ध्रुपद गायन से प्रातःकालीन सभा की शुरुआत, सांध्यकालीन सभा का आगाज़ " तू ही आदि निराकार"प्रस्तुति से हुआ

 तानसेन समारोह-2022...

ध्रुपद गायन  से प्रातःकालीन सभा की शुरुआत, सांध्यकालीन सभा का आगाज़

 " तू ही आदि निराकार"प्रस्तुति से हुआ

ग्वालियर। विश्व संगीत समागम तानसेन समारोह में सोमवार की प्रातःकालीन सभा का शुभारंभ ध्रुपद केन्द्र भोपाल के ध्रुपद गायन के साथ हुआ। राग "भैरव" में प्रस्तुत ध्रुपद रचना के बोल थे " शिव आदि मदअंत"। पखावज पर आदित्य दीप ने संगत की। इसके बाद स्थानीय शंकर गांधर्व महाविद्यालय के विद्यार्थियों ने  राग " देशी" और चौताल में निबद्ध ध्रुपद बंदिश " रघुवर की छवि सुंदर.." का सुमधुर गायन किया। पखावज संगत श्री मुन्नालाल भट्ट की रही।

भारतीय संगीत महाविद्यालय ग्वालियर के आचार्यों एवं विद्यार्थियों द्वारा प्रस्तुत सुमधुर ध्रुपद गायन के साथ विश्व संगीत समागम तानसेन समारोह की तीसरी एवं मंगलवार की सांध्यकालीन सभा का आगाज़ हुआ। राग "शुद्घ कल्याण" ताल चौताल में निबद्ध ध्रुपद बंदिश के बोल थे " तू ही आदि निराकार"। इस प्रस्तुति में संगीत संयोजन सुप्रसिद्ध संगीत गुरू संजय देवले का था। पखावज पर संजय आफले एवं हारमोनियम पर मुनेन्द्र सिंह ने संगत की।

सर्द खुशगवार मौसम,  बासंती बयारों पर सवार सुरों से सजी शास्त्रीय संगीत की महफ़िल, मूर्धन्य संगीतज्ञ पं व्यंकटेश कुमार की मंत्रमुग्ध करती तानें, हवा में तैरती सुमधुर स्वरलहरियां और आंखें मूंदे  मधुर रसपान करते सुधीय श्रोतागण। यहाँ बात हो रही है संगीत शिरोमणि तानसेन की याद में आयोजित हो रहे शास्त्रीय संगीत के सबसे प्रतिष्ठित महोत्सव विश्व संगीत समागम " तानसेन समारोह" में मंगलवार को सजी सांध्यकालीन सभा की। 

समारोह में दक्षिण भारतीय राज्य कर्नाटक के धारवाड़ से पधारे विश्व विख्यात शास्त्रीय गायक पं वेंकटेश कुमार अपनी भावमय एवं सुरीली आवाज में मीठी-मीठी राग रागनियों की  सरिता बहा दी। उन्होंने आकर्षक राग " यमन कल्याण" को अपने गायन के लिए चुना। वेंकटेश जी ने जब अपनी बुलंद आवाज में इस राग और एक ताल में निबद्ध बड़ा ख्याल " पट तोरे कवन.." गाया तो गुणीय रसिक वाह वाह कहे बिना न रह सके। उन्होंने तीन ताल में पिरोकर  छोटा ख्याल " हरवा मोरा देव.." गाकर रसिक श्रोताओं को घरानेदार गायिकी के सम्मोहन में बांध लिया। उनके गायन में राग यमन कल्याण की सभी विशिष्टताएँ साफ झलक रहीं थीं।

 ग्वालियर व किराना घराने की गायकी में सिद्धहस्त पं व्यंकटेश जी के गायन में राजसी आलाप ने विलंबित और द्रुत का अनुसरण कर रसिकों की मनोदशाओं को अपने अनुकूल बना लिया। फिर उन्होंने  राग " गौड़ मल्हार" में विलंबित तीन ताल में निबद्ध बड़ा ख्याल "काहे हो. ." एवं मध्यलय तीन ताल में छोटा ख्याल " बलमा बहार आये माँ.." पेश कर गुणीय रसिकों को विशुद्ध शास्त्रीय गायिकी की बारीकियों व सौंदर्य बोध से परिचित करा दिया। उन्होंने राग "तिलक कामोद" में भी एक बंदिश "डमरू डम डम बाजे" का गायन किया और प्रसिद्ध भजन " नाम जपन क्यों छोड़ दिया" सुनाकर माहौल को भक्तिमय बना दिया। 

विश्व विख्यात संगीतज्ञ और ग्रेमी पुरस्कार( संगीत का दुनियाँ का सबसे बड़ा एवार्ड) विजेता पद्मभूषण पंडित विश्वमोहन भट्ट और उनके सुयोग्य बेटे सलिल भट्ट की मोहनवीणा-सात्विक वीणा जुगलबंदी से निकली मधुर झंकार ने रसिक श्रोताओं के मन को झंकृत कर दिया। पं विश्वमोहन भट्ट द्वारा स्वनिर्मित राग "विश्व रंजनी" में किए गए वादन में वीणा से निकली सम्मोहनी संगीत की लहरियों में श्रोता मग्न होकर संगीत सरिता में गोते लगाते नज़र आए। प्रांगण में बह रही हल्की-हल्की हवाओं से अठखेलियां कर रही वीणाओं की तानों से कभी कल-कल  बह रहे झरने की चंचलता का आभास हुआ तो कभी ऐसा लगा कि बर्फ से लदी हसीन वादियाँ तानसेन के आंगन में सिमट आईं हैं।


पंडित विश्वमोहन भट्ट ने राग शिव रजनी व मधुवंती के मिश्रण से राग " विश्वरंजनी" ईजाद किया है। पिता-पुत्र की जोड़ी ने इस राग में आलाप, जोड़ झाला को बड़ी खूबसूरती से और दिलकश अंदाज में पेश किया। उन्होंने जोड़ आलाप में नई धुन बजाकर महफ़िल में चार चाँद लगा दिए। उन्होंने अपने वादन में रुद्र वीणा का भी आभास कराया। द्रुत तीन ताल में और तेज रिदम में सुरीली तानें सुनकर रसिक मंत्रमुग्ध  हो गए।

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