G.NEWS 24 : जय विलास महल परिसर में स्थित सरस्वती शिशु मंदिर नदी गेट न हटाने के लिए लिखा श्री सिंधिया को पत्र

सरस्वती शिशु मंदिर के पूर्व छात्र  विधायक श्री पाठक ने विद्यालय का अस्तित्व बचाने के लिए…

जयविलास महल परिसर में स्थित सरस्वती शिशु मंदिर न हटाने के लिए लिखा सिंधिया को पत्र

ग्वालियर l जय विलास महल परिसर में स्थित सरस्वती शिशु मंदिर नदी गेट के पूर्व छात्र होने के नाते विधायक प्रवीण पाठक ने केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को पत्र लिखकर निवेदन किया है कि वे इस विद्यालय भवन को खाली कराने के अपने आदेश पर पुनर्विचार करें एवं हजारों बच्चों के भविष्य को सुरक्षित रखें। विधायक श्री पाठक ने श्री सिंधिया को लिखे पत्र में कहा है कि मैं आपको यह पत्र नितांत निजी भाव एवं अपनी मातृ संस्था के प्रति अगाध प्रेम की भावना से ओतप्रोत होकर लिख रहा हूं। मुझे जब से ज्ञात हुआ है कि आपके द्वारा जयविलास परिसर में स्थित कई दशकों पुराने ज्ञान के मंदिर, शिक्षा एवं संस्कारों के उत्कृष्ट केंद्र सरस्वती शिशु मंदिर विद्यालय को खाली कराया जा रहा है, चूंकि उक्त विद्यालय का पूर्व छात्र होने के नाते मेरी भावनाऐं आहत हुई हैं। हमारे विद्यालय सरस्वती शिशु मंदिर ने शिक्षा और संस्कार के नए और ऐतिहासिक कीर्तिमान स्थापित किए हैं । सरस्वती शिशु मंदिर विद्यालय से मेरी भावना का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि, मैंने हमारी पार्टी के वरिष्ठ नेता के द्वारा सरस्वती शिशु मंदिर विद्यालय के संबंध में दिए विरोधाभासी विचारों का भी विरोध किया था ।

महोदय निःसंदेह जय विलास महल आपकी निजी संपत्ति है और इसके साथ ही जुड़ी हुई अन्य संपत्तियों के मालिकाना हक से जुड़े सभी स्वत्व व अधिकार आपके एकमेव हैं, पूर्व विद्यार्थी होने एवं इस मातृ संस्था से आत्मिक जुड़ाव होने के नाते मेरा मानना है कि आपके व्यक्तित्व, विरासत और आपकी वैभव संपन्नता के आगे विशाल महल के एक छोटे से कोने में संचालित यह विद्यालय आपकी साम्पत्तिक विरासत के आगे ऊंट के मुंह में जीरा के समान है।  इससे जुड़ा एक महत्वपूर्ण पक्ष और जनमानस की राय यह है कि, आपकी दादी कैलासवासी राजमाता सिंधिया ने अपने उदार हृदय के साथ सरस्वती शिशु मंदिर को महल में स्थान उपलब्ध कराया था। निजी रूप से मेरा मानना है कि कैलाशवासी राजमाता सिंधिया ने शाही परिवार को लोकोन्मुख बनाने के लिए ही शिक्षा के केंद्र स्थापित किए थे और इस विद्यालय से उनकी कई स्मृतियां जुड़ी हुई है। आदरणीय राजमाता ने उनकी आत्मकथा "राजपथ से लोकपथ" में तो लिखा भी है वे जयविलास महल में ही अंचल के विद्यार्थियों हेतु विश्वविद्यालय बनाना चाहती थीं।

विधायक श्री पाठक ने पत्र में आगे लिखा है कि आप से मेरा आग्रह है कि महल परिसर में चलने वाले सरस्वती शिशु मंदिर से मेरे जैसे सामान्य परिवारों के हजारों बच्चों ने शिक्षा प्राप्त की है और हजारों बच्चे आज भी यहां से शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। जाहिर है यह विद्यालय आपके पूर्वजों द्वारा बच्चों के विद्यार्जन हेतु आरंभ किया गया था। आपके द्वारा महल परिसर स्थित इस शिक्षा भवन को खाली कराने से आशंका है कि यह शिक्षा मंदिर बंद न हो जाए जो कि शिक्षार्थियों के लिए गहरा आघात होगा और आपकी पूज्य दादी के सपनों पर एक गहरी चोट भी होगी। श्री पाठक ने पत्र के अंत में लिखा है कि मेरा आपसे निजी तौर पर सविनय आग्रह है कि आप अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने का प्रयास करें और सरस्वती शिशु मंदिर परिसर को यथावत रहने देवें। पुनश्च आत्मीय निवेदन है कि यह पत्र मैं आपको विशुद्ध पूर्व विद्यार्थी के नाते लिख रहा हूं इसे किसी भी प्रकार के राजनीतिक संदर्भ या अर्थों में व्याख्यायित करने का प्रयास नहीं किया जाए।

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