लोग मंदिर में अपनी मनोकामना मांगने आते हैं और ...
मंदिर में प्रसाद की जगह चढ़ते है घोड़े की मूर्ति का चढ़ावा
छत्तीसगढ़ l अब तक आपने देवी-देवताओं पर और मंदिरों में नारियल, अगरबत्ती, फुल और प्रसाद करते देखा होगा. छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में एक ऐसी मान्यता है जिसमें लोग भगवान पर घोड़े की मूर्ति प्रसाद के तौर पर चढ़ाते हैं. यह कहानी है छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के डेंगरापार गांव की. इस गांव वालों की आस्था गांव मे स्थित हरदेव लाल बाबा का मंदिर से है. मंदिर भले ही डेंगरापार गांव में हो लेकिन इसकी मान्यता बस्तर से लेकर सरगुजा तक है l
ऐसा माना जाता है कि जो भी भक्त अपनी समस्या को लेकर हरदेव लाल बाबा के दरबार पर पहुंचता है और सच्चे दिल से अपनी मनोकामना उनके दरबार में रखता है उनकी मनोकामना 1 साल के भीतर पूरी हो जाती है. इसके बाद भक्त घोड़े की मूर्ति लेकर उस मंदिर में साल में एक बार चढ़ाते है.डेंगरापार गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि आज से लगभग 500 साल पहले मोखली गांव में एक अनोखा बालक जन्म लिया था. उसका नाम करन पांडे था. बच्चा बड़ा होने के साथ ही चंचल भी होता जा रहा था और उस बच्चे में अद्भुत शक्तियां आती जा रही थी. वो चंचल था जिसको गांव की देवी शक्ति स्वीकार नहीं कर रही थी, इसलिए ग्रामीणों ने उन्हें सजा देने की ठानी और पैरावट में ले गए. इस बात की जानकारी लगते ही राजनांदगांव के राजा उसे अपने साथ ले गए l
राजा कुछ दिन करन पांडे को अपने साथ रखा जिसके बाद उनकी मां ने उन्हें वापस बुला लिया. उसी समय बस्तर के देव हरदेव लाल भक्त तलाश करते हुए डेंगरापार गांव पहुंचे थे. वहां करन पांडे से हरदेव लाल बाबा की मुलाकात हुई. हरदेव लाल बाबा करण पांडे की परीक्षा लेने की बात कहते हुए लोहे का सामान उसे खाने के लिए दिया. करन पांडे ने उसे आसानी से खा लिया और तब से करण पांडे को हरदेव लाल बाबा ने अपना भक्त बना लिया.हरदेव लाल बाबा अपने भक्त करण पांडे को हर साल दशहरा के बाद पहले मंगलवार को मेला करवाने की बात कही. उस मेले में जो भी अपनी मनोकामना लेकर पहुंचेंगे उन सारी मनोकामनाओं की पूर्ति हरदेव लाल बाबा करेंगे. उसके एवज में भक्त हरदेव लाल बाबा की सवारी घोड़े की मूर्ति वहां पर चढ़ाएंगे. तब से धीरे-धीरे हरदेव लाल बाबा की मान्यता बढ़ती गई और भक्त भी बढ़ते गए. उसी दिन से डेंगरापार गांव में हरदेव लाल बाबा हर साल दशहरा के बाद पहले मंगलवार को देव दशहरा के रूप में मेले का आयोजन किया जाता है. यहां पूरे प्रदेश भर के सैकड़ों भक्त अपनी मनोकामना लेकर पहुंचते हैं और मनोकामना पूरी होने पर उसी दिन घोड़े की मूर्ति वहां पर ले जाकर छोड़ते हैं l
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