वैक्सीन की हिचकिचाहट को लेकर चिंता छोड़ दें…
भारत में हारती राजनीति, जीतता विज्ञान
देश में कोरोना रोधी टीके [वेक्सिन ] के मामले में विज्ञान जीतता और राजनीति हारती दिख रही है। वेक्सिन लगने की दर इस बात का संकेत देती है। भारत में ज्यादातर लोग विज्ञान की उन सुविधाओं में ही अपना भविष्य खोजते हैं, यह अलग बात है कि ज्यादातर लोगों को यह उपहार नसीब नहीं हो सका हैं। भारत को वैक्सीन की हिचकिचाहट को लेकर चिंता छोड़ देनी चाहिए। यहां यह बड़ी समस्या नहीं है, भले ही बड़ा राजनीतिक मुद्दा हो।पश्चिम में तो एक समुदाय मूल रूप से विज्ञान का विरोधी है। वह अपने तर्कों को लेकर काफी मुखर और उग्र भी है। महामारी और उसकी विभीषिका भी इस प्रवृत्ति को खत्म नहीं कर सकी है। जर्मनी में एक गवर्नर माइकल क्रेटशेमर की हत्या का षड्यंत्र उजागर हुआ। कुछ लोगों ने उनकी हत्या की योजना सिर्फ इसलिए बनाई थी, क्योंकि वे वैक्सीन के प्रबल समर्थक हैं और अपनी बात को जोर से कह रहे हैं।
दूसरी तरफ, इटली में इम्यूनोलॉजी की एक प्रसिद्ध विशेषज्ञ एंटोनेला वायोला पर कुछ लोगों ने गोली चलाई। उन्हें लगातार धमकी भरे खत भी मिल रहे हैं। वह अपना जीवन भारी सुरक्षा के बीच गुजार रही हैं। नीदरलैंड में एक राजनेता के घर वैक्सीन विरोधियों ने जलती मशालें लेकर हमला बोल दिया । ब्रिटेन में वैक्सीन विरोधियों ने पुलिस, स्कूलों और वैक्सीन केंद्रों पर हमले की योजना बनाई थी । पश्चिम में वैक्सीन को लेकर एक नए तरह का अतिवाद या आतंकवाद शुरू हो गया है। जिसका यह मानना है कि वैक्सीन खोजने वालों, बनाने वालों और लगाने वालों का पूरी दुनिया में इसलिए अभिनंदन होगा कि उन्होंने दुष्काल से मुक्ति का रास्ता खोजा है। वैसे भी पश्चिम के जिन देशों में यह मामला इतना उग्र नहीं हुआ, वहां भी हालात बहुत अच्छे नहीं हैं। जगह-जगह प्रदर्शन और धरने हर रोज की बात हो गई है। महामारी और वैक्सीन को लेकर तरह-तरह की ऐसी कहानियां गढ़ी जा रही हैं, जो कहती हैं कि जो कुछ भी हो रहा है, वह एक गहरा षड्यंत्र है।
इस भीड़ में वे लोग भी शामिल हो गए हैं, जो यह मानते हैं कि कोविड और दुष्काल जैसा कुछ है ही नहीं, यह तो बस किसी खास मकसद से लोगों को भरमाने की चाल है और वे सब इस जिद पर अड़े हैं कि वैक्सीन की अनिवार्यता खत्म की जाए और इसे ऐच्छिक बनाया जाए। इसके विपरीत विशेषज्ञ यह मान रहे हैं कि अगर कुछ लोगों को सुरक्षा से छूट दे दी गई, तो पूरे सुरक्षा-चक्र में सेंध लगने का खतरा हमेशा बना रहेगा। अपने देश भारत में ऐसा कोई खतरा नहीं है। भारत में प्रत्यक्ष तौर पर वैक्सीन विरोधी या तो नहीं हैं, या नगण्य हैं। कुछ लोगों के मन में शंकाएं जरूर हैं, लेकिन ऐसे लोग बाकी दुनिया की तरह न तो संगठित हैं और न ही आक्रामक। यही वजह है कि भारत ने टीकाकरण के कई ऐसे रिकॉर्ड बना लिए हैं, जिनका मुकाबला दुनिया का कोई देश नहीं कर सकता। भारत के टीकाकरण अभियान में कम से कम अभी तक वैक्सीन की यह हिचकिचाहट आड़े नहीं आ रही है। भारत की चुनौती अब भी बड़े पैमाने पर उन लोगों का टीकाकरण है, जो इसके लिए तैयार हैं।
एक बार जब यह काम पूरा हो जाएगा, तभी उससे हिचकिचाने वालों के बारे में सोचने का मौका मिल सकेगा। इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ, जैसा आज पश्चिम में हो रहा है, भारत में शायद बिलकुल नहीं । ज्यादा से ज्यादा एक घटना को याद किया जा सकता है, जब देश में पहली बार चेचक का टीकाकरण ब्रिटिश सरकार ने शुरू करवाया था। उस समय इसका कई जगह विरोध हुआ था। मद्रास प्रेसीडेंसी में टीकाकरण के लिए एक सुपरिटेंडेंट बनाए गए थे स्वामी नाइक, उन पर एक बार जानलेवा हमला भी हुआ था। शायद यह हमारे इतिहास की अकेली ऐसी घटना है। पल्स पोलियो अभियान में भी कुछ लोगों ने भ्रम पैदा करने की कोशिश की थी, लेकिन देश ने आसानी से निपट लिया। कोविड दुष्काल में भी कुछ लोगों ने तरह-तरह के इलाज की बात करके प्रसिद्धि हासिल करने की कोशिश की थी, लेकिन समय के साथ वे लोगों की स्मृति से बाहर हो गए। समय ने जनमानस को समझा दिया है कि दुष्काल से मुक्ति का रास्ता विज्ञान से ही निकल सकता है।
- राकेश दुबे
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