कानून मंत्रालय ने संसदीय समिति को दी जानकारी...
देश के हाईकोर्टों में 4 सालों में 79 प्रतिशत जज उच्च जातियों से नियुक्त किए गए
नई दिल्ली । देश के हाईकोर्टों में वर्ष 2018 से 2022 तक के चार सालों में 79 प्रतिशत जज उच्च जातियों से नियुक्त किए गए। केंद्रीय कानून मंत्रालय ने एक संसदीय समिति के सामने हाल में जो रिपोर्ट दी है उसमें यह बात उजागर हुई है। मंत्रालय ने विधि एवं न्याय पर संसद की स्थाई समिति को बताया है कि जजों की नियुक्ति का कॉलिजियम सिस्टम भी बीते तीन दशकों से हाई कोर्टों में सामाजिक विविधता सुनिश्चित नहीं कर सका है जिसकी कल्पना सुप्रीम कोर्ट ने की थी। देश के 25 हाईकोर्टों में नियुक्त जजों में ज्यादातर उच्च जातियों से हैं।
वहीं देश की 35 प्रतिशत आबादी वाला पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आज भी भेदभाव का शिकार हो रहा है। आंकड़े बताते हैं कि पिछड़े वर्ग से मात्र 11 प्रतिशत जज ही हैं। इसी तरह वर्ष 2018 से हाई कोर्टों में नियुक्त कुल 537 जजों में से अल्पसंख्यक समुदाय के सिर्फ 2.6 प्रतिशत हैं। क्रमशः 2.8 प्रतिशत और 1.3 प्रतिशत के आंकड़े के साथ अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) का भी यही हाल है।
केंद्रीय कानून मंत्रालय ने संसदीय समिति को सौंपी रिपोर्ट में इस हालात को लेकर अपनी बेबसी जताई है। मंत्रालय ने कहा कि चूंकि हाई कोर्टों और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति कॉलेजियम सिस्टम से होती है इसलिए सामाजिक विविधता सुनिश्चित करने की दिशा में सरकार कुछ नहीं कर सकती। मंत्रालय ने रिपोर्ट में कहा संवैधानिक अदालतों में नियुक्ति प्रक्रिया में सामाजिक विविधता और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम और हाई कोर्टों के कॉलिजियमों का प्राथमिक दायित्व है।
जजों का कॉलेजियम दो स्तरों पर काम करता है- सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट। भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) की अगुवाई वाला चार सदस्यीय कॉलेजियम सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति का प्रस्ताव लाता है। वहीं हाई कोर्ट कॉलेजियम की अगुवाई अपने-अपने हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश करते हैं। हाई कोर्ट कॉलेजियम में तीन सदस्य होते हैं। यही कॉलेजियम अपने यहां नियुक्ति के लिए जजों के नाम सुझाता है।
केंद्रीय कानून मंत्रालय ने वक्त-वक्त पर सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के चीफ जस्टिसों को चिट्ठियां लिखकर जजों की नियुक्ति में सामाजिक विविधता एवं सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने को कहा है। संसदीय समिति को दी गई अपनी रिपोर्ट में मंत्रालय ने कहा कि कॉलेजियम अपने प्राथमिक उद्देश्य में असफल रहा है। कॉलेजियम सिस्टम से जजों की नियुक्ति में सामाजिक असमानता मिट नहीं पाई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्टों में उन्हीं जजों को नियुक्त करती है जिनके नाम की सिफारिश कॉलेजियम करता है।
मंत्रालय ने यह भी कहा कि संविधान के अनुच्छेद 217 और 224 के तहत हाई कोर्ट जजों की नियुक्ति के तय नियमों में किसी जाति या वर्ग के लिए आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है। फिर भी सरकार हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों से लगातार अनुरोध करती रही है कि वह जजों की नियुक्तियों के प्रस्ताव भेजते वक्त एससी एसटी ओबीसी अल्पसंख्यक और महिलाओं के प्रतिनिधित्व का ध्यान रखें ताकि सामाजिक विविधता सुनिश्चित की जा सके।
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