जलियांबाग वाला हत्याकांड पर विशेष
निहत्थों की मौत के जख्म हरे कर देती है खून से सनी लाल माटी !
जब भी 13 अप्रैल की तारीख आती है तब निहत्थों की मौत के जख्म हरे कर देती है जलियांवाला बाग की खून से सनी लाल माटी। 13 अप्रैल 1919 दुनिया के इतिहास की सबसे काली तारीख के रूप में दर्ज है। इसी दिन सैकड़ों निहत्थे और निर्दोष, महिला, पुरुष व बच्चों पर गोलियां बरसा दी गईं थी। स्थान था अमृतसर का जलियांवाला बाग और इस जघन्य अपराध का गुनहगार था जनरल डायर। 104 साल बाद भी आज का दिन उस जख्म को हरा कर देता है, जिसे कभी भुलाए नहीं भूला जा सकता। ऐसा क्या कारण था, जिसकी वजह से हुआ था इतना बड़ा कांड और क्या मिली गुनहगार को सजा? आईए जलियांवाला हत्याकांड के इतिहास पर आज फिर डालते हैं एक नजर।
घटनाक्रम पर एक नजर
- जलियांवाला बाग हत्याकांड
- कहां हुआ- अमृतसर पंजाब
- कब हुआ -13 अपै्रल 1919
- अपराधी - ब्रिटिश भारतीय सैनिक और डायर
- मौत हुई - 370 लोगों की
- घायल हुए-1005 लोग
न वकील, न दलील और न ही कोई अपील वाला कानून जब पास हुआ तो लोगों का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया। देश भर में अहिंसक सत्याग्रह का शंखनाद हो चुका था। विरोध की बौखलाहट में अंग्रेज शासन ने जलियांवाला बाग में मानवता और सभ्यता की सारी हदें पार कर दीं। जलियांवाला बाग हत्याकांड भारत के इतिहास से जुड़ी हुई एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना है, जो कि साल 1919 में घटी थी। इस हत्याकांड की दुनिया भर में निंदा की गई थी। स्वतंत्रता के लिए चल रहे आंदोलनों पर प्रतिबंध लगाने के लिए इस जघन्य हत्याकांड को अंजाम दिया गया। बावजूद इसके हत्याकांड से देश के क्रांतिकारियों के हांसले पस्त होने के बजाय और आक्रामक हो गए। 13 अप्रैल भारत के इतिहास में काले दिन के रूप में जाना जाता है। क्योंकि इस दिन जो कुछ घटित हुआ उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। बात 1919 की है जब ब्रिटिश सरकार ने देश में अनेक तरह के कानून लागू कर दिए थे।
6 फरवरी 1919 को ब्रिटिश सरकार ने इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल में एक ‘रॉलेक्ट’ नामक बिल को पेश किया था। बिल को काउंसिल ने मार्च के महीने में पास कर दिया था और बिल एक अधिनियम बन गया था। अधिनियम के तहत ब्रिटिश सरकार किसी भी व्यक्ति को देशद्रोह के शक के आधार पर गिरफ्तार कर सकती थी और उस व्यक्ति को बिना किसी जूरी के सामने पेश किए जेल में डाल सकती थी। साथ ही दो साल तक बिना किसी जांच के, किसी भी व्यक्ति को पुलिस हिरासत में रख सकती थी। अधिनियम का मुख्य उद्देश्य था राजनीतिक गतिविधियों को दबाने के लिए, ब्रिटिश सरकार को ताकत देना। ताकि क्रांतिकारियों पर काबू पाया जा सके। क्योंकि ब्रिटिश सरकार पूरी तरह से सत्याग्रहों को खत्म करना चाहती थी। यही कारण था कि इस अधिनियम का महात्मा गॉधी सहित अनेक नेताओं ने विरोध किया था। गॉधी जी ने पूरे देश में सत्याग्रह शुरू कर दिया था। परिणाम स्वरूप देशभर में आंदोलनों की ज्वाला भड़कने लगी थी। आंदोलन आग की तरह फैलने लगा। इसी क्रम में 6 अपै्रल 1919 को अमृतसर में भी आंदोलन कर रॉलेक्ट एक्ट का विरोध किया गया। धीरे-धीरे यह अहिंसक आंदोलन हिंसक होने लगा।
9 अप्रैल को सरकार ने पंजाब के दो नेताओं डॉ. सैफुद्दीन कच्छू और डॉ. सत्यपाल को गिरफ्तार कर लिया। इन्हें अमृतसर से धर्मशाला ले जाकर नजरबंद कर दिया गया था। ये दोनों नेता जनता के बीच काफी लोकप्रिय थे। अपने नेता की गिरफ्तारी से आक्रोशित लोग 10 अप्रैल को रिहाई की मांग को लेकर डिप्टी कमेटीर, मिल्स इरविंग से मुलाकात करना चाहते थे लेकिन उन्होंने मिलने से इंकार कर दिया था। गुस्साए लोगों ने रेलवे स्टेशन, तार विभाग सहित अनेक सरकारी दफ्तरों को आग के हवाले कर दिया। तार विभाग की आग से सरकारी कामकाज ठप हो गया और हालात बेकाबू होने लगे। अमृतसर के बिगड़ते हालातों पर काबू पाने के लिए भारतीय ब्रिटिश सरकार ने इस राज्य की जिम्मेदारी डिप्टी कमेटीर मिल्स इरविंग से लेकर ब्रिगेडियर जनरल आरईएच डायर को सौंप दी थी। डायर ने 11 अप्रैल को अमृतसर के हालातों को सही करने का कार्य शुरू कर दिया। मार्शल लॉ के तहत, जहां पर भी तीन से ज्यादा लोगों को इकट्ठा पाया जा रहा था, उन्हें पकड़कर जेल में डाला जा रहा था। लॉ के जरिए ब्रिटिश सरकार क्रांतिकारियों की सभा पर रोक लगाने में जुटी थी। ताकि क्रांतिकारी सरकार के खिलाफ न बोल सकें।
इसी दौरान 12 अप्रैल को सरकार ने अमृतसर के अन्य दो नेता चौधरी बुगा मल और महाशा रतन चंद को भी गिरफ्तार कर लिया था। इनकी गिरफ्तारी के बाद अमृतसर के लोग आक्रोशित हो गए। हालातों को संभालने के लिए ब्रिटिश पुलिस ने और सख्ती कर दी। 13 अप्रैल को कर्फ्यू लगा दिया गया। लेकिन बैसाखी का त्योहार होने के कारण इस दिन हजारों की संख्या में लोग जुटे थे। जो कि हरिमंदिर साहिब यानी स्वर्ण मंदिर आए थे, जलियांवाला बाग उसके निकट ही था सो वहां भी करीब 20 हजार लोग पहुंच गए थे, इनमें महिला और बच्चे भी शामिल थे। इस दिन करीब 12ः40 बजे, डायर को जलियांवाला बाग में होने वाली सभा की सूचना मिली थी। सूचना मिलने के बाद डायर करीब 4 बजे अपने दफ्तर से 150 सिपाहियों के साथ इस बाग के लिए रवाना हुआ।
डायर को लगा की ये सभा दंगे फैलाने के मकसद से की जा रही है। इसलिए इन्होंने इस बाग में पहुंचने के बाद लोगों को बिना कोई चेतावनी दिए, सिपाहियों को गोलियां चलाने का आदेश दिया। सिपाहियों ने करीब 10 मिनट तक गोलियां बरसाईं। तब हुआ बहुत ही दिल दहला देने वाला हत्याकांड। लोग बचने के लिए भागने लगे। लेकिन बाग के मुख्य दरवाजे को भी सैनिकों ने बंद कर दिया था और ये बाग चारां तरफ से 10 फीट तक की दीवारों से बंद था। ऐसे में कई लोग अपनी जान बचाने के लिए इस बाग में बने एक कुएं में कूद गए। गोलियां थमने का नाम नहीं ले रही थीं और कुछ समय में ही इस बाग की जमीन का रंग लाल हो गया था। नरसंहार में 370 से अधिक लोगों की मौत हुई थी, जिनमें छोटे बच्चे और महिलाएं भी शामिल थी। एक सात हफ्ते के बच्चे की भी हत्या कर दी गई थी। बाग के कुएं से 100 से अधिक शव निकाले गए थे। जो कि ज्यादातर बच्चों और महिलाओं के ही थे। ये सभी गोलियों से बचने के लिए कूंदे थे लेकिन बच नहीं सके। कांग्रेस पार्टी के मुताबिक हादसे में करीब एक हजार लोगों की हत्या हुई थी और 1500 से ज्यादा लोग घायल हुए थे।
लेकिन सरकार ने 370 लोगों की मौत की पुष्टि की थी। ताकि उनके देश की छवि विश्व भर में खराब ना हो सके। यह जघन्य नरसंहार देश में उबाल लाने वाला साबित हुआ। इन्हीं जख्मों की टीस से भगत सिंह, और शहीद ऊधम सिंह जैसे क्रांतिकारियों का जन्म हुआ। और अंत में क्रांतिकारियों के सामने ब्रिटिश सरकार को घुटने टेकने पड़े। अनंतः हमारा देश स्वतंत्र हुआ लेकिन हमें इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी।
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