तुमने ही तो विष पान करके हरा संसार का क्लेश
सावन शिवरात्रि पर बरस रहा मेह...
झर झर बूंदे गिरती अंबर से,
करती शिव शंभू का रुद्राभिषेक।
हलाहल की तपिश दूर हो जाती,
सावन शिवरात्रि पर बरस रहा मेह।।
हो आदि अनंत अगोचर रूप
हे जटा धारी, त्रिपुरारी, महेश
तुमने ही तो विष पान करके ही
संसार का हरा था सारा क्लेश ।।
चंदन धूप दीप भांग है चढ़ती
करते हो जब तुम भस्म शृंगार
भक्त निहारते रहते शंभू तुमको
कर दो महादेव सबका बेड़ा पार।।
ॐ नमः शिवाय का जाप करें,
भक्त निश दिन अभिषेक करें
भक्ति भाव के कारण हे शिवजी,
सभी के ह्रदय बसे भोलेनाथ बसें।।
हे महादेव सहाय रहिए हमेशा ,
प्रभु हम आए शरण तुम्हारी हैं।
करके जल से शिव अभिषेक
सावन शिवरात्रि हमें माननी है ।।
प्रतिभा दुबे
स्वतंत्र लेखिका
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