धर्म माफिया के बाद अब...
रेत माफिया के सामने नतमस्तक नज़र आती प्रदेश सरकार !
प्रदेश की डबल इंजिन की सरकार धर्म माफिया के बाद अब रेत माफिया के सामने नतमस्तक हो गयी है .सरकार ने गंभीर रूप से विलुप्तप्राय घड़ियाल, लालमुकुट कछुआ और विलुप्तप्राय गंगा सूंस की रक्षा के लिए बनाये गए राष्ट्रीय चंबल अभ्यारण्य के 208 हैक्टेयर इलाके को ' डि-नोटीफाई ' कर दिया है ताकि रेत माफिया स्वच्छंद होकर रेत का वैध उत्खनन कर सकें। चंबल नदी देश की सबसे स्वच्छ नदियों में से एक है . चम्बल नदी पर राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के संधि क्षेत्र पर सन् 1978 में 5,400 वर्ग किमी (2,100 वर्ग मील) पर राष्ट्रीय चंबल अभ्यारण्य बनाया गया था । अभयारण्य के भीतर चम्बल नदी अपने मूल प्राकृतिक रूप में बीहड़ खाईयों और पहाड़ियों से गुज़रती है और उसपर कई रेतीले किनारों पर वन्यजीव पनपते हैं ,यही इलाका रेत के अवैध उत्खनन के लिए भी सोने की खान जैसा है .प्रति वर्ष तीनों राज्यों का रेत माफिया इसी अभ्यारण्य से अरबों रूपये का रेत अवैध रूप से निकालता हैं .
मध्यप्रदेश सरकार ने रेत माफिया से जूझने के बजाय उनके लिए रास्ता खोलना ज्यादा आसान समझा और इसी लिए इस अभ्यारण्य का 207 हैक्टेयर का इलाका डि-नोटिफाई कर दिया अब इस इलाके से प्रशासनिक निगरानी में रेत का उत्खनन किया जाएगा .सरकार पर इस इलाके को अभ्यारण्य से बाहर करने का दबाब था .दबाब डालने वाले सत्तारूढ़ दल से जुड़े रेत माफिया के लोग ही थे .इस इलाके से केवल सत्तापक्ष के ही नहीं विपक्ष के नेताओं का पेट भी पलता आया है. गजट नोटिफिकेशन के मुताबिक़ अब चंबल के श्योपुर जिले के कुनहाजापुर और बड़ौदिया घात ,मुरैना जिले के खाड़ौली ,कैथरी,भानपुर और पिपरई घाट को अभ्यारण्य से बाहर कर दिया गया है.सरकार ने रेत माफिया को फायदा पहुँचाने के लिए एक अजीब तर्क का सहारा लिया है की बीते दो दशक में चंबल के जल परवाह में 3 .5 प्रतिशत की कमी आई है .लोग तमाम प्रशासनिक रोकथाम के बावजूद चंबल से इन इलाकों से अवैध रूप से रेत का उत्खनन करते आ रहे हैं . चंबल से रेत के अवैध कारोबार की वजह से जैव विवधता खतरे में पड़ गयी है.
इस नदी में घड़ियाल अभ्यारण्य भी है .नदी में डॉल्फिन भी हैं ,विलुप्त जाती के कछुए भी हैं,लेकिन इनकी चिंता किसी को नहीं है. ये सब वोट नहीं देते,सरकारें बनाते और बिगाड़ते नहीं हैं,इसलिए इनके इलाके की फ़िक्र किसी को नहीं है .सरकार ने नदी की जैव विविधता को वोटों की खातिर दांव पर लगा दिया है .सरकार का दावा है कि हम जैव विविधता पर इस रेत खनन के प्रभाव का आकलन दो साल में करेंगे,हालाँकि सरकार के पास फिलहाल इस काम के लिए कोई प्रभावी तंत्र नहीं है,इसे विकसित किया जाएगा .यहां आपको बता दें की चंबल नदी से रेत के उत्खनन को 2006 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रतिबंधित किया गया था. अभ्यारण्यों के साथ खिलवाड़ करने का प्रदेश का ये कोई पहला मामला नहीं है. मध्यप्रदेश सरकार इससे पहले भी वोटों की खातिर ग्वालियर जिले के सोन चिड़िया अभयारण्य के 23 गांवों को डी-नोटिफाई करा चुकी है. इसके लिए आज के केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने एड़ी-छोटी का जोर लगाया था .सरकार का कहना था कि अभ्यारण्य में कि सोनचिड़िया नहीं होने के कारण अभ्यारण्य क्षेत्र में 23 गांव की 111.73 वर्ग किलोमीटर की राजस्व जमीन को अभ्यारण्य से बाहर करने से इस क्षेत्र में विकास और बसाहट के रास्ते खुलेंगे।
इस सोन चिरैया अभ्यारण्य से पत्थर का अवैध उत्खनन होता था. करीब 512 वर्ग किलोमीटर में फैले सोन चिरैया अभयारण्य क्षेत्र में सफेद पत्थर की कई पहाड़ियां हैं। यह पत्थर मप्र व देश के अलावा विदेश तक सप्लाई होता है। क्षेत्र के लोग अवैध खनन कर पत्थर बेचते हैं। अभ्यारण्य को डि-नोटिफाइड कर अब खुद सरकार वैध तरीके से पहाड़ियों का आवंटन कर रही है जिससे पत्थर का कारोबार से सरकार को करोड़ों रुपए का राजस्व मिलने लगा है। राष्ट्रीय चंबल अभ्यारण्य गंभीर रूप से लुप्तप्राय घड़ियाल (छोटे मगरमच्छ), रेड क्राउन टोर्टयज़ और लुप्तप्राय गंगा नदी डॉल्फ़िन का आवास है। चंबल जंगली में घड़ियाल की सबसे बड़ी आबादी का समर्थन करता है। ये अभ्यारण्य एकमात्र ज्ञात स्थान जहाँ भारतीय स्किमर्स के घोंसले बड़ी संख्या में दर्ज किये जाते हैं। चंबल अभ्यारण्य देश में पाए जाने वाले 26 में से 8 दुर्लभ कछुओं की प्रजातियों का संरक्षण करता है क्योंकि चंबल देश की सबसे स्वच्छ नदियों में से एक है।
चंबल में 320 से अधिक निवासी और प्रवासी पक्षियों का घर भी है. आपको बता दें कि इस अभ्यारण्य से अवैध रेत का उत्खनन रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर बाकायदा एक टास्क फ़ोर्स है लेकिन आजतक कोई भी रेत के अवैध उत्खनन को रोकने का टास्क पूरा नहीं कर सका. रेत माफिया इतना ताकतवर है कि उसके सामने जिला प्रशासन,वन विभाग और पुलिस हमेशा बौना साबित होता आया है. पिछले दो दशक में वन और पुलिस विभाग के दर्जनों कर्मचारी इस रेत माफिया से जूझते हुए अपनी जान से हाथ धो चुके हैं. किसी भी दल की सरकार हो इस रेत माफिया को नेस्तनाबूद नहीं कर पायी.इसी का नतीजा है कि इस इलाके से चुने जाने वाले एक दर्जन से अधिक विधायकों में से आधे मंत्री बनते हैं और कुछ तो अपनी अवैध कमाई से 'व्हाइट हाउस' की अनुकृतियाँ तक बना लेते हैं .अतीत में मंत्रियों के परिजनों ने इस अवैध उत्खनन के खिलाफ कार्रवाई का विरोध करते हुए मामा सरकार के खिलाफ आंदोलनों कि अगुवाई तक की.
चंबल में रेत के अवैध उत्खनन से हजारों परिवारों का पेट भी पलता है ,रेत उत्खनन एक उद्योग की तरह है.भीमकाय जेसीबी ,विशालकाय डम्पर और ट्रेक्टर ट्रालियों के जरिये यहां अवैध उत्खनन होता आया है. इसी साल चम्बल संभाग में अवैध उत्खनन के 1290 मामले दर्ज किये गए ,पुलिस ने 424 ,खनिज विभाग ने 728 और वन विभाग ने 138 मामले दर्ज किये गए.बेमन से की गयी कार्रवाई में भी 84724 घन मीटर रेत जब्त की गयी. इसकी कीमत 4 करोड़ रूपये से अधिक है. इसी कार्रवाई में 49 ट्रक,304 ट्रेक्टर ,57 डम्पर पुलिस ने 287 ट्रक,36 डम्पर 94 ट्रेक्टर खनिज विभाग ने सबसे कम 2 ट्रक,65 ट्रेक्टर और 53 दूसरे वाहन जब्त किये .अब डि-नोटिफिकेशन के बाद इस सब कार्रवाई की जरूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि अब सब वैध तरिके से चंबल का सीना खोद सकेंगे .ये राष्ट्रीय अभ्यारण्य केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के संसदीय क्षेत्र में आता है .इसे बर्बाद करने में उनकी भूमिका से भी इंकार नहीं किया जा सकता l
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