अजीब है जिन्दगानी कोई सोच रहा है धन तेरस पर खरीदना है सोना ?
कोई सोच रहा है फुटपाथ पर, आ गई सर्दिया अब कहां है सोना !
गजब तेरी लीला है मालिक !जीव जन्तु चर अचर गोचर अगोचर सब पर तू नजर रखता है! हर कोई अपने अपने प्रारब्ध के हिसाब से उपलब्ध जीवन जीता है !अजीब कशमकश भरी दुनियां है ! दुनियां में कोई जिन्दगी भर लेता मजा है और किसी की पूरी जिन्दगी ही सजा बन है l कोई महलों में भी चैन की नींद नहीं सोता ! कोई फूटपाथ पर भी गहरी नींद में रातें गुजार देता। कोई सुख में रहकर कर भी सुख के लिए रोता है ! कोई दुख में दुखी रहकर भी लोगों के बीच खुश रहता है।
त्योहार में लोगों के बदल जाते हैं ब्यवहार? धर्म कर्म के शागिर्दी में रहने वाले सादगी में भी इन्सानियत को नहीं भूलते ! वहीं मगरुरियत भरी जिन्दगी जीने वाले किसी की खैरियत पूछना भी तौहीन समझते हैं!भारतीय परम्पराओं की चली आ रही ब्यवस्था में आस्था का समर्पण अपनी पहचान को अभी तक पोख्ता बनाए हुए हैं।कभी ईद में खुशहाली तो कभी दशहरा दीवाली समाज के विभिन्न समुदाय में जीवन के नव प्रवाह में अथाह खुशियों का समागम कर जाता है।
मनमाफिक खरीद्दारी कर कोई खुश होताहै तो कोई देश कौम के साथ गद्दारी कर !कोई सड़क पर तडक भडक पसन्द करता है ! कोई दे द राम दिया द राम देने वाले दाता राम का करुणा भरी आस्था की आवाज को बिखेर ज़िन्दगी की जीवन्तता को अक्षुण्ण बनाए रखने की जद्दो जेहाद करता दिखता है।अ सहाय लाचार बेकार फुटपाथ पर हाथ पसारे दानदाताओं के रहमो करम पर जीवन जीता है। गजब है मालिक तेरी ब्यवस्था लोगों के भीतर हर मोड़ पर कायम है तेरी आस्था! कभी अल्लाह के नाम पर दे दो बाबा कभी मौला के नाम पर दे दो बाबा की आवाज लाचारी लिए गूंजती रहती है।
बस कुछ दिन बाद धन तेरस आ रही है।अभी से शुरु हो रही तैयारी है।कोई चांदी तो कोई सोना खरीदने के लिए तैयार है। वहीं अभी से ठंडक की दस्तक देखकर फुटपाथ पर अनाथ खुले आसमान के नीचे रहने वाले इस भयानक जाड़े में कहा रहना है कहां सोना है के ग़म मे डुबे भविष्य की सोच रहे हैं। दोनों की सोच सोना पर ही टिकी है ! बस फर्क नर्क और स्वर्ग का है ? सदियों से समाज में संगदिली का खेल चल रहा है! कृष्ण राजा थे तो उन्ही के साथी सुदामा खाने खाने को मोहताज! आज भी वही परम्परा कायम है।
न अमीर घटे न गरीब घटे! सब अपने अपने कर्मों का खेल झेल रहे हैं। गरीब गरीबी अब नई उम्मिदो के साथ सियासत की हमदर्द बनकर फर्ज की चल रही तेज रफ्तार गाड़ी का मुसाफिर बन चुकी है ! सियासत की गाड़ी के जनरल कोच पर सवार गरीबी ऐसी कोच में सफर कर रही अमीरी के साथ साथ ही चल रही है।दोनों एक ही ट्रेन के मुसाफिर है। दोनों को एक ही इन्जन खींच रहा है।मगर फर्क साफ दिख रहा है। यह सिल सिला न कभी रूका है न रूकेगा। आदमियत इन्सानियत इन्हीं के बीच पनाह पाती है। किसी की ज़िन्दगी तंग होती है किसी की मुस्कुराती है? सबको अपने कर्मों का फल भोगना है।
स्वार्थ के बहते दरिया में समग्र मानव समाज समाहित होकर चाहत की बस्ती में बसेरा बनाकर खुशहाल सबेरा का मुगालता पाल लिया है। परमानन्द में रहकर परमात्मा के परिचालित ब्यवस्था में असहाय लाचार गरीब के साथ आस्था रखने वाले भलाई और सत्कर्म की राह पर चलकर दया करुणा को बांट कर फकीरी की जो मिसाल कायम करते हैं उन्ही के बदौलत यह संसार आज पुष्पित पल्लवित हो रहा है?दुनियां इसी तरह के लोगों के बदौलत चल रही है। आप भी असहाय लाचार की मदद कर पुण्य के भागी बने ?
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