प्रदेश में अब universities के कुलपति कहलायेंगे कुलगुरु

उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव ने जानकारी दी कि…

प्रदेश में अब विश्वविद्यालयों के कुलपति कहलायेंगे कुलगुरु

म.प्र में अब विश्वविद्यालय के कुलपति को कुलगुरु कहा जाएगा | शिक्षक दिवस के अवसर पर तदाशय की घोषणा करते हुए राज्य के उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव ने जानकारी दी कि इस बारे में प्रस्ताव तैयार कर लिया गया है | मंत्री महोदय के अनुसार कुलपति की बजाय कुलगुरु संबोधन लोगों के ज्यादा गले उतरता है | पहले जब इस पद को उपकुलपति कहा जाता था तब राज्यपाल कुलपति कहलाते थे | कालान्तर में उपकुलपति को कुलपति और राज्यपाल को कुलाधिपति कहा जाने लगा | लेकिन रोचक बात ये है कि अंग्रेजी में इन पदों के लिए पुराना संबोधन ही जारी रहा और राज्यपाल चांसलर तथा कुलपति वाइस चांसलर ही कहलाते रहे | उच्च शिक्षा मंत्री ने कुलपति को कुलगुरु कहे जाने संबंधी प्रस्ताव तैयार किये जाने की बात तो कही किन्तु ये नहीं बताया कि राज्यपाल को कुलाधिपति ही कहा जाता रहेगा अथवा उनका पदनाम भी परिवर्तित होगा ? 

इसी के साथ ये सवाल भी स्वाभाविक तौर पर उठेगा कि क्या अंग्रेजी में प्रयुक्त होने वाले चांसलर और वाइस चांसलर रूपी सम्बोधन भी बदले जावेंगे या फिर उनको आगे भी ढोया जाता रहेगा ? इस बारे में लोगों के मन – मस्तिष्क में ये बात भी आयेगी कि इस बदलाव का कारण और आवश्यकता क्या है ? उपकुलपति को कुलपति और कुलपति को कुलाधिपति कहे जाने संबंधी बदलाव कब और क्यों हुए ये भी स्पष्ट नहीं था और अंग्रेजी में पुराने संबोधन ही क्यों जारी रखे गये ये बताने वाला भी कोई नहीं है | श्री यादव ने भी ये साफ़ नहीं किया कि अचानक ये बदलाव करने का दिव्य ज्ञान उनको कहाँ से प्राप्त हो गया ? 

उच्च शिक्षा मंत्री यदि विश्वविद्यालयों में गिरते शैक्षणिक स्तर और आर्थिक संकट के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए उन्हें इससे उबारने की कार्ययोजना प्रस्त्तुत करते तो वह स्वागतयोग्य होती | ये बात सर्वविदित है कि प्रदेश के लगभग सभी शासकीय विश्वविद्यालयों की आर्थिक स्थिति बेहद खराब है | प्राध्यापकों के पद रिक्त पड़े हैं और अतिथि शिक्षकों के भरोसे किसी तरह शिक्षण कार्य सम्पन्न चलाया जाता है | आर्थिक संसाधनों के अभाव में रिक्त पदों पर नियुक्तियां करने से बचा जा रहा है | शोध कर रहे छात्र भी इस वजह से परेशान हैं | विज्ञान के विद्यार्थियों को प्रयोग करने हेतु समुचित उपकरण और सामग्री उपलब्ध नहीं हो रही | 

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग तथा अन्य संस्थानों से गोष्ठियों और सेमिनार के लिए आने वाले धन का फर्जीबाड़ा भी आम है | अनेक विश्वविद्यालय ठेके पर डाक्टरेट करवाने के लिए कुख्यात हो चले हैं | शोध कर्ता छात्र – छात्राओं के आर्थिक दोहन के अलावा उनके साथ अशोभनीय हरकतों की खबरें भी अक्सर आया करती हैं | निजी विश्वविद्यालय खुल जाने के बाद से तो शासकीय विश्वविद्यालयों के सामने अस्तित्व का संकट मंडराने लगा है | इसकी मुख्य वजह उनमें शिक्षकों का अभाव है | अनेक विभागों में तो बरसों से नियमित प्राध्यापक न होने से अतिथि प्राध्यापक ही शिक्षण करवा रहे हैं | 

रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय , जबलपुर में प्राध्यापकों के खाली पदों की संख्या सौ के ऊपर बताई जाती है | एक ही प्रोफेसर अनेक विभागों का विभागाध्यक्ष बना बैठा है | इन सब वजहों से कुलपति का पद दयनीय बनकर रह गया है | उसका सारा समय शैक्षणिक स्तर सुधारने और उच्च स्तरीय शोध हेतु आर्थिक प्रबन्धन की बजाय प्रशासनिक गुत्थियों को सुलझाने में निकल जाता है | बीते एक – दो दशक से ये चर्चा भी चला करती है कि कुलपति पद के लिए भी बोली लगती है | अनेक राज्यपाल तो इस बारे में बुरी तरह बदनाम तक हुए | इसी तरह कुलसचिव ( रजिस्ट्रार ) की नियुक्ति भी मलाईदार थाने की तर्ज पर होने लगी है | इसका परिणाम कुलपति के साथ उनके टकराव के रूप में सामने आता है | 

कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि कम से कम म.प्र के सरकारी विश्वविद्यालय इक्का – दुक्का अपवाद छोड़कर दुर्दशा का शिकार हो चुके हैं | कुलपति के चयन में योग्यता की बजाय राजनीतिक प्रतिबद्धता , पहुँच और पैसे की भूमिका महत्वपूर्ण होती जा रही है | बेहतर होता उच्च शिक्षा मंत्री जी बजाय कुलपति का पदनाम बदलने का प्रस्ताव बनाने के प्रदेश के शासकीय विश्वविद्यालयों की दुरावस्था पर ध्यान देते हुए उनका उन्नयन करने का कोई प्रभावी प्रस्ताव तैयार करवाते | म.प्र मोदी सरकार द्वारा बनाई गयी नई शिक्षा नीति लागू करने वाला पहला प्रदेश तो बन गया है लेकिन जहां तक विश्वविद्यालयीन शिक्षा के स्तर का प्रश्न है तो राज्य सरकार के लिए सोचने वाली बात ये है कि म. प्र के युवा उच्च अध्ययन के लिए दूसरे राज्यों में क्यों जाते हैं ? 

उसकी तुलना में प्रदेश के शासकीय विश्वविद्यालयों में दूसरे राज्यों के छात्रों के प्रवेश लेने का अनुपात कम ही है | उच्च शिक्षा मंत्री ने कुलपति को कुलगुरु कहे जाने संबंधी प्रस्ताव बनाने के संकेत तो दे दिए किन्तु ये नहीं बताया कि इस पद का सम्मान बढ़ाने के लिए विश्वविद्यालयों को प्रतिस्पर्धा का मुकाबला करने में सक्षम किस तरह बनाया जाएगा | बीच में एक दौर ऐसा भी आया था जब प्रशासनिक और पुलिस सेवा से निवृत अधिकारियों के अलावा पूर्व न्यायाधीश तक कुलपति बनाये जाने लगे थे | स्व. इंदिरा गांधी के दौर में तो जबलपुर में एक पूर्व फौजी जनरल को कुलपति बना दिया गया किन्तु कहा जाता है उन्हें यहाँ का बंगला पसंद नहीं आया क्योंकि उसमें उनके कुत्तों के रहने के लिए समुचित व्यवस्था नहीं थी इसलिए वे नहीं आये | 

हालांकि अब कुलपति के पद पर प्राध्यापक रहा व्यक्ति ही नियुक्त हो सकता है किन्तु उसके चयन की प्रक्रिया पर भी उंगलियाँ उठती रहती हैं | इन हालातों के मद्देनजर राज्य सरकार से अपेक्षा है कि वह कुलपति का नाम बदलकर चाहे जो कर दे लेकिन उसके पहले अपने विश्वविद्यालयों को डूबने से बचा ले | पदनाम बदलने से यदि ये संस्थान सुधरते होते तो उपकुलपति को कुलपति नाम देने के बाद से ही म.प्र के विश्वविद्यालय अपने नाम को सार्थक करते हुए विश्व स्तर पर प्रतिष्ठित हो जाते | शायद इसीलिये विलियम शेक्सपियर ने कहा था कि नाम में क्या रखा है ?

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