एक आम कर्मचारी को मिलने वाले भत्ते और नेताओं को मिलने वाले वेतन भत्तों की तुलना...
अंतर् समझ में आ जायेगा और यह भी पता लग जायेगा कटौती कहाँ करना है : रवि
भोपाल। प्रदेश में कानून व सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने में अहम भूमिका निभाने वाले पुलिस कर्मियों को प्रतिमाह 15 लीटर पेट्रोल भत्ता देने पर राज्य सरकार सहमत नहीं है। दरअसल, राज्य सरकार की आर्थिक सेहत ऐसी नहीं है कि वह दो सौ करोड़ रुपये प्रति वर्ष का खर्च झेल सके। यही वजह है कि वित्त विभाग ने इस प्रस्ताव को मंजूरी देने से मना कर दिया है। गौरतलब है कि प्रदेश में लगभग एक लाख से अधिक पुलिस बल इस दायरे में आ सकता है।
थानों में पदस्थ पुलिस कर्मियों को कानून व्यवस्था की ड्यूटी, अपराधों की विवेचना और लगातार भ्रमण के लिए वाहन की आवश्यकता होती है। वर्तमान में पुलिस कर्मी वाहन और पेट्रोल का खर्च स्वयं वहन करते हैं। गृह विभाग ने पुलिस थानों में पदस्थ आरक्षक से लेकर उप निरीक्षक स्तर के पुलिस कर्मियों की समस्या को देखते हुए 15 लीटर पेट्रोल भत्ता प्रतिमाह देने का प्रस्ताव तैयार किया था।
वित्त मंत्रालय का इस फंड पर रोक लगाने का जो तर्क दिया जा रहा है वह समझ से परे है l तर्क दिया जा रहा है कि इस से सरकारी खजाने पर दो सौ करोड़ का बोझ पड़ रहा है। वित्त मंत्रालय इसे रोककर 200 करोड़ तो बचा लेगा लेकिन कभी ये सोचा है कि इस से पुलिस की कार्य प्रणाली कितनी प्रभावित होगी l अभी भी पुलिस कर्मचारियों जो फंड दिया जा रहा है वो नाकाफी है l
बाइक, कार से अपराधियों को पकड़ने या पेट्रोलिंग के लिए सरकारी रिकार्ड में पुलिसकर्मी अब भी साइकिल के भरोसे हैं। 45 साल पहले आठ मार्च 1977 को 18 रुपये प्रतिमाह साइकिल भत्ता स्वीकृत किया गया था। निरीक्षक एवं उप निरीक्षक को 28 जून 1993 से प्रति माह 230 रुपये वाहन भत्ता दिया जा रहा है, लेकिन अब तक यह दोनों ही भत्ते यथावत हैं। इसी तरह आवास भत्ता महज 400 रुपये और वर्दी भत्ता 700 रुपये दिया जाता है।
44 साल से नहीं बढ़ा विशेष पुलिस भत्ता
अन्य भत्तों की बात करें तो पुलिस कर्मियों को राइफल भत्ता 30 रुपये प्रति माह दिया जाता है। निरीक्षक से आरक्षक तक विशेष पुलिस भत्ता 18 रुपये प्रति माह है, जो 22 सितंबर 1978 को स्वीकृत हुआ था और तब से अब तक 44 साल में यह बढ़ाया ही नहीं गया है। वर्दी धुलाई भत्ता 14 जुलाई 1994 से आरक्षक से हवालदार तक को 20 रुपये एवं एएसआइ से राजपत्रित अधिकारी तक 30 रुपये प्रति माह मिल रहा है।
6 दिसंबर 2003 को राजपत्रित अधिकारियों के लिए यह भत्ता 60 रुपये प्रति माह कर दिया गया, लेकिन अन्य वर्ग का वर्दी धुलाई भत्ता नहीं बढ़ाया गया है। राज्यपाल एवं मुख्यमंत्री की सुरक्षा में तैनात अंगरक्षकों को 29 जून 2011 से उनके मूल वेतन के 30 प्रतिशत के बराबर जोखित भत्ता दिया जाता है, लेकिन मंत्रियों की सुरक्षा में तैनात अंगरक्षकों को 12 नवंबर 1980 से मात्र 50 रुपये प्रति माह जोखिम भत्ता दिया जा रहा है।
वित्त मंत्रालय को सही मायने मे सरकार पर पड़ने वाले वित्तीय बोझ की चिंता है तो मंत्रियों,विधायकों और सांसदों एवं अन्य सरकारी कारपोर्टरों को मिलने वाली दोहरी-तिहरी पेंशनों,उन्हें फ्री मिल रही सुख-सुविधाओं( गृह जिले एवं राजधानी सहित दिल्ली में दिए गए फ्री आवास बिजली,पानी,फोन,और वहां कार्यरत कमचारियों के अलावा फ्री दी जा रही रेल,हवाई यात्रा और कारकेड में शामिल वाहनों की संख्या में कटौती करके भी सरकार का बोझ कम किया जा सकता है l इतना ही नहीं इन्हें मिल रही दोहरी टिहरी पेंशन को को समाप्त कर केबल सिंगल पेंशन दी जाये l इस से सरकार को अरबों रूपये की बचत होगी l क्योंकि ये माननीय तो जन सेवक है और सेवा के बदले सेलरी ! सुविधाएं !
जब अधिकतर थानों में पदस्थ पुलिस कर्मियों को कानून व्यवस्था की ड्यूटी, अपराधों की विवेचना और लगातार भ्रमण के लिए वाहन की आवश्यकता होती है। वर्तमान में पुलिस कर्मी वाहन और पेट्रोल का खर्च स्वयं वहन करते हैं।कर्मचारी अपनी ड्यूटी के दौरान अपनी जरूरतों की आपूर्ति अपनी जेब से करते है और ये माननीय भी तो सरकार में रहकर देश-प्रदेश या जिले के लिए कार्य करते समय अपनी ड्यूटी ही तो कर रहे होते है तो फिर इन माननीयों पर इतनी मेहरवानी की वज़ह बात समझ नहीं आई ! बात समझ नहीं आई l जब कर्मचारियों को सीमित संसाधनो के साथ अपना कार्य करना पड़ता है तो फिर माननीयों के ऊपर भी यही नियम लागू होना चाहिए l
एक नज़र में एक आम कर्मचारी को मिलने वाले भत्ते और नेताओं,मंत्रियों,विधायकों और सांसदों एवं अन्य सरकारी कारपोर्टरों को मिलने वाले वेतन भत्तों की तुलना वित्त मंत्रालय कर ले अंतर् समझ में आ जायेगा और यह भी पता लग जायेगा कटौती कहाँ करना है l लेकिन वित्त मंत्रालय करेगा इसकी कोई संभावना दूर दूर तक नहीं है ! लेकिन ये पब्लिक है सब जानती है फिर भी मौन है तो फिर कुछ नहीं हो सकता !
- रवि यादव
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