं, उनके मांस से अचार बनाने की तकनीक भी तैयार की है। इससे पोल्ट्री किसानों को ऐसी मुर्गियों से भी आय होगी। ऑयल बेस्ड स्पाइसी चिकन मीट पिकल तकनीक से तैयार अचार में 55 फीसदी प्रोटीन होगा जो अन्य किसी उत्पाद में नहीं होता। इस अचार को छह माह तक सामान्य तापमान में रखा जा सकता है।
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