अश्कों भरा चेहरा धोकर आए हैं, तेरी याद मे आंखें भीगोकर आए है...
लोग मेरी खामोशी की वजह पूछते हैं, उनको कैसे बताए खुशियां तो सारी घर पर लुटाकर आए है !
आजकल छोटे बड़े शहर बाजार कस्बा में एक नया दौर शुरु हो गया है। जहां देखिएअनाथालय बृद्धा आश्रमों का लटकता बोर्ड दिखाई दे रहा है।थोड़ा करीब जाये तो टकटकी सड़क के तरफ लगाए बेसहारा लाचार बिमार चश्मों के भीतर से अश्रुपूरित निगाहें से अपनों की तलास में देख रही मायूसी भरी आंखें जरुर नजर आ जायेगी!किसी भी गुजरती लग्जरी गाड़ी के गुजरते ही जीवन के आखरी सफर के बीरान रास्ते पर निकल पड़े बेसहारा मां बाप अपने जीगर के टुकड़े की तलास में आस भरी नजरों से सड़क पर निहारने लगते है कि शायद उनका इकलौता इन्जिनियर बेटा देखने आ रहा हो।मगर नहीं साहब ऐसा कुछ नहीं होता!सबरी को तो राम मिल गए मगर उन मां बाप को वह इकलौती सन्तान जिसके लिए सारा जीवन कर दिया कुर्बान वर्षों गुजर गया कभी देखने तक नहीं आया!कभी ए क्लास का अफसर रहा वह इन्सान टूट कर फूट फूट कर रो पड़ा जिसकी ज़िन्दगी में कभी किसी चीज का कभी अकाल नहीं पड़ा लाख कोशिश के बाद भी न अपना नाम बताया न ओहदा न नालायक औलाद करनामा बस यही कहते रहे सब अपना दोष है!
आप जब भी जिस भी बृद्धा आश्रम में चले जाईए अपनों की बेरुखी की मार झेल रहे लाचार बूढ़े मां बाप की अनगिनत हकीकत रुबरु हो जाती है! दिल थरथरा उठता है! हाथ कांप जाते हैं! आत्मा कराह उठती है।आंखों में आंसुओ का सैलाब बह चलता है! मन मायूस ज़िन्दगी की सच्चाई जानकर खुद को धिक्कारने लगता है! देखिए साहब मुझे पता है अखबारी दुनियां के राह से हटकर समाज की सच्चाई को कलम से लिपिबद्ध कर सोसल मिडिया के माध्यम से लोगों के बीच प्रसारित करना आज के जमाने का पन्ना नहीं है।फिर भी हमने संकल्प के साथ इस अभियान को शुरू किया जब भी मौका मिलता बृद्धाआश्रमों में जरुर चला जाता हूं!एक भी मां बाप के दर्द पर मरहम लगा सका तो धन्य हो जाऊंगा एक भी औलाद इस लेख को पढ़कर शर्मिन्दगी महसूस कर अपनी गलती सुधार लेगी तो जीवन धन्य हो जायेगा! मुझे सियासत के रियासत की खबरों देश विदेश में हो रही तमाम घटनाओं का पुर्ण ज्ञान है! मगर आम आदमी को इससे क्या लाभ होगा! अगर रोज लिखा जाय तो भी न युद्ध रूकेगा न महंगाई घटेगी न भ्रष्टाचार रूकेगा। लेकिन लगातार प्रयास के बदले भारतीय संस्कृति के विलोपन में एक भी सहयोगी सम्बोधन काम आ गया तो इस समाज के लोगों का भला जरूर होगा।
इस बदलते परिवेश में जब देश आधुनिकता की कसौटी पर चढ़ चुका है क्या भारतीय संस्कृति पर कुठाराघात नहीं हो रहा है! संस्कार आचार विचार तेजी से बदल रहे हैं! बड़े छोटे का लिहाज लाज सब खत्म हो रहा है! एकाकी दाम्पत्य जीवन संयुक्त परिवार का विघटन! फ़ूहड़ नाच गाना के मौसम में कौन सुनता है धार्मिक प्रवचन!सब कुछ तो बदल रहा है।और हम आप खुद उसमें सहयोगी बन रहे हैं!फैसन के नाम पर देह ऊघारु कपड़ों को पहना कर मां बाप अपने बच्चों खुद को एडवांस बता रहे हैं! विकार युक्त संस्कार विहीन मैकाले के सोच वाले महंगे विद्यालयो में बच्चों को पढ़ाकर आखरी वक्त में पश्चाताप कर रहे हैं!धर्म कर्म के मर्म से अनभिज्ञ वह सन्तान न पितृ देवो भव: को जानती है न मातृ देवो भव :को जानती है।वह तो पाश्चात्य सभ्यता को ही सिरमौर मानती है!आखिर इसमें दोष किसका है! खुद के बनाए जाल में उलझ कर दम तोड रहे वहीं लोग हैं जो आजकल बृद्धा आश्रमों में अपनों की तलास कर रहे है जिनके बच्चे आया के भरोसे हास्टलों में बचपन गुजार दिए न उनको संस्कार मिला ने मां बाप का प्यार मिला!बहरहाल यह तो उच्च वर्गीय समाज मै फैलती महामारी है!
लेकिन यह छुआ छूत की बिमारी है इससे सारा समाज प्रदूषित हो चला है।गजब का परिवर्तन हो रहा है!सनातन संस्कृति पुरातन समाज अपना वजूद खो रहा है!निम्न वर्गीय परिवार से लेकर मध्य वर्गीय परिवार तक का मुखिया रो रहा है!सन्तान का तभी तक लगाव है जब तक उसका अपना धरातल तैयार नहीं है! ज्योही तैयार हुआ फिर किसी से प्यार नहीं है!कहा गया है जिस देश समाज से संस्कृति तथा संस्कार खत्म हो गया उस देश समाज में कभी सुख सम्बृधि नहीं रुक पाती है।उस देश समाज का विघटन निश्चित है! आजकल हम आप उसी दौर से गुजर रहे हैं। जिसका दुखद: परिणाम बृद्धा आश्रम तथा अनाथालयों में देखने को मिल रहा है।अदालतों में भरण पोषण के तलाक के वाद लगातार बढ़ रहे हैं सब कुछ अनहोनी के राह पर आज की युवा पीढ़ी नहीं सम्हली तो उनका आखरी सफर भी जहर बुझे आवरण में ही गुजरेगा।बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से खाय! याद रखना जो तुम आज दोगेवहीं कल तुम्हें मिलेगाचाहे जिस रुप मे मिले!मां बाप की सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं! याद रखना वक्त सबका बदलता है! सबका मालिक एक।अब भी समय है अपनी संस्कृति को धारण करें!अपने संस्कार को अपनाएं!हम सुधरेंगे जग सुधरेगा l
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