बहुत लोग ब्राह्मण और पंडित के बीच अंतर नहीं जानते...
वर्णो को जाति में जानबूझ कर बदला गया या उस दौर में ये समय की मांग थी !
ब्राह्मण और पंडित किसी जाति का नाम है या दोनों ही एक है या फिर दोनों में से कोई भी जाति नहीं है ! जानने का प्रयास करें l बहुत लोग ब्राह्मण और पंडित के बीच अंतर नहीं जानते। ज्यादातर लोग पंडित और ब्राह्मण को एक ही समझते हैं। इसे एक जाति के रूप में माना जाता है। आइए जानते हैं क्या ब्राह्मण और पंडित किसी जाति का नाम है। क्या दोनों ही एक है या फिर अलग-अलग जातियां हैं। या फिर दोनों में से कोई भी जाति नहीं है। वर्णो को जाति में जानबूझ कर बदला गया या उस दौर में ये समय की मांग थी ! एक उदाहरण से समझने का प्रयास करते है l
ब्राह्मण एक वर्ण है जाति नहीं
सरसंघ चालक मोहन भागवत के द्वारा रविदास जयंती के अवसर पर दिया गया एक बयान इन दिनों चर्चा में है l उसी पर कुछ जरूरी बातें जिन्हें जानना सबके लिए जरूरी है l भारतवर्ष में जब कर्म के आधार पर वर्ण विभाजन किया गया तब पहली बार ब्राह्मण शब्द का उपयोग किया गया। "ब्रह्मं जानाति सः ब्राह्मणः ,यह ऋषित्व-परणीति।अर्थात वह व्यक्ति जो ब्रह्म को जानता है एवं जिसके अंदर ऋषित्व उपस्थित है, वही ब्राह्मण है। यानी ऐसा व्यक्ति जो अपने आसपास मौजूद सभी प्राणियों के जन्म की प्रक्रिया और उसके कारण को जानता है, जिसके अंदर लोक कल्याण की भावना हो ऐसा व्यक्ति ब्राह्मण कहलाता है।
यह एक वर्ण है, जाति नहीं है। उसी प्रकार कर्म (काम) के आधार पर अन्य वर्णों का निर्धारण होता चला गया। जिसे बाद में समय के साथ स्वार्थवश विकृत करते हुए कुछ चालक लोगों ने जाति व्यवस्था में का नाम दे दिया गया। अति प्राचीन (पाषाण काल ) और उसके बाद के मध्य भारत में जाति व्यवस्था जैसी कोई चीज नहीं थी l ये तो मध्यकाल के विकसित दौर में निर्मित हुई है l
कोई भी व्यक्ति पंडित बन सकता है क्योंकि ये कोई जाति नहीं उपाधि है
भारतवर्ष में जब विश्वविद्यालय नहीं थे। योग्यता का निर्धारण शास्त्रार्थ के दौरान प्रदर्शन पर निर्भर करता था तब विशेषज्ञों का एक समूह सर्वश्रेष्ठ एवं योग्य व्यक्ति का चयन करता था। ऐसे व्यक्ति को पंडित कहा जाता था। सरल शब्दों में ऐसा व्यक्ति जो किसी विषय विशेष का ज्ञाता हो। जिसने उस विषय पर अध्ययन किया हो एवं कुछ नया खोज निकाला हो उसे पंडित कहा जाता था। पंडित एक उपाधि है।
आप इसे पीएचडी के समकक्ष मान सकते हैं। यह उपाधि केवल हिंदुओं की पूजा पद्धति में पारंगत या विशेषज्ञों को नहीं दी जाती थी बल्कि उनके अलावा किसी भी प्रकार की कला में दक्षता हासिल करने के बाद, रिसर्च करें और कुछ नया खोज निकाले तो उसे पंडित कहा जाता था। संगीत आदि कलाओं में पंडित की उपाधि आज भी पीएचडी से अधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है। शास्त्रों के अलावा शस्त्र विद्या की शिक्षा देने वाला योद्धा भी पंडित (आचार्य) कहलाता था।
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