बहन से इतना प्यार की बहन की समाधी के नजदीक स्वयं भी ले ली समाधि...
पीडित के यहां आने मात्र से ही सांप के जहर से पीडित मिल जाता है छुटकारा
लगभग 7 लाख से अधिक भक्तों ने रतनगढ़ वाली माता और कुंवर महाराज के दर्शन किये। भक्त मंगलवार की शाम से ही पहुंचना शुरू हो गये थे। आपको बता दें कि यहां हर वर्ष चैत्र और शारदेय नवरात्रि में भी लाखों भक्त यहां पहुंचते हैं। लख्खी मेला में इस बार 2 दिन में लगभग 30 लाख से अधिक श्रद्धालुओं के पहुंचने का अनुमान है। अपनी मन्नत के लिये श्रद्धालु दूर-दूर से पैदल और पेट पलायन करते हुए (लेट-लेटकर) पहुंच रहे हैं। पहाड़ी पर एक मंदिर रतनगढ़ वाली माता और दूसरा उनके भाई कुंवर जी महाराज का है।
मान्यताओं के अनुसार कुंवर बाबा यानी कुंवर गंगा रामदेव रतनगढ़ वाली माता के भाई हैं। कुंवर बाबा अपनी बहन से बेहद स्नेह करते थे। वे जब जंगल में शिकार करने जाते थे, तब सारे जहरीले जानवर अपना विष बाहर निकाल देते थे, इसलिए जब किसी इंसान को विषैला जीव सर्प आदि काट लेता है, तो उसके घाव पर माता रतनगढ़ के नाम का बंधन लगाते हैं। यानी माता का नाम लेकर तुलसी के गमले की मिट्टी या घर के मंदिर की ही भभूत से सर्प दंश वाले स्थान के ऊपर घेरा बना देते हैं।
माता रानी के दरबार दतिया जिला मुख्यालय से लगभग 65 किमी दूर सिंध नदी के किनारे पहाड़ पर स्थित है। मंदिर के सबसे नजदीक रेलवे स्टेशन डबरा का है। यहां से मंदिर की दूरी 55 किमी हैं। यहां से सड़क के रास्ते पिछोर से होकर मंदिर पहुंचा जा सकता है। दतिया जिले से रतनगढ़ माता मंदिर पहुंचकर मार्ग पर सिंध नदी पर बना पुल टूट चुका है। ऐसे में दतिया जिले के इंदरगंढ़, थरेट होते हुए नदी का रास्ता बंद हैं।
दतिया और झांसी की ओर से आने वाले श्रद्धालु डबरा से पिछोर-गिर्जारा होकर मंदिर तक पहुंचते हैं। ग्वालियर, भिण्ड और यूपी से आने वाले श्रद्धालु बेहट के रास्ते रतनगढ़ मंदिर पहुंचे हैं। सेंवढ़ा व उसके आसपास के श्रद्धालु डिरोली पार अमायन होते हुए मंदिर पर पहुंच रहे हैं। देवगढ़ किले का रास्ताव भी श्रद्धालुओं के लिये चालू है। नदी पर पुलिस विशेष सतर्कता बरत रहीं है। पुल वाले स्थान तक नदी के दोनों तटों पर पुलिस बल तैनात किया गया है। नदी से आवागमन पर रोक लगा दी है।
मुस्लिम शासक अलाउद्दीन खिलजी ने किया था हमला
13वीं शताब्दी में मुस्लिम शासक अलाउद्दीन खिलजी ने मेवाड़ पर आक्रमण के बाद रतनगढ़ पर हमला किया था। अलाउद्दीन खिलजी की नजर यहां की राजकुमारी पर थी। रतनगढ़ के राजा रतनसिंह के 7 राजकुमार और एक पुत्री थी। वह बहुत सुंदर थी। खिलजी और रतन सिंह के बीच घमासान युद्ध हुआ, जिसमें रतन सिंह और उनके 6 पुत्र मारे गए। राजा के 7वें पुत्र कुंवर गंगा रामदेव पर रनिवास की रक्षा का भार था। राजकुमारी मांडुला ने उन्हें तिलक कर व तलवार देकर विदा किया।
उन्होंने कहा कि युद्ध में जीत के बाद आप ध्वज फहरा देना। कुंवर महाराज ने सैकड़ों मुगल सैनिकों को ढेर किया। युद्ध में उनका हाथ कट जाने से वे ध्वज नहीं फहरा सके। शाम होने पर मांडुला को लगा कि कोई अनहोनी हो गई। उन्होंने पहाड़ी पर जीवित समाधि ले ली। युद्ध के बाद जब कुंवर गंगा रामदेव वापस आए तो बहन को नहीं पाकर उन्होंने भी कुछ दूरी पर समाधि ले ली, तभी से यह स्थान अस्तित्व में है। राजकुमारी की यहां माता के रूप में पूजा होती है।
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