युक्तियुक्त और अवरोध समाप्त करने की नीति बनाई जाए : MPCCI

सम्पत्तियों की नामांतरण प्रक्रिया को...

युक्तियुक्त और अवरोध समाप्त करने की नीति बनाई जाए : MPCCI


ग्वालियर l सम्पत्तियों की नामांतरण प्रक्रिया को युक्तियुक्त और अवरोध समाप्त करने के लिए नीति बनाए जाने के संबंध में म.प्र. चेम्बर ऑफ कॉमर्स एण्ड इण्डस्ट्री (एमपीसीसीआई) द्बारा प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर, केन्द्रीय नागर विमान एवं इस्पात मंत्री ज्योतिरादित्य  सिंधिया, आयुक्त-ग्वालियर संभााग, कलेक्टर-ग्वालियर एवं नगर निगम आयुक्त को पत्र प्रेषित किया गया है। एमपीसीसीआई अध्यक्ष-विजय गोयल, संयुक्त अध्यक्ष-प्रशांत गंगवाल, उपाध्यक्ष-पारस जैन, मानसेवी सचिव-डॉ. प्रवीण अग्रवाल, मानसेवी संयुक्त सचिव-ब्रजेश गोयल एवं कोषाध्यक्ष-वसंत अग्रवाल ने प्रेस को जारी विज्ञप्ति में अवगत कराया है कि म.प्र. में भूमि/भवन के क्रय-विक्रय का पंजीयन विलेख दर्ज कराने के बाद नामांतरण किये जाने की जो वर्तमान व्यवस्था है, उसमें भूमि/भवन का क्रय-विक्रय कर, उसका पंजीयन कराना उतना कठिन नहीं होता है जितना कि उसका रेवेन्यू रिकॉर्ड या नगर निगम में नामांतरण कराना होता है। 

इस बात की चर्चा एमपीसीसीआई की कार्यकारिणी समिति की बैठक दिनांक 29 सितम्बर,2022 में सदस्यों द्बारा उठाई तो उन्होंने यहां तक बताया कि रेवेन्यू रिकॉर्ड में नामांतरण कराने के लिए वर्तमान व्यवस्था में अवैधानिक रूप से दरें निर्धारित हो गई हैं और वह दरें प्रति बीघा के हिसाब से हैं और यदि जो भूमि/भवन स्वामी उन दरों को या उस सिस्टम को अपनाना नहीं चाहता है तो उसे एक लंबा संघर्ष करना पड़ता है और अंत में उसे उस सिस्टम को मानने के लिए बाध्य होना पड़ता है, जिससे आम जनता के साथ म.प्र. के बाहर के निवेशक जो प्रदेश के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान देना चाहते हैं, उनके मानस पटल पर व आम जनता पर म.प्र. सरकार की छवि जिसमें मुख्यत: माननीय मुख्यमंत्री जी की छवि धूमिल हो रही है। इसी प्रकार जब कोई भवन, किसी भवन स्वामी द्बारा क्रय किया जाता है तो नगर निगम में नामांतरण कराना इतना कठिनाई भरा है कि जो भवन स्वामी नामांतरण कराने में सफल हो जाता है तो उसे ऐसा लगता है कि जैसे उसने कोई जंग जीत ली है।  एमपीसीसीआई द्बारा पत्र में उल्लेख किया गया है कि नामांतरण स्वामित्व को दर्शाने वाला कोई दस्तावेज नहीं है। 

बल्कि यह मात्र कर वसूली के लिए नामांकन प्रक्रिया है, उसके बावजूद इसमें भारी पेचीदगियां मात्र भ्रष्टाचार के लिए और भ्रष्टाचार को बढावा देने के लिए की जा रही हैं। इस संबंध में कई बार स्थानीय अधिकारियों के ध्यान में यह मुद्दा लाया जा चुका है लेकिन कोई ठोस और परिणामजनक हल नहीं मिला है। एमपीसीसीआई द्बारा पत्र के माध्यम से मांग की गई है कि एक नीतिगत निर्णय लेकर यह निश्चिठत किया जाये कि जब भूमि/भवन की रजिस्ट्री सम्पादित होती है, उसी वक्त नामांतरण शुल्क भी जमा कराकर उस भूमि/भवन स्वामी को रजिस्ट्री के साथ उसका नामांकन आदेश भी दिया जावे, जिससे भूमि/भवन स्वामी को अनावश्यक राजस्व/निगम कार्यालयों के चक्कर न लगाना पड़ें व उनके इस कार्य को सम्पन्न करवाने में  अधिकारियों/कर्मचारियों के द्बारा जो आर्थिक शोषण किया जा सकता है, उस पर भी अंकुश लगेगा, साथ ही भ्रष्टाचार करने का अवसर भी नहीं रहेगा। वहीं आम जनता के साथ मध्यप्रदेश के बाहर के निवेशकों के मानस पटल पर प्रदेश की धूमिल होने वाली छवि को भी रोका जा सकेगा।

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