खामोश रहकर नहीं जनता की आवाज बनकर दिखाइए...
विकास नहीं विश्वास यात्रा निकालिए
जनता विधायक-पार्षद इसलिए चुनती है ताकि लोग उनसे अपना दर्द साझा कर सकें l रोजमर्रा की परेशानियों का हल निकल सके l क्षेत्र का विकास जनता की जरूरतों की तर्ज पर हो सके l अधिकारियों की तानाशाही और कर्मचारियों की मनमानी पर लगाम लग सके l लेकिन जब जनता के द्वारा चुना गया व्यक्ति जनता की तरह ही असहाय हो जाएगा l कुछ कर नहीं पाएगा l उन्हीं अधिकारियों-कर्मचारियों की मनमानी की भेंट चढ़ जाएगा तो लोकतंत्र का मतलब कहां रह जाएगा l जनता द्वारा जनता के लिए चुना गया लोक भी तंत्र के अधीन नजर आएगा l ऐसा शहर में बरसों से होता चला आ रहा है l विधायक खामोश रहते हैं l जो चल रहा है उसे देखते रहते हैं l कभी कहते हैं तो कोई सुनता नहीं है l कोई सुनता है तो समझता नहीं है l
इसलिए समझने के बजाय सहने की परिपाटी अब आदत बन चुकी हैl जनता ने भी उम्मीद छोड़ दी है l वो भी नेता को अपने जैसा मजबूर मानते हैैं l अपनी ही बिरादरी का समझकर खामोश हो जाते हैं l किसी का घर तोड़ दिया जाता है l घर तोडऩे का मुआवजा तक नहीं दिया जाता है l नए नियम बनाए जाते हैं l नए के चक्कर में पुराने नियम खत्म कर दिए जाते हैं l करोड़ों खर्च कर सडक़ें बनाई जाती हैं, लेकिन शहर की गलियां गड्ढों में जीवन बिताती है l बस्तियां अंधेरे से निकल नहीं पाती हैं lमनमाना संपत्ति कर लगाया जाता है l जिन गांवों में विकास नहीं है, उन्हें भी नगर निगम की सीमा में शामिल कर लिया जाता है l लेकिन वहां बुयिनादी जरूरतों पर भी ध्यान नहीं दिया जाता है l
सडक़ बन जाती है तो पानी नहीं पहुंच पाता है l पानी तो पानी ड्रेनेज और जल निकासी की व्यवस्था दूर-दूर तक नजर नहीं आती है l नेताओं की बिरादरी इस बात का जवाब नहीं दे पाती है कि संपत्ति उनकी, कर निगम का तो व्यवस्थाओं का जिम्मा किसका होगा l शहर की कराहती अंदरुनी हालत में फिर एक उम्मीद की किरण नजर आती है l गली-मोहल्लों में चुनाव कराए जाते हैं l नगर निगम में वर्षों बाद पार्षद चुनकर आते हैं l महापौर को अपना दर्द सुनाते हैं तो संगठन अनुशासन का चाबुक लेकर खड़ा हो जाता है l जनता की आवाज और नेताओं की मांग को अनुशासनहीनता कहा जाता है l यह लोकतंत्र नहीं रोगतंत्र है l इसका इलाज होना चाहिए l समय रहते हकीकत को समझना चाहिए l चंद महीनों बाद प्रदेश की सरकार जनता के बीच जाएगी, तब नेताओं की खामोशी जवाब नहीं दे पाएगी l
जनता की चीखें उन्हें दरवाजे से लौटाएगी l जनता जब सवाल करने पर उतर आएगी तो विकास की सारी यात्राएं धरी रह जाएंगी lआपका अनुशासन शासन के लिए बाधा बन जाएगा l मुख्यमंत्री से लेकर सरकार तक का किया गया विकास बौना नजर आएगा l जनता के दर्द को जुबान बनने दीजिए l विधायकों और पार्षदों को अपनी बात कहने दीजिए l ताकि लोगों के दर्द पर निराकरण का मरहम लग सके और नेता खुद को जनता का प्रतिनिधि कह सके l वरना नेता अधिकारियों के अधीन होकर रह जाएगा l उनकी पीठ थपथपाएगा l उनके कामों का श्रेय लेकर विकास यात्रा में शामिल हो जाएगा लेकिन जनता का विश्वास हासिल नहीं कर पाएगा l
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