नोटबंदी को लेकर दायर की गई सभी 58 याचिकाओं को किया खारिज...
सुप्रीम कोर्ट के 5 जज वाली बेंच नोट बंदी को लेकर दिया बड़ा फैसला !
जस्टिस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने 7 दिसंबर को सरकार और याचिकाकर्ताओं की पांच दिन की बहस सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। जस्टिस नजीर अपने रिटायरमेंट से दो दिन पहले नोटबंदी पर फैसला सुनाया है। फैसला सुनाने वाली बेंच में जस्टिस अब्दुल नजीर, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस ए.एस. बोपन्ना, जस्टिस वी. रामासुब्रमण्यन, और जस्टिस बी.वी. नागरत्ना शामिल हैं। इससे पहले कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुरक्षित रखते हुए केंद्र और आरबीआई से नोटबंदी से जुड़े सभी दस्तावेज और रिकॉर्ड कोर्ट में पेश करने को कहा था।
एक हजार और 500 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले को गंभीर रूप से दोषपूर्ण बताते हुए चिदंबरम ने दलील दी थी कि केंद्र सरकार कानूनी निविदा से संबंधित किसी भी प्रस्ताव को अपने दम पर शुरू नहीं कर सकती है और यह केवल आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की सिफारिश पर किया जा सकता है। साल 2016 की नोटबंदी की कवायद पर फिर से विचार करने के सुप्रीम कोर्ट के प्रयास का विरोध करते हुए सरकार ने कहा था कि अदालत ऐसे मामले का फैसला नहीं कर सकती है, जब बीते वक्त में लौटकर कोई ठोस राहत नहीं दी जा सकती है।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट शीतकालीन छुट्टियों के चलते बंद था और आज 2 जनवरी से खुला है। नोटबंदी के फैसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट यह देखने की कोशिश की है कि क्या सरकार ने वाकई आरबीआई के नियमों का उल्लंघन किया था। बता दें कि केंद्र सरकार ने 8 नवंबर 2016 को अचानक देश में नोटबंदी कर दी थी। इसके तहत 1000 और 500 रुपये के नोटों को चलन से बाहर कर दिया गया था। इस फैसले के बाद पूरे देश को नोट बदलवाने के लिए लंबी कतारों में लगना पड़ा था। इस दौरान कई लोगों की जान भी चली गई थी।
याचिकाओं में फैसला मनमाना बताया गया था !
बेंच ने केंद्र के 2016 के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी, आरबीआई के वकील और वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिदंबरम और श्याम दीवान समेत याचिकाकर्ताओं के वकीलों की दलीलें सुनी थीं और अपना फैसला सुरक्षित रखा था। याचिकाओं में तर्क दिया गया है कि डिमोनेटाइजेशन का फैसला मनमाना, असंवैधानिक और भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम के तहत निर्धारित शक्तियों का दुरुपयोग किया गया था।
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