अहमदाबाद बम धमाकों में 56 लोगों की मौत हो गई थी…
धमाकों की सजा : अपील जारी है
अहमदाबाद बम धमाकों के आरोपियों को जिला अदालत ने आखिर सजा सुना ही दी। अदालत के फैसले से बम धमाकों में मारे गए और घायल हुए लोगों के परिजनों को सुकून जरूर मिला होगा ,लेकिन अदालत का ये फैसला न अंतिम है और न आरोपियों के लिए विश्वसनीय। इस मामले में अभी अपीलों और दलीलों के रास्ते खुले हुए हैं ,इसलिए इसे अंतिम फैसला नहीं माना जा सकता। इन धमाकों में 56 लोगों की मौत हो गई थी और 200 से अधिक लोग घायल हो गए थे। आपको याद होगा कि ये धमाके हिंसा की प्रतिहिंसा के चलते हुए थे। इंडियन मुजाहिद्दीन ने दावा किया था कि वह यह धमाके 2002 में गोधरा कांड का बदला लेने के लिये कर रहे थे। उस समय मणिनगर तात्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का विधानसभा क्षेत्र था।
पुलिस ने मणिनगर से दो जिंदा बम बरामद किये गये थे तो वहीं मणिनगर में कुल तीन जगहों पर धमाके हुये थे। कुल 70 मिनिट के भीतर हुए इन धमाकों से पूरा अहमदाबाद दहल गया था। इन धमाकों की धमक आज भी महसूस की जाती है। अहमदाबाद जिला अदालत की तारीफ़ करना होगी कि उसने इस जघन्य मामले का फैसला सुनाने के लिए जी तोड़ मेहनत की। अदालत ने सात हजार से अधिक पन्नों के फैसले में मामले को दुर्लभ से दुर्लभतम बताया और 38 दोषियों को फांसी, जबकि 11 अन्य को मौत होने तक उम्रकैद की सजा सुनायी।
अदालत ने 48 दोषियों में से हर एक पर 2.85 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया और एक अन्य पर 2.88 लाख रुपये का जुर्माना लगाया। न्यायाधीश ए आर पटेल ने धमाकों में मारे गए लोगों को एक-एक लाख रुपये और गंभीर रूप से घायलों में से प्रत्येक को 50-50 हजार रुपये और मामूली रूप से घायलों को 25-25 हजार रुपये का मुआवजा देने का भी आदेश दिया। हमें अदालत के फैसले का स्वागत करना चाहिए और फैसले को भरोसे का फैसला मानना चाहिए किन्तु दुर्भाग्य ये है कि जिस देश में लोगों का भरोसा सरकारों पर नहीं होता,वहां अदालतों के फैसलों पर भी आसानी से भरोसा नहीं किया जाता। व्यवस्था का लाभ लेते हुए पक्षकार नीचे की अदालतों के फैसलों के खिलाफ ऊपर की अदालतों में अपीलें करते हैं,दलीलें देते हैं और अंतिम फैसले के आने तक फैसला बदलने की आस नहीं छोड़ते।
ऊपर की अदालतें इन फैसलों की समीक्षा करतीं हैं और जरूरत पड़ने पर उन्हें बदलती भी हैं। अहमदाबाद काण्ड के फैसले को लेकर भी यही सब होने वाला है क्योंकि आरोपियों को ये फैसला मजूर नहीं है। जमीअत उलेमा-ए-हिंद अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनीइस फैसले को चुनौती देने कीतैयारी कर रहे हैं। मदनी ने कहा कि विशेष अदालत का फैसला अविश्वसनीय है, हम सज़ा के ख़िलाफ़ हाई कोर्ट जाएंगे और क़ानूनी लडाई जारी रखेंगे। मौलाना मदनी ने कहा कि देश के नामी वकील, दोषियों को फांसी से बचाने के लिए मज़बूती से क़ानूनी लडाई लड़ेंगे।
हमें यक़ीन है कि इन लोगों को हाईकोर्ट से पूरा न्याय मिलेगा, पहले भी कई मामलों में निचली अदालतों से सज़ा पाए दोषी हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट से बरी हो चुके हैं। मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि इसका एक बड़ा उदाहरण अक्षरधाम मंदिर हमले का मामला है, जिसमें निचली अदालत ने मुफ्ती अब्दुल कय्यूम सहित 3 को फांसी की सज़ा सुनाई थी और 4 को उम्र क़ैद की सज़ा दी गई थी। मौलाना के इस भरोसे की वजह भी है ,क्योकि वे जिस मामले का जिक्र कर रहे हैं उस मामले में गुजरात हाई कोर्ट ने भी निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा था। लेकिन जब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो कोर्ट ने न सिर्फ़ सभी लोगों को बाइज्जत बरी किया, बल्कि कोर्ट ने निर्दोष लोगों को झूठे तरीके से बम ब्लास्ट में फंसाने की साज़िश करने पर गुजरात पुलिस को भी फटकार लगाई थी।
मौलाना अरशद मदनी का कहना है कि, हमें उम्मीद है कि इस मामले में भी आरोपियों को राहत मिलेगी। उन्होंने कहा कि अगर ज़रूरत पडी तो हम इस मामले में भी सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। भारतीय न्याय व्यवस्था में न्याय आसानी से नहीं मिलता। एक लम्बी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। इसकी वजह से जब तक अंतिम फैसला आता है उसका सुख पीड़ित पक्षकारों को मिल ही नहीं पाता अहमदाबाद विस्फोट काण्ड के मामले में ही नीचे कि अदालत को फैसला सुनाने में 14 साल लग गए। इतने लम्बे कालखंड में त्रेता के अवतार राम जी वनवास काटने के साथ ही लंका विजय कर वापस भी आ गए थे।
अब ऊपर की अदालतें इस फैसले पर अंतिम निर्णय सुनाने में कितना वक्त लेंगीं ,कोई नहीं जानता। मेरी याददास्त में इतने ज्यादा लोगों को एक साथ कभी फांसी की सजा नहीं सुनाई गयी। इन 38 दोषियों कोभादंसं की धारा 302, यूएपीए के तहत फांसी दी गई। अदालत ने कहा है कि ये 11 दोषी जब तक जीवित हैं, जेल में ही रहेंगे। जरूरत इस बात की है कि अब देश की न्याय प्रणाली को समय की जरूरत के हिसाब से गतिशील बनाया जाये ताकि कोई भी मामला फैसले के लिए राम वनवास की तरह चौदह वर्ष तक न लटका रहे। लोगों को त्वरित न्याय मिलना चाहिए। देर से न्याय का मिलना भी न्याय के न मिलने जैसा ही होता है।
इस मामले में बम धमाकों के दोषियों को तो सजा मिल गयी लेकिन तत्कालीन सरकार पर लापरवाही की कोई जिम्मेदारी आयद नहीं की गयी ,क्योंकि ये बम धमाके राज्य सरकार की एजेंसियों की नाकामी को भी परिलक्षित करते हैं। राज्य सरकार न गोधरा कांड को रोक पाई और न अहमदाबाद काण्ड को। आपको ध्यान होगा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेयी ने उस समय एक बेहद संजीदा प्रतिक्रिया में कहा था कि सरकार को राजधर्म निभाने में कोताही नहीं करना चाहिए थी। विडंबना ये है कि देश में इन दिनों राजधर्म पर केवल धर्म का राज स्थापित करने का भूत सवार है। ये भूत जब तक नहीं उतरता तब तक ये देश संविधान के रहते हुए भी संविधान के तहत नहीं चल पायेगा।
- राकेश अचल
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