माता तुलसी और भगवान शालिग्राम की पूजा करने से...
वैवाहिक जीवन में सुख-शांति के लिए करें तुलसी विवाह : पूजन विधि
हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है। इस एकादशी को 'देवउठनी एकादशी' या 'प्रबोधिनी एकादशी' भी कहा जाता है। इस बार तुलसी विवाह 5 नवंबर, शनिवार को पड़ रहा है। सनातन धर्म में तुलसी विवाह का विशेष महत्व माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार तुलसी विवाह के दिन माता तुलसी और भगवान शालिग्राम की पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और उनके वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि आती है। साथ ही पति-पत्नी के बीच उत्पन्न होने वाली समस्याएं भी दूर हो जाती हैं।
हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को तुलसी पूजा का आयोजन किया जाता है। इस दिन का महत्व इसलिए भी अधिक है, क्योंकि इससे एक दिन पहले भगवान विष्णु चार महीने की लंबी नींद से जागते हैं और फिर भक्तों की प्रार्थना सुनते हैं। इसी के साथ इस दिन से विवाह, गृह प्रवेश, उपनयन संस्कार के सभी मुहूर्त शुरू हो जाते हैं। इस खास मौके पर भगवान शालिग्राम का तुलसी माता से विवाह करने की परंपरा है। तुलसी विवाह 5 नवंबर दिन शनिवार को मनाया जाएगा। कार्तिक द्वादशी तिथि 5 नवंबर 2022 को शाम 6:08 से प्रारंभ होकर 26 नवंबर 2022 शाम 5:06 तक रहेगी।
इस दिन महिलाएं सुबह उठकर स्नान कर नए वस्त्र धारण करें। पूजन स्थल को साफ-सुथरा कर फूल, अरिपन आदि से अच्छे से सजायें। तुलसी माता का सोलह श्रृंगार कर चुनरी ओढ़ायें। फिर तुलसी के पौधे के नजदीक शालिग्राम भगवान की मूर्ति स्थापित करें। इसके बाद दोनों की शोडषोपचार विधि से पूजा करें। पूजा के बाद भगवान शालिग्राम को हाथों में लेकर तुलसी के चारों ओर परिक्रमा करें। फिर तुलसी को शालिग्राम की बाईं और रखकर उन दोनों की आरती उतारें और विवाह संपन्न होने की घोषणा करें।
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