जो जीवन शैली ढूंढ रहे है कचरें में…
आओ उन्हें पढ़ाएं हम
अनपढ़ रहकर बदल गई है,
जिनकी जीवन शैली l
ढूंढ रहे है कचरें में,
पालीथिन की थैली,
आओ उन्हें पढ़ाएं हम l l
झूठे बर्तन माँज रहे हैं,
जिनके कोमल हाथ,
जिन्हें नहीं मिल पाया अब तक,
पढ़े लिखों का साथ l l
उनको गले लगाएं हम,
जिन्हें नहीं है खबर आज भी,
प्यार किसे कहते हैं l l
भाग्य भरोसे ही रहकर जो,
भूख प्यास सहते हैं,
उन पर प्यार लुटाएँ हम l l
आओ उन्हें पढ़ाएं हम....आओ उन्हें पढ़ाएं हम l l
-दिव्या
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