ओरछा में भगवान राम की मान्यता राम राजा के रूप में है

की खुदाई में मिली सदियो पुरानी कॉलोनी...

ओरछा में भगवान राम की मान्यता राम राजा के रूप में है

ओरछा l  मध्यप्रदेश का धार्मिक और पर्यटन नगरी ओरछा की स्थापना 15वीं सदी में बुन्देला राजा रूद्र प्रतापसिंह ने की थी। इसके बाद भारतीचन्द्र, मधु करशाह ने राज्य का काम संभाला और यहां कई निर्माण करवाये। इस बीच ओरछा में कई कॉलोनियों का निर्माण हुआ। ओरछा की खुदाई में 500 वर्ष पुरानी कॉलोनी मिली है। इससे यह साबित होता है कि 15वीं शताब्दी में भी ओरछा सबसे विकसित रियासतों में शामिल था।

ओरछा के जहांगीर महल के दक्षिणी भाग खुदाई का काम कराया जा रहा है। किले परिसर के 600मीटर के क्षेत्र में मकान आदि के अवशेष एवं अन्य सामग्री भी मिली है। मजदूरों से संभलकर खुदाई करवाई जा रही है।अभी तक की खुदाई में यहां पर 2 कॉलोनियों के अवशेष मिले हैं। पुराने आलीशान मकानों अवशेष के साथ ही सड़क, उस समय के मिट्टी और टेराकोटा के बर्तनों के साथ ही अन्य चीजें मिली हैं। दावा किया जा रहा है कि यह 500 वर्ष पुरानी विकसित संस्कृति एवं सभ्यता से जुड़ी निशानी है।

इन कॉलोनियों को देखकर पता चलता है कि उस समय भी ओरछा राज्य को व्यवस्थित तरीके से संचालित करने के लिये राजा द्वारा अपने मंत्री, बजीर एवं सूबेदारों को कॉलोनी बनाकर रखा जाता था। इससे सभी की सुरक्षा के साथ ही राजकीय कार्य में सुविधा होती होगी। यहां पर मिल रहे अवशेषों से स्पष्ट होता है कि यह पूरा निर्माण एक सुरक्षित कैम्पास नुमा एरिया रहा होगा।

ओरछा की स्थापना 15वीं सदी में बुन्देला राजा रूद्र प्रयाप सिंह ने की थी। ओरछा अपने राजा महल, रामराजा मंदिर, शीश महल, जहांगीर महल आदि के लिये प्रसिद्ध है। बुन्देला शासकों के दौरान ही ओरछा में बुन्देली स्थापत्य कला का विकास हुआ है। ओरछा में बुन्देली स्थापत्य के उदाहरण स्पष्टतौर पर देखे जा सकते हैं। जिसमें यहां की इमारतें, मंदिर, महल, बगीचे आदि शामिल है।

आपको बता दें कि महाराजा रूद्रप्रताप सिंह ने रविवार 29 अप्रैल 1531 को ओरछा किले की नींव डाली गयी और उसके कुछ महीने के बाद 1531 में ही एक चीता से गाय को बचाते समय उनकी मृत्यु हो गयी। उसके पश्चात ओरछा का राज्य उनके जेष्ट पुत्र भारतीचंद्र ने संभाला और 1554 में पुत्रहीन वह स्वर्गवासी हो गये और फिर उनके छोटे भाई मधुकरशाह ने राज्य की बागडोर संभाली और 1554 से 1592 तक मधुकारशाह ओरछा के राजा रहे। इसी काल में ओरछा में राममंदिर, लक्ष्मी मंदिर, चर्तुभुज मंदिर आदि का निर्माण हुआ। 

करीब 252 साल तक ओरछा राजधानी रहीं और उसके बाद सन् 1840 में यहां से हटाकर टीकमगढ़ को राजधानी बनाया गया। कहते हैं कि भगवान श्रीराम ने अयोध्या से ओरछा आते समय महारानी कुंवर गणेश से यह शर्तानुसार तय कर लिया था कि जहां वह रहेंगे। वहां कोई दूसरा राजा न रहेगा। इसलिये ओरछा में भगवान राम की मान्यता राम राजा के रूप है और राम की प्रतिष्ठापना भी ओरछा में मंदिर नहीं महारानी के अपने महल में ही है।

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