जानकर आश्चर्य चकित रह जायेंगे…
दिमाग़ को हिला देने वाला सच !
भारत को चलाने के लिए लोकतंत्रीय व्यवस्था को लागू किया गया। इस व्यवस्था में जिलों, राज्यों के प्रतिनिधि चुन करके आते हैं और वे इस लोकतंत्रीय व्यवस्था संभालते हैं। इस व्यवस्था में लगभग में 4120 MLA और 462 MLC हैं अर्थात कुल 4,582 विधायक हैं। प्रति विधायक पर वेतन भत्ता मिला कर लगभग प्रति माह 2 लाख का खर्च होता है। यानि कि 91 करोड़ 64 लाख रुपया प्रति माह। इस हिसाब से प्रति वर्ष लगभ 1100 करोड़ रूपये। इसी प्रकार भारत में लोकसभा और राज्यसभा को मिलाकर कुल 776 सांसद हैं। इन सांसदों को वेतन भत्ता व अन्य खर्चे कुल मिला कर लगभग प्रति माह 5 लाख दिया जाता है। इस प्रकार सांसदों का वेतन प्रति माह 38 करोड़ 80 लाख है। और हर वर्ष इन सांसदों को 465 करोड़ 60 लाख रुपया वेतन भत्ता में दिया जाता है। अर्थात भारत के विधायकों और सांसदों के पीछे भारत का प्रति वर्ष 15 अरब 65 करोड़ 60 लाख रूपये खर्च होता है। ये तो सिर्फ इनके मूल वेतन भत्ते की बात हुई।
इसके अलावा आवास, रहने, खाने, यात्रा भत्ता, इलाज, विदेशी सैर सपाटा आदि का का खर्च भी लगभग इतना ही मानकर चलें तो यह खर्च बैठेगा लगभग 30 अरब रूपये। इन विधायकों और सांसदों पर। अब इनकी सुरक्षा में तैनात सुरक्षाकर्मियों की संख्या और बात करें तो, एक विधायक को दो बॉडीगार्ड और एक सेक्शन हाउस गार्ड यानि कम से कम 5 या 7 पुलिसकर्म की सुरक्षा मिलती है। इन 7 पुलिस का वेतन लगभग (25,000 रूपये प्रति माह की दर से) 1 लाख 75 हजार रूपये होता है। इस हिसाब से 4582 विधायकों की सुरक्षा का सालाना खर्च 9 अरब 62 करोड़ 22 लाख प्रति वर्ष है। इसी प्रकार सांसदों के सुरक्षा पर प्रति वर्ष 164 करोड़ रूपये खर्च होते हैं।
Z श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त नेता, मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए लगभग 16000 जवान अलग से तैनात हैं। इन पर सालाना कुल खर्च लगभग 776 करोड़ रुपया बैठता है। अर्थात हर वर्ष नेताओं पर मोटे अनुमान के अनुसार लगभग 50 अरब रूपये खर्च होते हैं। इनके साथ इसमें शहरों में नगर परिषद नगर पालिका के पार्षद सदस्य सभापति उपसभापति मेयर ग्रामीण क्षेत्रों में पंच सरपंच जिला पंचायत सदस्य अध्यक्ष आदि के वेतन भत्ते और सुविधाओं के खर्चों की सीमा इसमें जोड़ दी जाती है तो कहीं और अधिक बढ़ जाएगी। इसके अलावा इन खर्चों में राज्यपाल, भूतपूर्व नेताओं के पेंशन, पार्टी के नेता, पार्टी अध्यक्ष , उनकी सुरक्षा आदि का खर्च शामिल नहीं है। यदी जोड़ दिया जाए तो लगभग कुल खर्च 100 अरब से भी ऊपर निकल जायेगा। अब सोचिये हम प्रति वर्ष नेताओं पर 100 अरब रूपये से भी अधिक खर्च करते हैं, बदले में आम लोगों को क्या मिलता है ?
(यह 100 अरब रुपया हम भारत वासियों से ही टैक्स के रूप में वसूला जाता है। सरकारें यह रुपया कोई अपनी जेब से नहीं खर्च कर रहे होती हैं। ) एक सर्जिकल स्ट्राइक यहाँ भी बनती है!
भारत में दो कानून अवश्य बनना चाहिए-
- पहला - चुनाव प्रचार पर प्रतिबंध।
- नेता केवल मीडिया के माध्यम से प्रचार करें।
- दूसरा - नेताओं के वेतन भत्तो के अलावा अन्य मुफ्त मिलने वाली सुविधाओं पर प्रतिबंध।
- क्योंकि जब नेता चुनावों के दौरान चुनावों में जीतने के लिए वोटर से वोट मांगता है। मतदान की अपील करता है तो जनता यह मतदान नि:शुल्क और निस्वार्थ भाव से करती है।
जनता जब यह सब नि:शुल्क रूप से अपने कर्तव्य समझकर करती है। तो फिर सांसद विधायकों को जनता के चुकाए गए टैक्स से फ्री सुख सुविधाएं क्यों दी जानी चाहिए है ? हां उनको घर खर्च चलाने और अपने वह अपने परिजनों के पालन पोषण के लिए जिस प्रकार एक कर्मचारी को भत्ता मिलता है उस प्रकार वेतन भत्ता दिया जा सकता है। हां अगर उन्हें अन्य अतरिक्त सुख सुविधाएं चाहिए तो वे स्वयं के खर्च पर इन सुविधाओं का लाभ उठा सकते हैं। जिस प्रकार की एक सामान्य कर्मचारी करता है।और फिर ये तो स्वयं जनसेवक समाज सेवक कहलवालाते हैं और जैसा कि सभी जानते हैं कि सेवा कभी समय सवैतनिक नहीं की जाती वह तो हमेशा अवैतनिक होती है। हां उसका मानदेय या पारितोषिक अवश्य लिया जा सकता है।इस प्रकार की अन्य सरकारी कर्मचारी अधिकारी सिर्फ और सिर्फ अपने वेतन भत्ते के साथ अपनी वह अपने परिजनों की सभी जरूरतों को पूरा करते हैं। आईएएस और आईपीएस भी तो अपने उसी वेतन और भत्ते के सहारे पूरे जिले के लॉ एंड ऑर्डर को मेंटेन करते ही हैं। तो फिर राजनेताओं को अलग से फ्री की सुख सुविधाएं क्यों ?
जब राजनीति समाज सेवा है तो समाज सेवा में कैसी पेंशन । पेंशन की सुविधा क्यों ? क्योंकि पेंशन तो सिर्फ सरकारी नौकरी में ही मिलती है। वह भी लगभग 40 या 42 साल की नौकरी करने के बाद और राजनेता को केवल 5 साल की सांसदी या विधायकी मिलने के बाद आजीवन पेंशन की सुविधा ! ऐसा क्यों ? अगर राजनीति को व्यवसाय भी मान लिया जाए तब भी कम से कम 40 या 42 साल तक विधानसभा, लोकसभा या राज्यसभा में लगातार क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने पर ही पेंशन की सुविधा दी जाना चाहिए। जिस पद पर वर्तमान में जिस हाउस का प्रतिनिधित्व करते हुए 60 या 62 साल की उम्र पूरी की जाती है केवल उसी पद की पेंशन दी जानी चाहिए ?
कहने का तात्पर्य यह है कि अगर राजनेता राजनीति को समाज सेवा और जनसेवा मानते हैं यह बात है उन्हें अपने आचरण में लाना चाहिए। और अगर ऐसा नहीं कर सकते तो राजनीति को तो राजनीति को एक व्यवसाय के रूप में देखा जाना चाहिए। उसे समाज सेवा का नाम देकर समाज सेवा को बदनाम नहीं करना चाहिए। क्योंकि सेवा कुछ पाने की चाहत में नहीं की जाती है वह तो निस्वार्थ भाव से की जाती है तभी समाज सेवा कहलाती है। ये बातें वोटर्स को भी समझ में आनी चाहिए। कि हमारे द्वारा सरकार को दिए जा रहे टैक्सेस का सही उपयोग सरकारें कर रही है अथवा वे स्वयं के नेताओं और उनकी सुख-सुविधाओं पर पैसे की बर्बादी कर रही हैं। और इन बातों को कानूनन अमल में भी लाया जाना चाहिए। फिर देखते हैं कितने समाजसेवी, देशभक्त और जनसेवक इस राजनीति में आते हैं।
व्यवस्था परिवर्तन के लिए आवाज़ उठाएं और अपनी देश भक्ति का परिचय दें।
- रवि यादव
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