आखिर कब तक पुलिस को बनना पड़ेगा "बलि का बकरा" !

अपने कर्तव्य का पूरी ईमानदारी एवं निष्ठा के साथ निर्वहन करने वाली पुलिस...

आखिर कब तक पुलिस को बनना पड़ेगा "बलि का बकरा" !

 

आखिर कब तक पुलिस को बलि का बकरा बनना पड़ेगा ? अक्सर हम लोगों ने देखा है कि कैसे आंदोलनों के समय या प्रदर्शनों या कोई भी अन्य ड्यूटी के समय पुलिस अपने कर्तव्य का पूरी ईमानदारी एवं निष्ठा के साथ निर्वहन करती है। लेकिन आम जनता पुलिस को ही अपना टारगेट बनाती है। कई बार पुलिस ऐसे आंदोलनों में घायल भी हुई है एवं कई बार अपनी जान भी गंवानी पड़ी है। लेकिन फिर भी पुलिस की कोई नहीं सुनता पुलिस का कोई माई बाप नहीं होता। कल जो घटना हमारे शहर ग्वालियर में घटित हुई है, हमारे युवा भाई सब इंस्पेक्टर दीपक गौतम को पब्लिक के कुछ लोगों ने अपना शिकार बनाया और जलता हुआ पुतला उनके ऊपर फेंक दिया। जिसमें वह 45% जल गए उनकी जान भी जा सकती थी।

यह समाज की कैसी विडंबना है कि जो हमारी पुलिस 24 घंटे 365 दिन समाज,  देश की रक्षा के लिए खड़ी रहती है। हर हाल में धूप में गर्मी में सर्दी में कोरोना वायरस जैसी महामारी में भी अपने परिवार और अपने शरीर की चिंता किए बगैर हमारी समाज की सुरक्षा में मुस्तैदी से तैनात रहती है। फिर भी सोचकर बड़ा दुख होता है कि समाज के पढ़े-लिखे लोगों के द्वारा भी पुलिस के साथ ऐसा अमानवीय व्यवहार किया जाता है। और पुलिस को सीधा टारगेट किया जाता है अपने गुस्से को पुलिस के ऊपर निकाला जाता है। पुलिस को ही बलि का बकरा बनाया जाता है। यह कब तक चलेगा आखिर? इस ओर भी तो ध्यान देने की आवश्यकता है हम भी तो इंसान हैं हमें भी दर्द होता है हमारी कौन सुनेगा हमारा कौन माई बाप है। हमारी हिफाजत हमारे अधिकारों के लिए कौन लड़ेगा ? मैं यह नहीं कह रही हूं कि ऐसा किसी के भी साथ हो लेकिन फिर भी अगर यह घटना कल जिसमें हमारा भाई दीपक गौतम घायल हुआ है। उसकी जगह अगर कोई एक आम पब्लिक का व्यक्ति की एक उंगली भी जल जाती तो वह आज थाना जला देते।

पूरे ग्वालियर सिटी को जला देते सड़कों पर आंदोलन गुस्सा रोष पैदा हो जाता। पुलिस हाय-हाय के नारे लग रहे होते , लेकिन जब एक पुलिसकर्मी के साथ ऐसी घटना घटित हो जाती है तो कोई उफ़ नहीं करता। यह सोचकर बड़ा दुख होता है हम पुलिस वाले भी तो आप ही के भाई बहन है हम आपके दुश्मन नहीं है और ही कोई अपराधी है हम तो बस अपनी ड्यूटी कर रहे होते है। और आप लोग हमें ही (बर्दी) को ही अपना दुश्मन मान बैठते हैं। बस मैं सभी से यही निवेदन करना चाहती हूं कि प्लीज इतना जरूर समझे कि पुलिस वाले भी इंसान होते हैं। उनको भी दर्द होता है उनका भी परिवार होता है उनको भी इंसानों की ही दृष्टि से देखें। अनावश्यक का क्रोध का शिकार उनको ना बनाएं , बलि का बकरा ना बनाएं।

- दिव्या यादव

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