आई हंसते - मुस्कराते नाट आउट...
89 रन बनाकर आउट हंसते - हंसते विदा हो गयी
ग्वालियर l जिंदगी की पिच पर नाट आउट 89 रन बनाकर आउट हंसते - हंसते विदा हो गयी।आई थी तो पीआरओ मधु सोलापुरकर की मां, लेकिन वे सब की प्यारी आई थीं।आई के वात्सल्य की ठंडी छाया में हम सब बीते तीन दशक से सुरक्षित थे।वे सचमुच सुरक्षा कवच थीं अपने बच्चों के लिए।दो बेटों और तीन बेटियों के अलावा वे अपने कुनबे को जिस सुप्रबंधन के साथ जोड़े हुई थी ,उसका अनुमान लगाना आसान नहीं।मै मेरी मां के निधन के बाद अक्सर उनमें अपनी मां तलाश लेता था।वही फुर्ती,वो ही अकड़ और वो ही साफगोई जो मेरी मां में थी, उनमें भी थी।
मधु के विवाह के बाद सोलापुरकर परिवार में मेरा मान , स्थान तनिक अलग था।आई मुझसे अपने घर- परिवार की हर मुद्दे पर बात करते हुए कभी नहीं झिझकीं। बेटों को डाट पड़वाना हो या उन्हें हिदायत दिलवाना हो,मै उनके लिए भरोसेमंद था। मधु अपनी नौकरी के दौरान जहां भी पदस्थ रहे मेरा आना जाना लगा रहा।मै भले रात दो बजे उनके घर पहुंचा आई ने खुद जागकर खाना खिलाया।उन दिनों मै भी मधुपान का शौकीन था, लेकिन आई को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।उनका मकसद होता था कि कोई भूखा न सोये बस।
आई एक सैन्य पति की साहसी पत्नी थीं। उन्होंने पति के निधन के बाद अपने बच्चों की पूरी हिकमत अमली से परवरिश की। पढ़ाया,लिखाया, विवाह किए और आत्मनिर्भर बनाया। उनके सभी बच्चे नौकरीशुदा है।वे अपने भाइयों की प्रिय बहन, बहुओं की प्रिय सांस, बच्चों की प्रिय मां और हम सब की प्रिय आई थी।
पिछले साल घर में फिसलने के बाद उनके कूल्हे की हड्डी टूट गई थी , लेकिन उनके आत्मविश्वास की वजह से उनका जरावस्था में भी आपरेशन कामयाब रहा।वे वॉकर के सहारे चलने फिरने लगी थीं।बेहद धार्मिक आई की घर के कामकाज में हमेशा अपनी पुत्रवधू से स्पर्धा रहती थी। आलस्य उन पर अंत तक हावी नहीं हो सका। पहाड़ से दुख उन्होंने हंसकर सहे।सुख उनके हिस्से में कम नहीं रहे। उन्होंने परिवार के सदस्यों को जाते भी देखा और आते भी।वे स्थितिप्रज्ञ थीं।
अमेरिका आने से पहले आई से मिलकर आया था।दो दिन पहले ही उनकी खैरियत पूछी थी।सब ठीक था ,लेकिन उनकी यात्रा पूरी हो चुकी थी। अंतिम समय में आई के दर्शन न हो पाने की खलिश मन में है किन्तु उनका मुस्कराता चेहरा आंखों में हमेशा सजीव रहेगा।आई को विनम्र श्रद्धांजलि।
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