G.News 24 : तीन बार के विधायकों को भाजपा नहीं देगी टिकट !

अब संगठन में कसावट और नए कार्यकर्ता बनाने पर पूरा फोकस...

तीन बार के विधायकों को भाजपा नहीं देगी टिकट !

मध्य प्रदेश में अब विधानसभा आम चुनाव के लिए महज आठ माह का समय रह गया है। इसके चलते अब भाजपा ने अब संगठन में कसावट और नए कार्यकर्ताओं को बनाने पर पूरा जोर लगाना शुरु कर दिया है। इसके साथ ही पार्टी अपने उन माननीयों को टिकट के दायरे से बाहर करने का मन बना चुकी है, जो लगातार तीन बार से न केवल चुनाव जीत रहे हैं, बल्कि आयु के सात दशक पूरे कर चुके हैं। यही वजह है कि कुछ माननीयों ने अपनी राजनैतिक विरासत पारिवारिक सदस्यों को सौंपने की तैयारी खुलकर करना शुरू कर दी है।

दरअसल बीते चुनाव के परिणामों से सबक लेते हुए भाजपा इस बार वह सभी कदम उठाने जा रही है जो उसकी जीत के लिए बेहतर साबित हों। पार्टी ने इसके लिए अभी से ऐसी आधा सैकड़ा सीटों का भी चयन किया है जहां पर पार्टी को पांच हजार से कम मतों से हार-जीत का सामना करना पड़ा था। इसी तरह से पार्टी ने उन सीटों पर भी विशेष ध्यान देना तय कर लिया है जिन पर हार का सामना करना पड़ा था। इन सीटों पर पार्टी अपने समयदानी कार्यकर्ताओं को अभी से तैनात करने जा रही है, जिससे की इन सीटों के बारे में पूरी तरह से मैदानी जानकारी हासिल की जा सके। यही नहीं यह समयदानी ही उन सीटों पर नए चेहरों की भी तलाश कर संगठन को नाम सुझाएंगे, जिन्हें पार्टी अपने पुराने माननीयों की जगह इस बार टिकट देकर जीत हासिल कर सके।

कुछ समय पहले हुई प्रदेश कार्यसमिति बैठक में भी इस पर चर्चा हो चुकी है। इन सीटों को आकांक्षी नाम दिया गया है। इसके बाद ही कमजोर सीटों की पड़ताल की गई। भाजपा के प्रदेश संगठन के सामने 50 सीटें ऐसी निकलकर आई हैं, जहां महज 5 हजार से कम वोटों से हार-जीत हुई थी। कम अंतर से भाजपा ने 24 सीटें जीत ली थीं, जबकि 22 गंवा दी थीं। मार्च में सरकार के तीन साल पूरे होने के साथ ही इन विधानसभाओं में पार्टी अपना फोकस बढ़ाने जा रही है। 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने ग्वालियर दक्षिण, दमोह, पथरिया, नेपानगर जैसी भाजपा की परंपरागत सीटें भी मामूली अंतर से गंवा दी थी। प्रदेश में 2023 के विधानसभा चुनाव नवंबर में होने हैं। इस चुनाव में भाजपा ने 200 से अधिक सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। यह बात अलग है कि यही लक्ष्य भाजपा ने वर्ष 2018 के चुनाव के लिए भी तय किया था, जिसे पाया नहीं जा सका था। इसकी वजह से ही इस बार पार्टी हारी हुई सीटों के लिए विशेष रणनीति बनाकर उस पर अमल कर रही है।

पार्टी के साथ इस बार “श्रीमंत” भी हैं, जिन्होंने 2018 में कांग्रेस की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसके बाद भी भाजपा कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है। इस वजह से हर सीट के लिए रणनीति बनाई जा रही है। बीजेपी की सर्वे रिपोर्ट में केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं के प्रभाव, मौजूदा विधायकों की स्थिति और कांग्रेस की स्थिति की पड़ताल की गई है। इन बिन्दुओं को आधार बनाकर ही बीजेपी आगामी चुनावों के लिए अपनी रणनीति तैयार कर रही हैं। सबसे ज्यादा फोकस आकांक्षी यानी उन सीटों पर है, जहां पार्टी को हार मिली थी। बीजेपी ने सर्वे में अपने विधायकों की स्थिति की जानकारी भी जुटाई है। इस रिपोर्ट पर हाल ही में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विधायकों से बैठक की थी। उन्हें उनकी कमजोरियां बताकर अपनी स्थिति को सुधारने की नसीहत दी थी।

जिन सीटों पर विशेष फोकस किया जा रहा है उनमें एक हजार से भी कम अंतर से हारने वाली ग्वालियर ग्रामीण, सुवासरा, जबलपुर-उत्तर, राजनगर, दमोह, ब्यावरा, राजपुर की सीटें शामिल हैं। इसके अलावा पार्टी को मांधाता, नेपानगर, गुन्नौर में दो हजार से कम मतों से जबकि जोबट, मुंगावली, पथरिया, तराना, पिछोर, सांवेर में तीन तीन हजार के कम अंतर से हार का सामना करना पड़ा था। इसी तरह से छतरपुर और वारासिवनी सीटों पर भी भाजपा को चार हजार के कम अंतर से हार का सामना करना पड़ा था।

बीते चुनाव में भाजपा-कांग्रेस ने 70 या इससे अधिक उम्र वाले नौ नेताओं को प्रत्याशी बनाया था, जिसमें से सिर्फ 4 ही जीते। सबसे अधिक उम्र वाले भाजपा के मोती कश्यप (78) और कांग्रेस के सरताज सिंह (78) चुनाव हार गए थे। भाजपा के तीन प्रत्याशी गुढ़ से नागेंद्र सिंह (76), नागौद से नागेंद्र सिंह (76) और रेगांव से जुगल किशोर बागरी (75) ही चुनाव जीतने में सफल रहे थे , जबकि कांग्रेस से केवल एक प्रत्याशी कटंगी से तमलाल रघुजी सहारे (71) ही जीत मिल सकी थी। गुढ़ विधायक नागेंद्र सिंह विधानसभा में सबसे उम्रदराज विधायक हैं। उनकी उम्र उस समय 76 वर्ष 1 माह और 25 दिन थी।

Reactions

Post a Comment

0 Comments