G.News 24 : अदालत भी अच्छी तरह से जानती है कि कौन अपराधी है और कौन पीड़ित फिर नहीं कर पातीं हैं न्याय !

संविधान में वर्णित जटिल मूल्यों व तथ्यों के चलते कभी कभी  कुछ  मामलों में...

अदालत भी अच्छी तरह से जानती है कि कौन अपराधी है और कौन पीड़ित फिर नहीं कर पातीं हैं न्याय !

ना जाने रोजाना ऐसे कितने केस होते हैं जिनमें आरोपी पैसे के दम पर खरीदे गए गवाहों मिटाए गए सबूतों के आधार पर पीड़ित के साथ मनचाहा व्यवहार करने के बावजूद भी अपने प्रभाव के चलते न्यायिक प्रक्रिया से जुड़ी संस्थाओं की कार्यप्रणाली को प्रभावित करते हैं। ये न सिर्फ पीड़ित को न्याय से वंचित करने का कार्य कर रहे हैं बल्कि लोगों का न्यायिक प्रक्रिया से भरोसा ही खत्म कर रहे हैं। इसके बावजूद इसके हमारे देश की अदालतें  हैं कि विवश होकर इनके आगे घुटने टेक दिया करती हैं। आज मेरे संज्ञान में अदालत के दो फैसले आए हैं। दोनों ही फैसलों में अदालत भी अच्छी तरह से जानती है कि कौन अपराधी है और कौन पीड़ित लेकिन फिर भी गवाहों और सबूतों के चलते पीड़ित को न्याय नहीं दे सकी। यहां एक फैसला उत्तर प्रदेश के  उन्नाव कांड से जुड़ा हुआ है। 

जिस समय उन्नाव कांड हुआ था उस समय देश में काफी हो हल्ला मचा था लेकिन समय के साथ साथ यह घटनाक्रम भी दबता चला गया । लोग भी धीरे-धीरे ऐसे भूलते गए। कोर्ट में केस चला और जब वकीलों के सवाल-जवाब हुए तो आरोपी पक्ष का वकील यह साबित करने में सफल हो गया कि घटना का कोई चश्मदीद गवाह नहीं है और मृतिका के साथ बलात्कार हुआ ही नहीं है । आरोपी पक्ष के वकीलों ने यह साबित कर दिया कि उसके मुवक्किल को झूठा फंसाया गया है। इसी आधार पर कोर्ट ने एक व्यक्ति को छोड़ बाकी के तीनों आरोपियों को बरी कर दिया। अब सवाल यह उठता है कि इस केस में एक लड़की की हत्या तो हुई है और जिस लड़की की हत्या हुई हत्या के पीछे की वजह क्या रही ? उसकी हत्या क्यों हुई ?और अगर उस लड़की के साथ हुए बलात्कार का कोई चश्मदीद गवाह नहीं है तो क्या कोई भी आरोपी यूं ही बच के निकल जाएगा ?  

इसके अलावा एक सोचनीय पहलू यह भी है कि बलात्कार जैसी घटना को कोई सार्वजनिक स्थल या किसी के आगे तो अंजाम नहीं देता है। जब इस प्रकार की घटना किसी के सामने नहीं की जाती हैं तो इनके चश्मदीद कहां से और कैसे मिलेंगे ? जिसके साथ घटना हुई थी उसे मार दिया गया तो फिर ऐसी स्थिति में मृतका और उसके परिजनों को न्याय मिलना क्या उनका अधिकार नहीं है ? इस प्रकार की यदि कोई घटना किसी भी वीआईपी के साथ हुई होती तो आरोपियों की रिहाई तो छोड़िए जनाब उनकी जमानत तक होना नामुमकिन था लेकिन एक गरीब परिवार की लड़की के साथ इस प्रकार का कृत्य हुआ उसकी हत्या की गई उसके बावजूद भी आरोपियों को बरी कर दिया गया । इस प्रकार की न्याय प्रक्रिया निसंदेह तौर पर सवालों के घेरे में आती है और संशय पैदा करती है कि आम आदमी को न्याय मिल पाना भूसे के ढेर से सुई ढूंढने जैसा है।

इसी प्रकार की दूसरी घटना मध्य प्रदेश की है जिसमे पंडित धीरेंद्र शास्त्री का भाई एक शादी समारोह में सरेआम कट्टा लहरा रहा है और लोगों के साथ गाली गलौज कर मारपीट भी कर रहा है। और यह सब एक कैमरे मैं रिकॉर्ड भी हुआ है कट्टा हाथ में है, मुंह में सिगरेट है, लोगों को गालियां बक रहा है थप्पड़ मार रहा है। सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल होने के बाद पहले तो पुलिस रिपोर्ट लिखने में आनाकानी करती है । कट्टे को टॉर्च बताने का प्रयास किया जाता है। इसके पीछे कारण है आज की तारीख में बागेश्वर धाम और उससे जुड़े पंडित धीरेंद्र शास्त्री का परिवार एक पावरफुल शख्सियत है इसी के चलते पुलिस केस रजिस्टर्ड करने में कतरा रही थी। लेकिन जब लोगों का दबाव सरकार पर बना तो केस रजिस्टर्ड हुआ और केस रजिस्टर्ड होने के बाद गिरफ्तारी में भी फिर से आनाकानी हुई लेकिन उसके बावजूद भी पुलिस को मजबूरीबस गिरफ्तारी करना पड़ी। लेकिन गिरफ्तारी के तुरंत बाद आरोपी को जमानत भी दे दी गई। जिस प्रकार का की कार्यप्रणाली पुलिस और अदालत की इस केस में देखने को आई है l

तीसरा मामला जो संज्ञान में आया है वह है ग्वालियर का जिसमे नौकरी का झांसा देकर महिला के साथ दुष्कर्म करने के प्रकरण में विश्वविद्यालय पुलिस ने होटल संचालक रामनिवास शर्मा को बाहर कर दिया है। 22 जून 2022 को महिला ने अमित मिश्रा और रामनिवास शर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई। हाल ही में विश्वविद्यालय पुलिस ने न्यायालय में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें बताया गया कि तहसीलदार के समक्ष शिनाख्ती कराई।  और ये आरोप भी उसी होटल मालिक और उसके साथी पर लगाया जाता है। पुलिस इस मामले में होटल मालिक को आरोपी भी  बनाती है लेकिन उसे गिफ्तार नहीं करती उसे काफी समय तक फरार ही दिखाती रहती है। और संभवत इसकी वजह है आरोपी का रसूखदार और सत्ताधारी पार्टी से जुड़ा होना। इसी के चलते वह गिरफ़्तार नहीं होता है और इस प्रकार समय बीतता जाता है और फिर अचानक इस केस में नया मोड़ आता है आरोप लगाने वाली महिला अचानक से बयान बदल लेती है और वह आरोपी को पहचानने से मना कर देती है। जबकि 23 जून को विश्वविद्यालय पुलिस ने आरोपियों की फोटो पीड़िता को दिखाई थी। तब पीड़िता ने फोटो पर हाथ रखकर बताया कि इन्होंने ही उसके साथ दुष्कर्म किया है। यहां तक कि धारा 161 व 164 के कथन में भी पीड़िता ने दुष्कर्म की घटना की पुष्टि की है। इस मामले में पुलिस ने आरोपी अमित मिश्रा की डीएनए जांच हो गई है। वहीं रामनिवास शर्मा की डीएनए जांच अभी तक नहीं हो पाई है। इसके बाद भी आरोपी होटल मालिक का नाम इस मामले से हटाकर उसे क्लीन चिट दे दी जाती है। जबकि तहसीलदार के समक्ष पीड़ित महिला ने फोटो देखकर आरोपी की पहचान कर ली थी। फिर वही प्रश्न उठता है कि क्या कोई महिला इस प्रकार अपनी इज्जत के साथ बिना किसी दवाब के खिलवाड़ कर सकती है। 

ये तीनों ही फैसले कार्य पालिका (कानून ) और उसके आधार पर फैसला देने वाली अदालतों (न्याय पालिका )की न्यायिक प्रक्रिया पर आमजन गरीब मध्यमवर्गीय लोगों के भरोसे को अस्थिर करते हैं। इसलिए अदालतों को भी कुछ मामले में यदि सच्चाई लगती है तो कानून के दायरे के बाहर निकलकर भी स्वत संज्ञान लेकर फैसले करना चाहिए। क्योंकि ऐसे मामलों में अक्सर पीड़ित या गवाहों को डरा -धमका कर दबाव बनाया जाता है और पीड़ित को सही मायने में न्याय मिल ही नहीं पाता है l 

 क्या इस प्रकार से किसी सामान्य व्यक्ति को (जमानत) राहत मिल जाती ? आम राय के अनुसार तो बिल्कुल नहीं दो-चार दिन तो उसे कम से कम अदालत में रहना पड़ता। आरोपी को जमानत मिलना यानी कि पीड़ित परिवार के साथ एक प्रकार से अन्याय ही होगा क्योंकि वह परिवार इस प्रकार के आगे हैसियत के मामले में कुछ भी नहीं है ऐसे में वह अपना सामान्य जीवन कैसे यापन करेगा। यह दोनों ही फैसले कानून और उसके आधार पर फैसला देने वाली अदालतों की न्यायिक प्रक्रिया पर आमजन गरीब मध्यमवर्गीय लोगों के भरोसे को अस्थिर करते हैं। इसलिए अदालतों को भी कुछ मामले में यदि सच्चाई लगती है तो कानून के दायरे के बाहर आकर भी स्वत संज्ञान लेकर फैसले करना चाहिए। जिससे कि आमजन को सही न्याय उचित समय पर मिल सके।

- रवि यादव

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