राजनीति की आदर्श प्रतिमूर्ति के 78वीं जयंती पर विशेष...
माधवराव सिंधिया एक महाराज जिसने किया आमजन के दिलों पर राज
ग्वालियर। एक हंसता, मुस्कराता चेहरा, बातचीत का विनम्र लहजा और अंदाज ऐसा कि जो भी एक बार मिलता व कभी उन्हें नहीं भूलता। अजनबी भी अपनेपन का अहसास करता। क्योंकि जिनका पूरा जीवन यह साबित करने के लिए समर्पित था कि हाँ, आप वही थे जो आप पैदा हुए थे। लेकिन जो अधिक महत्वपूर्ण था वह यह था कि आपने अपने जीवन के साथ क्या किया, आपने अपने भाग्य को कैसे नियंत्रित किया ? भुलाए जाने की बात तो दूर, वह अब भी उन लोगों के दिलो-दिमाग में बसते हैं, जो उन्हें कभी व्यक्तिगत रूप से जानते तक नहीं हैं। अजनबी उसके बारे में गर्मजोशी से बात करते हैं। परिचित उनका जिक्र आदर से करते हैं। ऐसे थे सबके चहेते माधवराव सिंधिया राजनीति का एक ऐसा नाम जो कभी भुलाए भी न भूले। गुरूवार 9 मार्च को उनकी जयंती की पूर्व संध्या पर उनकी भूली-बिसरी यादों के साथ करते हैं उनका पुण्य स्मरण। 10 मार्च 1945 को मुंबई में जन्में माधवराव सिंधिया द्वितीय (1945-2001) ग्वालियर की तत्कालीन सिंधिया रियासत के प्रमुख शासक थे।
भारत में मराठा साम्राज्य के विस्तार में सिंधिया शासकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। इसी कुल के वे ग्यारहवें शासक थे। रिसायत से सियासत की राह पर चलने वाले माधवराव का जब राजीतिक उदय हुआ तो वे राजनीति की अमिट छाप बन गए। 1971 में गुना क्षेत्र से जनसंघ के सदस्य के रुप में लोकसभा का सदस्य बनने के साथ ही उनका राजनीतिक आगाज हुआ और वह तीन दशक तक नये आयाम गढ़ता रहा। वे पॉंचवी से तेरहवीं लोकसभा तक नौ बार लगातार सदस्य रहे। श्री सिंधिया राजनीति में सुचिता का प्रतिनिधित्व करते थे। उन्होंने सदैव मूल्यों और सिद्धांतों पर आधारित राजनीति को प्रश्रय दिया। सस्ती लोकप्रियता अर्जित करने के लिए सतही राजनीति को उन्होंने कभी नहीं अपनाया। ‘साध्य’ के साथ साधनों की पवित्रता में उनका अटूट विश्वास था, जिसे वे जीवन में अंगीकार करते थे। यही वजह थी कि 1971 से तीन दशक तक संसद का हर कोना उनसे परिचित हो गया था। षड्यंत्रकारी राजनीति सिंधिया के स्वभाव में नहीं थी।
दबाव और ब्लैकमेल जैसे शब्द उनके राजनीतिक शब्दकोष में नहीं थे। मूल्यहीन हो रही राजनीति का कु-चलन उन्हें कभी प्रभावित नहीं कर पाया। न ही छल-कपट और उठापटक उनकी मंजिल के मील के पत्थर बने। लोकतंत्र में उनकी गहरी आस्था थी। वे प्रजातंत्र को एक प्रकार का ‘वैलेंसिंग एक्ट’ मानते थे, जो प्रजा अपना मत देकर करती थी। वे लोकतांत्रिक मूल्यों और सिद्धान्तों पर सदैव चलते रहे और उसे ही अपने जीवन का प्रमुख अंग मानते रहे। स्वतं़त्रा प्र्राप्ति कि बाद राष्ट्र के अनेक राजे-रजवाड़ों के राजाओं एवं महाराजाओं ने राजनीति में प्रवेश किया। किन्तु वे भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली में सामंजस्य न बिठा सकें! माधवराव ऐसा कर सकें। उन्होंने समय की वास्तविकताओं को खुली आंखों से देखा और भविष्य को अतीत के हाथों गिरवी नहीं रखने दिया। उन्होंने आमजन की नब्ज के मर्म को समझा और वे एक सच्चे जननायक बन गए। 1991 में जब वचे नागरिक उड्डयन एवं पर्यटन मंत्री बने तो उन्होंने उड्डयन क्षेत्र के आधुनिकीकरण की योजना पेश की।
हवाई अड्डों का आधुनिकीकरण तथा मॉडल हवाई अड्डों का निर्माण, एअर इण्डिया के निजीकरण की योजना, खुला आकाश नीति आदि नवीन योजनाओं पर कार्य किया। माधवराव सिंधिया ने बदलते हुए विश्व परिदृश्य, भूमण्डलीकरण एवं वैश्वीकरण के दौर में भारत के पर्यटन क्षेत्र को सशक्त रुप से खड़ा करने के लिए अनेक नवीन योजनाऐं बनायी। देश में कुशल पर्यटक प्रबंधकों की आवश्यकता की पूर्ति के लिए ग्वालियर में ‘भारतीय पर्यटन व यात्रा प्रबंध संस्थान’ की स्थापना की। 1995 में मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय की जिम्मेदारी संभालने पर अनेक युगान्तकारी कार्य किये। ‘शिक्षा के सार्वभौमिकरण’ जैसी महत्वाकांक्षी योजना उनके कार्यकाल में प्रारंभ हुई। प्राथमिक शालाओं में विश्व के सबसे बड़े कार्यक्रम ‘मध्यान्ह भोजन योजना’ उनके कार्यकाल मं प्रारंभ हुई जिसमें प्रतिदिन देश के 12 करोड़ से अधिक छात्र-छात्राऐं निःशुल्क भोजन करते है। महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए ‘महिला समृद्धि योजना एवं राष्ट्रीय महिला कोष’ योजना प्रारंभ की गयी। ल्पसंख्यकों के शैक्षणिक विकास के लिए ‘मदरसो’ के आधुनिकीकरण हेतु आर्थिक सहायता प्रदान की।
उच्च शिक्षा के विकास के लिए हैदराबाद में ‘उर्दू विश्वविद्यालय’ तथा बनारस में ‘हिन्दी विश्वविद्यालय’ की स्थापना करवायी। उन्होंने राज्य सरकारों को ओपन विश्वविद्यालय की स्थापना करने का सुझाव दिया था, ताकि उच्च शिक्षा का अधिक प्रसार हो सके। ग्वालियर में एशिया के प्रथम ‘राष्ट्रीय सूचना एवं प्रबंध संस्थान’, इंदौर एवं कालीकट में भारतीय तकनीकी एवं प्रबंध संस्थान, ग्वालियर में इंस्टीट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेन्ट की स्थापना कराई। इनके अलावा एशिया के सबसे बड़े शारीरिक शिक्षा महाविद्यालय एलएनआईपीई ग्वालियर को सम-विश्वविद्यालय का दर्जा प्रदान किया। राजनीति के अलावा उनका सामाजिक योगदान भी अविस्मरणीय है। सामाजिक क्षेत्र के विकास के लिए आधुनिक दृष्टिकोण अपनाया। उन्होंने अंध विश्वासों एवं सामाजिक कुरीतियों पर आधुनिक दृष्टिकोण अपनाकर तार्किक ढंग से प्रहार किया। भारत जैसे बहुधर्मी, बहुसम्प्रदायी एवं बहुभाषी देश में शोषित, पीड़ितों और पिछड़ों को सामाजिक न्याय दिलाने में सदैव आगे रहे।
उन्होंने जाति के आधार पर समाज को बांटकर अपना हित साधने वाले लोगों पर कड़ा प्रहार किया। वे समानता पर आधारित समाज का निर्माण करना चाहते थे। उनकी एक सोच और वादा था कि देश को आगे ले जाने के लिए जरूरी दूरदृष्टि और प्रतिबद्धता वाला राजनेता बना जाए। माधवराव सिंधिया की मान्यता थी कि समाज का उद्योग, खेलकूद, साहित्य, कला, संस्कृति, शिक्षा सभी क्षेत्रों में विका होना चाहिए, तभी समाज का संतुलित एवं सर्वांगीण विकास होगा।धर्म निरपेक्षता एवं साम्प्रदायिक सद्भाव को मजबूत बनाने के लिए आजीवन संकल्पित रहे। उनकी दृढ़ मान्यता थी कि भारत जैसे बहुधर्मी देश में धर्म निरपेक्षता और साम्प्रदायिक सद्भाव के बिना देश की एकता एवं अखण्डता को सुरक्षित नहीं रखा जा सकता। धर्म को आधार बनाकर कोई भी राष्ट्र मजबूत नहीं बना है। धर्म, जाति के नाम पर जो देश के बंटवारे की बात करते हैं, वे देशद्रोही हैं। माधवराव सिंधिया मानते थे कि धर्म निरपेक्षता के बिना भारत की एकता और अखण्डता को सुरक्षित नहीं रखा जा सकता है।
माधवराव सिंधिया कला एवं संस्कृति संरक्षक थे। उन्होंने कला एवं संस्कृति के संबर्द्धन के लिए ग्वालियर में देश का अद्भुत कलाकेन्द्र ‘‘बहुआयामी कला केन्द्र’’ को शिलान्यास किया था। साथ ही संगीत धरोहर को संरक्षित करने के लिए ग्वालियर में ‘‘हिन्दुस्तानी संगीत विद्यालय’’ की स्थापना को स्वीकृति प्रदान की। ग्वालियर व्यापार मेले में राष्ट्रीय स्तर के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन माधवराव सिंधिया के प्रयत्नों से ही अनेकों बार संपन्न हुआ। ग्वालियर मेले में देश का दूसरे एवं मध्यप्रदेश के प्रथम ‘‘दस्तकारी हॉट’’ का निर्माण कराया। जिसमें भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का जीवन्त प्रदर्शन होता है। कला एवं संस्कृति के पोषण के लिए मोतीमहल परिसर में बैजाताल में जल में तैरता रंगमंच तैयार कराया जिस पर जर्मनी एवं मलेशिया के कलाकारों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश किये थे। वे सदैव आमजन के हित की बात करते थे। यही कारण है कि एक महाराज होकर भी आम आदमी के दिलों पर राज करते हैं। इसीलिए वे राजनीति की आदर्श प्रतिमूर्ति कहलाते हैं।
0 Comments