फौजी की हो चुकी है मौत अब सेवानिवृत्त सैनिक के परिजनों को मिलेगी एक मुस्त 45 वर्षों की पेंशन…
मृत्यु के 14 वर्ष बाद फौजी को कोर्ट से 69 साल बाद मिला न्याय
शिमला। न्यायालय के एक ऐतिहासिक फैसले में सेवानिवृत्त फौजी को उसकी मृत्यु के 14 वर्ष बाद न्याय प्रदान हुआ है। लगभग 69 वर्ष के बाद न्याय मिलने के बाद इस परिवार में खुशी की लहर है। वरिष्ठ अधिवक्ता एवं सैनिक लीग के अध्यक्ष सीडी सिंह गुलेरिया ने अदालत में रवेल सिंह के मामले में 23 वर्ष से लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी व पैरवी करते हुए परिजनों को यह हक दिलाया है। 45 वर्षों की पेंशन इस सिपाही के परिजनों को मिलेगी। बताते चलें कि थुरल के निकटवर्ती गांव ननहर के स्वर्गीय सिपाही रबेल सिंह ने 22 अक्तूबर, 1954 तक भारतीय सेना में अपनी सेवाएं प्रदान की थीं। जांबाज सिपाही ने दूसरे विश्व युद्ध में भी अपनी भूमिका निभाई थी, लेकिन सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन के लिए इस सिपाही को दर-दर की ठोकरें खानी पड़ीं।
16 वर्ष 6 महीने 26 दिन सेना में नौकरी करने के बावजूद यह सिपाही सभी सैन्य सुविधाओं से वंचित रहा। न्यायालय में चली लंबी प्रक्रिया के बाद 45 वर्षों के बाद सिपाही के वारिसों को पेंशन का हकदार माना गया है। बता दें कि आर्मी फोर्सिस चंडीगढ़ सर्किट बेंच शिमला द्वारा न्यायधीश धर्म चंद चौधरी व वाइस एडमिरल एचपीएस के बेंच द्वारा इस सिपाही के हाथ में यह फैसला सुनाया है। रवेल सिंह के जीवन काल में रक्षा मंत्रालय से लगातार पत्राचार कर कई वर्षों तक नौकरशाही से हक नहीं मिला, तो सिविल जज सीनियर डिविजन पालमपुर में पांच जनवरी, 2005 को सिविल सूट का मामला दायर किया गया था। इसी बीच सिपाही रवेल सिंह की मृत्यु 23 मार्च, 2009 को हो गई। इसीलिए उसके वारिस पुत्रों हरनाम सिंह, राजेंद्र सिंह, ओंकार सिंह, बीना देवीए निर्मला देवी व गीता देवी की तरफ से पैरवी की गई, लेकिन पहली सितंबर, 2009 को फैसला रवेल सिंह के विरुद्ध हुआ।
इसके उपरांत माननीय अतिरिक्त सेशन जज कोर्ट धर्मशाला में अपील की गई। केस चलने के बाद इस मामले को साढ़े नौ वर्षों के बाद आम्र्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल बेंच चंडीगढ़ को भेजा गया। तथ्यों के आधार पर सिपाही रवेल सिंह ने 16 सितंबर, 1936 से पहली अक्तूबर 1939 तक तीन वर्ष 16 दिन की नौकरी के बाद 16 पंजाब में 10 जून, 1940 से 17 अप्रैल 1947 को छह वर्ष 10 महीने तथा 16 फरवरी, 1948 से 21 अक्तूबर 1954 तक 16 वर्ष छह महीने में 26 दिन की नौकरी की थी। तथ्यों के आधार पर कोर्ट ने इस सिपाही के हक में फैसला सुनाते हुए इसे सर्विस पेंशन का हकदार मानकर तीन महीने के अंदर पेंशन देने तथा समय सीमा के अंदर लाभ न देने की सूरत में इनके बारिशों को 8 फीसदी ब्याज देने के भी आदेश दिए गए हैं।
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